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South Korea: दक्षिण कोरिया में विद्रोह मामलों के लिए विशेष अदालतों को मंजूरी, पूर्व राष्ट्रपति केस बना वजह
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, सिओल
Published by: शिवम गर्ग
Updated Tue, 23 Dec 2025 02:29 PM IST
सार
दक्षिण कोरिया की संसद ने विद्रोह, राजद्रोह और विदेशी षड्यंत्र से जुड़े मामलों के लिए विशेष अदालतें गठित करने का कानून पारित किया।
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यून सुक योल, दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति
- फोटो : ANI
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विस्तार
दक्षिण कोरिया की संसद ने विद्रोह, राजद्रोह और विदेशी साजिश से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें गठित करने से संबंधित विधेयक को पारित कर दिया है। यह फैसला उस समय लिया गया है, जब जेल में बंद पूर्व राष्ट्रपति यून सुक योल के खिलाफ चल रहे विद्रोह मामले की सुनवाई में देरी को लेकर सरकार पर सवाल उठ रहे थे।
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इस कानून के तहत सियोल सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और सियोल हाई कोर्ट में ऐसे मामलों के लिए कम से कम दो विशेष पीठों का गठन किया जाएगा। हर पीठ में तीन न्यायाधीश होंगे, जिनका चयन संबंधित अदालत की जज काउंसिल करेगी।
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सरकार और विपक्ष के बीच टकराव
यह विधेयक 175-2 के भारी बहुमत से पारित हुआ, जबकि कई कंजरवेटिव सांसदों ने मतदान का बहिष्कार किया। विपक्षी पीपल पावर पार्टी ने इसे न्यायिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करार दिया और ली जे म्युंग से कानून को वीटो करने की मांग की। पीपीपी नेता जांग डोंग-ह्युक ने संसद में 24 घंटे का फाइलबस्टर भी किया और आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी अदालतों पर दबाव बना रही है।
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यून सुक योल केस से क्यों जुड़ा है कानून
पूर्व राष्ट्रपति यून सुक योल ने दिसंबर 2024 में मार्शल लॉ लागू कर सत्ता बनाए रखने की कोशिश की थी। हालांकि कुछ ही घंटों में उनका प्रयास विफल हो गया। अप्रैल में उन्हें पद से हटा दिया गया और जुलाई में दोबारा गिरफ्तार किया गया। उन पर विद्रोह, सत्ता पलटने की साजिश और संविधान के उल्लंघन जैसे गंभीर आरोप हैं, जिनमें उम्रकैद या मौत की सजा तक का प्रावधान है। हालांकि नए कानून का असर यून के मौजूदा ट्रायल पर नहीं पड़ेगा, लेकिन अगर मामला हाई कोर्ट पहुंचता है, तो वहां सुनवाई विशेष पीठ करेगी।
न्यायपालिका की भूमिका पर बहस
डेमोक्रेटिक पार्टी ने यून के केस की सुनवाई कर रहे जज पर कार्यवाही में देरी का आरोप लगाया है। पार्टी का कहना है कि इतने संवेदनशील मामलों में जजों की रैंडम नियुक्ति की पुरानी परंपरा पर पुनर्विचार होना चाहिए। वहीं, न्यायपालिका समर्थकों का मानना है कि नया कानून अदालतों की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।
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