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कौन है पाकिस्तान का हुक्मरान: फौजी बाजवा या इमरान खान

Anil Pandey अनिल पांडेय
Updated Tue, 01 Jun 2021 05:06 PM IST
सार

दुनिया के सामने खुद को पाक साफ और सफेदपोश बताने वाला पाकिस्तान एक बार फिर बेनकाब हुआ है। यूं तो यह कोई पहली बार नहीं हुआ है, लेकिन यह ठीक ऐसे समय में हुआ है, जब भारत के साथ उसके रिश्ते तल्ख चल रहे हैं और इस्राइल-फिलीस्तीन-गाजा मामले में वो 'नेता' बनने की कोशिश में लगा हुआ है। पाकिस्तान का हाल उस व्यक्ति के समान है जिससे अपना घर तो संभल नहीं पा रहा है और वो दुनिया को घर संभालने की नसीहत देता फिर रहा है। पीर के दिन यानी सोमवार को पाकिस्तानी आवाम के साथ साथ दुनिया ने एक बार फिर देखा कि कैसे इस मुल्क पर आज भी सियासी चोगा ओढ़कर फौज शासन कर रही है।

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Pakistani journalist Mir taken off air after military outburst
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर - फोटो : Dawn
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विस्तार
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रात के नौ बजने वाले थे और पाकिस्तानी दर्शक खबरिया चैनल जियो न्यूज पर वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर का प्राइम टाइम कार्यक्रम कैपिटल टॉक देखने के लिए तैयार बैठे थे। इधर घड़ी ने नौ बजाए और उधर जियो न्यूज पर अपने चिरपरिचित सिग्नेचर म्यूजिक के साथ कैपिटल टॉक शुरू हुआ, लेकिन दर्शक उस वक्त हैरत में पड़ गए जब उनके टीवी स्क्रीन पर हामिद मीर की जगह किसी अब्दुल्ला सुलतान को देखा। बस इसके कुछ ही देर बाद यह बात जंगल में आग की तरह फैल गई कि हामिद मीर को ऑफ एयर किया गया है।

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टीवी की दुनिया में 'ऑफ एयर' का मतलब होता है, न दिखाना। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि एक पत्रकार की गिरफ्तारी और एक अन्य पर हमले के बाद से हामिद मीर इमरान सरकार से लगातार अपने कार्यक्रम के जरिये जवाब मांग रहे थे। पत्रकार की गिरफ्तारी के खिलाफ वो सेना और सरकार पर मुखर थे। कुछ दिनों पहले उन्होंने एक रैली का भी नेतृत्व किया था जिसमें उन्होंने सरकार और सेना को आड़े हाथों लिया था। यह बात इमरान खान या यूं कहें कि पाकिस्तानी फौज और इमरान के आका कमर जावेद बाजवा को नागवार लग रही थी। उन्होंने जियो टीवी के प्रबंधन पर दबाव बनाया और नतीजतन हामिद को कार्यक्रम प्रस्तुत करने से रोक दिया गया।
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पाकिस्तान के विपक्षी दल, एमनेस्टी इंटरनेशनल साउथ एशिया, मानवाधिकर संगठन और पाकिस्तान फेडरल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट जैसे संगठनों ने हामिद मीर के प्रति समर्थन जाहिर करते हुए कार्यक्रम रोके जाने की निंदा की है। वहीं हामिद मीर का कहना है कि उन्हें ऐसा होने का पहले से ही संदेह था। उन्होंने एक ट्वीट भी किया जिसमें लिखा कि, इस तरह का प्रतिबंध उनके लिए नया नहीं है क्योंकि उन पर पहले भी दो बार प्रतिबंध लगाया लगाया जा चुका है। यही कारण है कि उन्हें दो बार अपनी नौकरी तक खोनी पड़ी है।

हामिद मीर ने कहा, मेरी हत्या करने का भी प्रयास किया गया, लेकिन मैं बच गया। हम संविधान में दिए गए अधिकारों के लिए आवाज उठाना बंद नहीं कर सकते। इस बार मैं किसी भी नतीजे के लिए तैयार हूं और किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हूं क्योंकि वे मेरे परिवार को धमकी दे रहे हैं। हामिद ने मीडिया को बताया है कि जियो टीवी के मैनेजमेंट ने सोमवार को उन्हें यह बताया कि वे कैपिटल टॉक कार्यक्रम को होस्ट नहीं करेंगे। ऐसा करने के लिए प्रबंधन पर ऊपर से दबाव है। इसलिए उन्हें ऑफ एयर किया जा रहा है। अंदरखाने ऐसी भी खबर है कि जियो टीवी के प्रबंधन पर हामिद को नौकरी से निकालने का काफी दबाव भी है।
 
इसलिए हुई कार्रवाई
शुक्रवार को पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में आयोजित रैली में हामिद ने कहा था कि वो जल्द ही इस षड्यंत्र में शामिल लोगों का नाम उजागर करेंगे। उनका निशाना पाकिस्तानी सेना और उसके सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा पर था। हामिद ने कहा था कि फौज पत्रकारों को डरा-धमकाकर, परेशान कर सकती है या फिर कत्ल कर सकती है, क्योंकि उनके पास बंदूकें हैं, तोप और टैंक हैं। लेकिन पत्रकार सच सामने लाने का अपना दायित्व पूरा करते रहेंगे।

गौरतलब है कि 2014 में हामिद पर जानलेवा हमला हुआ था। उस वक्त वो दक्षिण पश्चिम बलोचिस्तान में फौज की ज्यादतियों पर एक कार्यक्रम कर रहे थे, तभी एक अनजान शख्स ने उन पर गोलियां चला दी थीं। हामिद उस हमले में बच गए थे। 

कलम के कत्ल का इतिहास
अगर कहा जाए कि पाकिस्तान में मीडिया का स्थान घटता जा रहा है तो गलत न होगा। बल्कि हालात तो ऐसे हैं मानो यह स्थान खत्म हो गया है। सरकार और फौज मीडिया संस्थानों को दबाकर रखती हैं। हामिद मीर के साथ हुई यह घटना इसका ताजा उदाहरण है। ऐसे पत्रकारों को चुन-चुनकर निशाना बनाया जाता है जो सरकार और फौज के खिलाफ लिखते या बोलते हैं। सरकार और तंत्र को समझने वाले पत्रकारों पर इस बात का दबाव रहता है कि वो "सबकुछ अच्छा है" बताएं। ऐसा न करने वालों के साथ कभी भी कुछ हो जाता है।

पाकिस्तान में ऐसी है खबरनवीसों की हालत
जुलाई 2020 में एक टीवी पत्रकार मतिउल्लाह जान को इस्लामाबाद में ही एक स्कूल के बाहर से अगवा कर लिया गया था। जान ने छूटने के बाद बताया था कि उन्हें आंखों में पट्टी बांधकर ले जाया गया था और अधमरा करने की हालत तक पीटा गया था। पूरे 12 घंटे तक उन्होंने यह प्रताड़ना झेली थी।

इसी साल अप्रैल में एक और पत्रकार अबसार आलम के पेट में गोलियां मारी गईं थीं। यह हमला इस्लामाबाद में उस वक्त हुआ था जब वो सुबह की सैर पर निकले थे। उनकी जान बच गई और सीसीटीवी कैमरों की पड़ताल में पता चला कि एक ही हमलावर था, जो गोली मारने के बाद भाग गया था। हालांकि इस मामले में आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। 



जनवरी 2020 में बीबीसी की उर्दू सेवा को अपना समाचार बुलेटिन बंद करना पड़ा था क्योंकि उनकी खबरों पर लगातार सरकारी दखलअंदाजी की जा रही थी। मीडिया पर सरकारी या फौजी दखल इमरान खान की सरकार में बहुत तेजी से बढ़ा है। 2021 में पाकिस्तान को प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 145वां स्थान प्राप्त हुआ है। इस इंडेक्स में कुल 180 देशों के नाम शामिल हैं। 

 

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