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चीन का गोपनीय तंत्र: कम्युनिस्ट पार्टी जो करे वही संविधान, खौफ, लोगों का नरसंहार और हर आरोप से इनकार
सार
चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी अपनी स्थापना की स्वर्ण जयंती मना रही है। चीन खुद को पीपुल्स रिपब्लिक कहता है जिसका अर्थ है, जनवादी गणराज्य। लेकिन वहां कभी भी चुनाव नहीं होते हैं। सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ही तय करती है कि देश का प्रीमियर या राष्ट्रपति कौन बनेगा।
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चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के सौ साल पर मनाया जा रहा जश्न
- फोटो : PTI
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विस्तार
इस पार्टी की कार्यप्रणाली हमेशा संदेह और सवालों के घेरे में रहती है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके चीन में दशकों से एक ही पार्टी शासन कर रही है। इस पार्टी की स्थापना शंघाई में एक दशक पहले कार्ल मार्क्स के आंदोलन व सिद्धांत के आधार पर की गई थी। इस पार्टी में सबसे बड़ा नियम है 'गोपनीयता'। पार्टी और प्रशासन की जानकारियां सार्वजनिक न करना, लोगों पर निगाह रखना और सत्ता के विरुद्ध उठने वाली आवाजों को दबाना इसका प्रमुख कार्य है।
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कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन (सीसीपी) कुछ मुद्दों पर न तो बात करती है और न बात करने वालों को पसंद करती है। आइए जानते हैं कि आखिर ऐसी कौन कौन सी जानकारियां हैं जो सीसीपी ने आम जनता और दुनिया से छिपा रखी हैं।
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पार्टी के सदस्य कौन हैं?
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन का दावा है कि पूरे देश में उसके कार्यकर्ताओं की संख्या साढ़े नौ करोड़ से ज्यादा है। हालांकि आज तक पार्टी ने नामों की सूची कभी जारी नहीं की है। पार्टी की सदस्यता लेने की प्रक्रिया न्यूनतम दो वर्ष में पूरी होती है। इस बीच आवेदक के बारे में सारी जानकारियां जुटाई जाती हैं। यह भी पता लगाया जाता है कि उसके साथ कोई आरोप या दोष न जुड़ा हो, यहां तक कि उसके जान-पहचान वाले भी बेदाग होने चाहिए।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक दल माना जाता है। पहले स्थान पर भारतीय जनता पार्टी है, जिनका दावा है कि उनके कार्यकर्ताओं की संख्या 18 करोड़ है। सीसीपी के संगठन विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक उनकी पार्टी में 65 लाख श्रमिक, दो करोड़ 80 लाख कृषक, चार करोड़ से ज्यादा प्रोफेशनल्स और लगभग दो करोड़ सेवानिवृत कार्यकर्ताओं का काडर है।
बीजिंग में रहने वाले राजनैतिक विश्लेषक वू क्वांग का कहना है, 'जब भी इस पार्टी की उच्च स्तरीय बैठक आयोजित की जाती है, तब हम देख सकते हैं कि यह एक ऐसा राजनीतिक दल है, जो नौकरशाहों से मिलकर बना है।'
पार्टी का पैसा?
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन ने आज तक कभी भी अपने कोष की जानकारी सार्वजनिक नहीं की है। न ही यह बताया कि उसे धन कहां से और कैसे प्राप्त होता है। पार्टी के नेताओं की संपत्ति के बारे में कभी कोई चर्चा ही नहीं होती है। चीन में इस विषय पर चर्चा करना यानी मुसीबतों को दावत देना है।
जितनी जानकारी पार्टी ने सार्वजनिक की है, उसके अनुसार, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन के सदस्यों को अपनी आमदनी का दो फीसदी हिस्सा पार्टी कोष में देना होता है। 2016 में जारी एक आधिकारिक प्रपत्र के अनुसार, पार्टी को कार्यकर्ताओं से सहयोग राशि के रूप में लगभग एक अरब रुपये (7.08 बिलियन युआन) प्राप्त हुए थे।
हालांकि यह सभी जानते हैं कि यह सहयोग राशि या चंदा पार्टी की आमदनी का बहुत छोटा सा हिस्सा है। हांगकांग के बैपिस्ट विश्वविद्यालय के जीनपियरे कैबेस्टन का कहना है कि पार्टी के पास देश की अर्थव्यवस्था का नियंत्रण है। इसके साथ ही पूरे देश और दुनिया में उसकी कई कंपनियां, होटल और फैक्टरियां भी हैं। इनसे भी उसे आमदनी होती है।
पार्टी पदाधिकारियों की तनख्वाहें, भत्ते और उन्हें दी जाने वाली सुविधाओं पर खर्च होने वाली रकम हमेशा से गोपनीय ही रही है। चीन में कार्यरत कई विदेशी मीडिया संस्थानों ने चीनी नेताओं की आय से अधिक संपत्ति, विदेशों में उनके निवेश और परिजनों के नाम पर अर्जित की गई संपदा पर खबरें प्रकाशित की हैं। इसके बदले में उन्हें कार्रवाईयां भी झेलनी पड़ी हैं। 2012 में ब्लूमबर्ग की एक खोजी खबर में यह दावा किया गया था कि राष्ट्रपति शी जिंगपिंग के नजदीकी संबंधियों ने अरबों युआन की संपत्ति अर्जित की है।
पार्टी से पीड़ित
चीन मामलों के कई विशेषज्ञों और स्कॉलर्स का मानना है कि 1949 में सत्ता में आने के बाद से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन की नीतियों के चलते लगभग अब तक लगभग चार से सात करोड़ लोग मारे जा चुके हैं। इसमें माउत्सेतुंग की विनाशकारी आर्थिक नीतियों की वजह से मारे गए लोग भी शामिल हैं, जिन्हें भुखमरी का शिकार बना दिया गया था। तिब्बत में मारे गए और 1989 में तियानमेन चौराहे पर हुआ नरसंहार भी शामिल है।
चीन पर यह आरोप भी लगते रहे हैं कि वहां की जेलों में कैद चुनिंदा बंदियों के अंग निकाल लिए जाते हैं। ऑर्गन हार्वेस्टिंग के जरिये इन्हें बेचा जाता है। इसमें फलुन गोंग धार्मिक आंदोलन से जुड़े लोग प्रमुख रूप से शिकार बनाए गए थे। हालांकि बीजिंग ने हमेशा इन आरोपों का खंडन ही किया है।
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि शिनजियांग प्रांत में लगभग 10 लाख उइगर और अल्पसंख्यकों को अलग अलग कैंपों में कैद करके रखा गया है। इन लोगों से मजदूरी कराई जाती है और इनकी नसबंदी भी की जाती है। जबकि चीन का कहना है कि उसने केवल आतंकी गतिविधियों में लिप्त लोगों को कैद किया है।
विपक्षी कौन हैं?
चीन में हजारों की तादाद में ऐसे लोग जेल में बंद हैं जो मानवाधिकार, लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों के पैरोकार थे। ये सब वर्षों से कैद हैं। शी जिनपिंग के कार्यकाल में यह सख्ती और अधिक बढ़ी है। सिविल सोसायटी के पक्षकारों के खिलाफ कार्रवाई बढ़ाई गई है। जिनपिंग के सत्ता संभालने के बाद पूरे चीन में लगभग 10 लाख सरकारी अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के नाम पर कार्रवाई की गई। हालांकि जानकारों का मानना है कि यह कार्रवाई एक दिखावा थी और इसका असल मकसद राजनीतिक प्रतिरोध को समाप्त करना था।
गोपनीय बैठकें
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन हर पांच साल में एक महाबैठक का आयोजन करती है। इस बैठक में कुछ एकतरफा फैसले लिए जाते हैं। पार्टी के सबसे ताकतवर 200 नेताओं की एक विशेष बैठक जिसे केंद्रीय समिति भी कहते हैं, वो हमेशा बंद दरवाजों के पीछे होती है। इसका ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया जाता है। इसकी जानकारी केवल पोलित ब्यूरो और आंतरिक कैबिनेट को होती है।
देश का सरकारी टेलीविजन नेटवर्क इस बारे में समाचार जारी करने के लिए अधिकृत है। हालांकि जानकारियां बेहद सीमित ही होती हैं। यदि पार्टी की बैठकों में कभी विवाद या गतिरोध की स्थिति बनती है तो उसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन का मानना है कि आंतरिक गतिरोधों की जानकारी सार्वजनिक होने से देश की छवि कमजोर होगी, इसलिए ऐसा नहीं किया जाता है। लेकिन असल बात तो यह है कि यही बंद दरवाजे और गोपनीयता, चीन को दुनिया का सबसे बड़ा 'बंद' समाज भी बनाते हैं।