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Syria: असद ने ईरान की जगह रूस में ही क्यों ली शरण, महाशक्तियों की सीरिया में दिलचस्पी की वजह क्या? जानें सबकुछ
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Mon, 09 Dec 2024 12:15 PM IST
सार
आखिर रूस ने गुपचुप तरीके से असद को कैसे निकाला? सीरियाई राष्ट्रपति ने सत्ता छोड़ने से पहले रूस को ही क्यों चुना? सीरिया में आखिर पश्चिमी देशों की क्या दिलचस्पी है? रूस और ईरान के लिए बशर अल-असद के सीरिया की सत्ता से हटने के क्या मायने हैं? आइये जानते हैं...
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सीरिया और बशर अल-असद।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
सीरिया में 20 साल तक शासन करने वाले बशर अल-असद का शासन खत्म हो चुका है। 13 दिन के अंदर विद्रोही बलों ने अलेप्पो से लेकर हमा तक एक के बाद एक शहरों पर कब्जा किया और फिर राजधानी दमिश्क पर धावा बोल दिया। विद्रोहियों का यह अभियान कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शनिवार-रविवार के बीच दमिश्क घेरने के बाद उसने दोपहर तक राजधानी पर कब्जा भी कर लिया। इसके बाद सीरियाई सेना के पास नेतृत्व की भारी कमी दिखी और उसके कई सैनिक बॉर्डर पार कर पड़ोसी देशों में शरण के लिए पहुंचने लगे। इस तरह विद्रोही बलों ने असद परिवार की 50 साल की सत्ता छीन ली।
रूस ने काफी इंतजार के बाद दी असद को शरण देने की जानकारी
विद्रोही संगठन हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के नेतृत्व में विद्रोही संगठनों के दमिश्क पहुंचने के बाद सबकी जुबान पर एक ही सवाल रहा- आखिर बशर अल-असद हैं कहां? रविवार सुबह रूस की तरफ से बयान जारी कर कहा गया कि असर किसी सुरक्षित ठिकाने की तरफ जा चुके हैं। हालांकि, सोशल मीडिया पर उनके विमान पर हमले की खबरें भी तेजी से वायरल हुईं। कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि उनका प्लेन क्रैश हो गया और असद की मौत से जुड़ी चर्चाएं भी सामने आईं। इस बीच रूस ने इन सभी अफवाहों पर लगाम लगाते हुए साफ किया कि असद और उनके परिवार को उसने शरण दी है।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर रूस ने गुपचुप तरीके से असद को कैसे निकाला? सीरियाई राष्ट्रपति ने सत्ता छोड़ने से पहले रूस को ही क्यों चुना? सीरिया में आखिर पश्चिमी देशों की क्या दिलचस्पी है? रूस और ईरान के लिए बशर अल-असद के सीरिया की सत्ता से हटने के क्या मायने हैं। आइये जानते हैं...
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रूस ने काफी इंतजार के बाद दी असद को शरण देने की जानकारी
विद्रोही संगठन हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के नेतृत्व में विद्रोही संगठनों के दमिश्क पहुंचने के बाद सबकी जुबान पर एक ही सवाल रहा- आखिर बशर अल-असद हैं कहां? रविवार सुबह रूस की तरफ से बयान जारी कर कहा गया कि असर किसी सुरक्षित ठिकाने की तरफ जा चुके हैं। हालांकि, सोशल मीडिया पर उनके विमान पर हमले की खबरें भी तेजी से वायरल हुईं। कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि उनका प्लेन क्रैश हो गया और असद की मौत से जुड़ी चर्चाएं भी सामने आईं। इस बीच रूस ने इन सभी अफवाहों पर लगाम लगाते हुए साफ किया कि असद और उनके परिवार को उसने शरण दी है।
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ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर रूस ने गुपचुप तरीके से असद को कैसे निकाला? सीरियाई राष्ट्रपति ने सत्ता छोड़ने से पहले रूस को ही क्यों चुना? सीरिया में आखिर पश्चिमी देशों की क्या दिलचस्पी है? रूस और ईरान के लिए बशर अल-असद के सीरिया की सत्ता से हटने के क्या मायने हैं। आइये जानते हैं...
1. रूस ने असद को कैसे निकाला?
सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स के प्रमुख रमी अब्दुररहमान के मुताबिक, बशर अल-असद शनिवार-रविवार की दरमियानी रात ही सीरिया छोड़कर भाग निकले। विमानन गतिविधियों पर नजर रखने वाली संस्था FlightRadar24.com के मुताबिक, दमिश्क एयरपोर्ट से एक इल्युशिन एयरक्राफ्ट ने ठीक उस वक्त उड़ान भरी, जब विद्रोहियों ने शहर पर कब्जा शुरू किया। हालांकि, यह एयरक्राफ्ट कहां जा रहा था, इसकी जानकारी नहीं दी गई थी।
अब्दुररहमान के मुताबिक, विमान को शनिवार रात को 10 बजे ही उड़ान भरनी थी। फ्लाइट रडार ने दिखाया कि उड़ान भरने के कुछ देर बाद ही कार्गो विमान को दमिश्क के पूर्व में उड़ते देखा गया। इसके बाद वह उत्तर-पश्चिम दिशा की तरफ गया, जहां मध्य होम्स शहर के बीच विमान अचानक से नीचे आ गया। इसी बीच विमान का सिग्नल खो गया। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि इसकी वजह विमान की तरफ से ट्रैकिंग बंद करना भी हो सकता है।
बताया गया है कि सीरिया से रविवार सुबह एक और विमान ने उड़ान भरी, लेकिन यह विद्रोहियों के दमिश्क पहुंचने के काफी देर बाद उड़ी।
सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स के प्रमुख रमी अब्दुररहमान के मुताबिक, बशर अल-असद शनिवार-रविवार की दरमियानी रात ही सीरिया छोड़कर भाग निकले। विमानन गतिविधियों पर नजर रखने वाली संस्था FlightRadar24.com के मुताबिक, दमिश्क एयरपोर्ट से एक इल्युशिन एयरक्राफ्ट ने ठीक उस वक्त उड़ान भरी, जब विद्रोहियों ने शहर पर कब्जा शुरू किया। हालांकि, यह एयरक्राफ्ट कहां जा रहा था, इसकी जानकारी नहीं दी गई थी।
अब्दुररहमान के मुताबिक, विमान को शनिवार रात को 10 बजे ही उड़ान भरनी थी। फ्लाइट रडार ने दिखाया कि उड़ान भरने के कुछ देर बाद ही कार्गो विमान को दमिश्क के पूर्व में उड़ते देखा गया। इसके बाद वह उत्तर-पश्चिम दिशा की तरफ गया, जहां मध्य होम्स शहर के बीच विमान अचानक से नीचे आ गया। इसी बीच विमान का सिग्नल खो गया। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि इसकी वजह विमान की तरफ से ट्रैकिंग बंद करना भी हो सकता है।
बताया गया है कि सीरिया से रविवार सुबह एक और विमान ने उड़ान भरी, लेकिन यह विद्रोहियों के दमिश्क पहुंचने के काफी देर बाद उड़ी।
2. असद के लिए रूस कितना सुरक्षित, ईरान क्यों नहीं गए?
रूस ने रविवार शाम को पुष्टि की कि असद उनके देश में ही है। रूसी न्यूज एजेंसियों ने कहा कि असद और उनके परिवार को मानवीय आधार पर शरण दी गई है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में रूस का नेतृत्व करने वाले मिखाइल उल्यानोव ने अपने टेलीग्राम हैंडल पर कहा- रूस कभी मुश्किल हालात में अपने दोस्तों को नहीं छोड़ता।
वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, असद को मिस्र और जॉर्डन की सलाह पर रूस के मॉस्को पहुंचाया गया। दूसरी तरफ ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया कि असद कुछ समय बाद ही ईरान की राजधानी तेहरान में शरण ले सकते हैं।
हालांकि, ईरान में इस्राइली खुफिया तंत्र की मौजूदगी और उसके बढ़ते हमलों ने इस देश को असद के लिए अब सुरक्षित नहीं छोड़ा है। कुछ दिनों पहले ही ईरान में हमास के प्रमुख इस्माइल हानिया को इस्राइल ने कथित तौर पर मार गिराया था। वहीं, कई परमाणु वैज्ञानिकों और अपने दुश्मनों को इस्राइल ने ईरान की ही जमीन में खुफिया अभियानों में मारा है। ऐसे में ईरान के मुकाबले रूस बशर अल-असद के लिए ज्यादा सुरक्षित ठिकाना है।
चौंकाने वाली बात यह है कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी अब तक असद की लोकेशन को लेकर निश्चित बयान नहीं दे सकी हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने रविवार देर रात एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि उन्हें अब तक असद के ठिकाने के बारे में पक्की जानकारी नहीं है, लेकिन चर्चा है कि वह मॉस्को में हैं। इस लिहाज से साफ है कि रूस फिलहाल असद के लिए सुरक्षित जगह है।
रूस ने रविवार शाम को पुष्टि की कि असद उनके देश में ही है। रूसी न्यूज एजेंसियों ने कहा कि असद और उनके परिवार को मानवीय आधार पर शरण दी गई है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में रूस का नेतृत्व करने वाले मिखाइल उल्यानोव ने अपने टेलीग्राम हैंडल पर कहा- रूस कभी मुश्किल हालात में अपने दोस्तों को नहीं छोड़ता।
वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, असद को मिस्र और जॉर्डन की सलाह पर रूस के मॉस्को पहुंचाया गया। दूसरी तरफ ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया कि असद कुछ समय बाद ही ईरान की राजधानी तेहरान में शरण ले सकते हैं।
हालांकि, ईरान में इस्राइली खुफिया तंत्र की मौजूदगी और उसके बढ़ते हमलों ने इस देश को असद के लिए अब सुरक्षित नहीं छोड़ा है। कुछ दिनों पहले ही ईरान में हमास के प्रमुख इस्माइल हानिया को इस्राइल ने कथित तौर पर मार गिराया था। वहीं, कई परमाणु वैज्ञानिकों और अपने दुश्मनों को इस्राइल ने ईरान की ही जमीन में खुफिया अभियानों में मारा है। ऐसे में ईरान के मुकाबले रूस बशर अल-असद के लिए ज्यादा सुरक्षित ठिकाना है।
चौंकाने वाली बात यह है कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी अब तक असद की लोकेशन को लेकर निश्चित बयान नहीं दे सकी हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने रविवार देर रात एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि उन्हें अब तक असद के ठिकाने के बारे में पक्की जानकारी नहीं है, लेकिन चर्चा है कि वह मॉस्को में हैं। इस लिहाज से साफ है कि रूस फिलहाल असद के लिए सुरक्षित जगह है।
3. रूस ही क्यों बना असद का सुरक्षित ठिकाना?
बशर अल-असद का सीरिया छोड़कर रूस भागना लगभग तय था। दरअसल, असद के 20 साल के शासन के दौरान रूस और ईरान ने उनकी सत्ता का समर्थन किया। जबकि पश्चिमी देशों ने लगातार उन पर सीरियाई लोगों के खिलाफ कठोरता बरतने का आरोप लगाया। 2011 के बाद सीरिया में शुरू हुए गृहयुद्ध के दौरान पश्चिमी देशों ने असद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और कई विद्रोही संगठनों को वित्तीय सहायता और हथियार मुहैया कराए थे। यह संगठन बाद में सीरिया में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएआईएस) को मजबूत करने में बड़ी भूमिका में रहे, जिसके खिलाफ अमेरिका को खुद भी मोर्चा संभालना पड़ा।
हालांकि, इस पूरे गृह यु्ध के दौरान रूस और ईरान असद की सत्ता के साथ खड़े रहे। विशेषज्ञों के मुताबिक, 2011 में ही अरब क्रांति की शुरुआत के दौरान जब लीबिया से मुअम्मर गद्दाफी की सत्ता खत्म हुई तब रूस को पश्चिम एशिया में सिर्फ बशर अल-असद का ही सहारा था। पुतिन ने इसी एवज में असद को हर तरह से मदद मुहैया कराई।
2011 से 2017 तक जब विद्रोही लगातार सीरियाई सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए थे, तब रूस ने ईरान और उसके समर्थित संगठनों के साथ मिलकर असद की सत्ता बचाई थी। इस दौरान रूस ने हवाई हमलों से विद्रोही संगठनों को नेस्तनाबूत कर दिया था और अधिकतर क्षेत्रों में असद का शासन फिर स्थापित किया था। कई मौकों पर रूस की सैन्य पुलिस ने क्षेत्र में अलग-अलग समुदाय के झगड़ों को सुलझाने में मदद की।
2015 में संयुक्त राष्ट्र में एक भाषण के दौरान व्लादिमीर पुतिन ने असद के समर्थन में पश्चिमी देशों को लताड़ लगाई थी। उन्होंने कहा था कि सीरिया के राष्ट्रपति के तौर पर असद का समर्थन न कर के पश्चिमी देश बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भी सीरिया के खिलाफ लाए गए कई प्रस्तावों को वीटो किया था। कई जानकारों का मानना है कि पुतिन के इसी समर्थन की वजह से उनकी सेना को सीरिया और बड़े स्तर पर पश्चिम एशिया में अमेरिका-यूरोप के खिलाफ प्रभाव बनाने में मदद मिली थी। इस क्षेत्र में मौजूदगी के जरिए रूस ने मिस्र, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात से रिश्ते और बेहतर किए।
बशर अल-असद का सीरिया छोड़कर रूस भागना लगभग तय था। दरअसल, असद के 20 साल के शासन के दौरान रूस और ईरान ने उनकी सत्ता का समर्थन किया। जबकि पश्चिमी देशों ने लगातार उन पर सीरियाई लोगों के खिलाफ कठोरता बरतने का आरोप लगाया। 2011 के बाद सीरिया में शुरू हुए गृहयुद्ध के दौरान पश्चिमी देशों ने असद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और कई विद्रोही संगठनों को वित्तीय सहायता और हथियार मुहैया कराए थे। यह संगठन बाद में सीरिया में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएआईएस) को मजबूत करने में बड़ी भूमिका में रहे, जिसके खिलाफ अमेरिका को खुद भी मोर्चा संभालना पड़ा।
हालांकि, इस पूरे गृह यु्ध के दौरान रूस और ईरान असद की सत्ता के साथ खड़े रहे। विशेषज्ञों के मुताबिक, 2011 में ही अरब क्रांति की शुरुआत के दौरान जब लीबिया से मुअम्मर गद्दाफी की सत्ता खत्म हुई तब रूस को पश्चिम एशिया में सिर्फ बशर अल-असद का ही सहारा था। पुतिन ने इसी एवज में असद को हर तरह से मदद मुहैया कराई।
2011 से 2017 तक जब विद्रोही लगातार सीरियाई सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए थे, तब रूस ने ईरान और उसके समर्थित संगठनों के साथ मिलकर असद की सत्ता बचाई थी। इस दौरान रूस ने हवाई हमलों से विद्रोही संगठनों को नेस्तनाबूत कर दिया था और अधिकतर क्षेत्रों में असद का शासन फिर स्थापित किया था। कई मौकों पर रूस की सैन्य पुलिस ने क्षेत्र में अलग-अलग समुदाय के झगड़ों को सुलझाने में मदद की।
2015 में संयुक्त राष्ट्र में एक भाषण के दौरान व्लादिमीर पुतिन ने असद के समर्थन में पश्चिमी देशों को लताड़ लगाई थी। उन्होंने कहा था कि सीरिया के राष्ट्रपति के तौर पर असद का समर्थन न कर के पश्चिमी देश बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भी सीरिया के खिलाफ लाए गए कई प्रस्तावों को वीटो किया था। कई जानकारों का मानना है कि पुतिन के इसी समर्थन की वजह से उनकी सेना को सीरिया और बड़े स्तर पर पश्चिम एशिया में अमेरिका-यूरोप के खिलाफ प्रभाव बनाने में मदद मिली थी। इस क्षेत्र में मौजूदगी के जरिए रूस ने मिस्र, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात से रिश्ते और बेहतर किए।
क्या है सीरिया की खासियत, जिससे बढ़ी महाशक्तियों की दिलचस्पी?
सीरिया को खास बनाने वाली कई वजह हैं, जिसके चलते यह देश वर्षों से रूस, ईरान और पश्चिमी देशों के अलावा अरब जगत में भी दिलचस्पी का केंद्र बना रहा है।
1. भौगोलिक स्थिति
सीरिया अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से महाशक्तियों के बीच जंग का क्षेत्र बना है। उत्तर में तुर्किये, पूर्व में इराक, पश्चिम में लेबनान और भूमध्यसागर, दक्षिण में इस्राइल और जॉर्डन जैसे देशों की मौजूदगी सीरिया को पश्चिम एशिया में अहम देश बनाती है।
2. धार्मिक व्यवस्था
सीरिया मुख्य तौर पर एक सुन्नी बहुल देश रहा है। हालांकि, यहां राष्ट्रपति बशर अल-असद शिया शासक रहे। वे शियाओं के अलावाइट संप्रदाय से आते हैं। इसके अलावा सीरिया में इसाइयों की भी कुछ संख्या है। एक बड़ा वर्ग देश में कुर्दों का है, जो कि तुर्किये से लेकर इराक तक स्थित हैं और एक अलग कुर्दिस्तान की मांग कर चुके हैं।
हालांकि, सीरिया में धार्मिक विविधता में यह कमी बशर अल-असद के लिए बड़ी मुसीबत बनकर आई। देश के अधिकतर सुन्नी संगठनों ने असद के खिलाफ एक गठबंधन तैयार कर लिया। विद्रोहियों का पूरा संगठन- फ्री सीरियाई आर्मी ही 90 फीसदी सुन्नी मुस्लिमों का संगठन है।
खास बात यह है कि इसी धार्मिक व्यवस्था के आधार पर सीरिया के पड़ोसी भी बंटे हुए हैं। जहां शिया बहुल ईरान और इराक असद का समर्थन करते हैं। वहीं, तुर्किये, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात विद्रोही संगठनों के समर्थन में रहे हैं।
सीरिया को खास बनाने वाली कई वजह हैं, जिसके चलते यह देश वर्षों से रूस, ईरान और पश्चिमी देशों के अलावा अरब जगत में भी दिलचस्पी का केंद्र बना रहा है।
1. भौगोलिक स्थिति
सीरिया अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से महाशक्तियों के बीच जंग का क्षेत्र बना है। उत्तर में तुर्किये, पूर्व में इराक, पश्चिम में लेबनान और भूमध्यसागर, दक्षिण में इस्राइल और जॉर्डन जैसे देशों की मौजूदगी सीरिया को पश्चिम एशिया में अहम देश बनाती है।
2. धार्मिक व्यवस्था
सीरिया मुख्य तौर पर एक सुन्नी बहुल देश रहा है। हालांकि, यहां राष्ट्रपति बशर अल-असद शिया शासक रहे। वे शियाओं के अलावाइट संप्रदाय से आते हैं। इसके अलावा सीरिया में इसाइयों की भी कुछ संख्या है। एक बड़ा वर्ग देश में कुर्दों का है, जो कि तुर्किये से लेकर इराक तक स्थित हैं और एक अलग कुर्दिस्तान की मांग कर चुके हैं।
हालांकि, सीरिया में धार्मिक विविधता में यह कमी बशर अल-असद के लिए बड़ी मुसीबत बनकर आई। देश के अधिकतर सुन्नी संगठनों ने असद के खिलाफ एक गठबंधन तैयार कर लिया। विद्रोहियों का पूरा संगठन- फ्री सीरियाई आर्मी ही 90 फीसदी सुन्नी मुस्लिमों का संगठन है।
खास बात यह है कि इसी धार्मिक व्यवस्था के आधार पर सीरिया के पड़ोसी भी बंटे हुए हैं। जहां शिया बहुल ईरान और इराक असद का समर्थन करते हैं। वहीं, तुर्किये, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात विद्रोही संगठनों के समर्थन में रहे हैं।
3. अमेरिका-रूस के बीच प्रभाव बनाने की जंग
सीरिया की भौगोलिक और धार्मिक स्थिति इसे महाशक्तियों के लिए भी अहम बनाती है। अमेरिका लंबे समय से पश्चिम एशिया में सऊदी अरब, यूएई और तुर्किये के साथ काम करता रहा है। तुर्किये में ही अमेरिका का अहम सैन्य ठिकाना भी मौजूद है, जो कि इस क्षेत्र में उसे ताकतवर बनाने में अहम है।
दूसरी तरफ पश्चिम एशिया में ताकत की यही जंग रूस को भी खींचती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, 2011 में ही अरब क्रांति की शुरुआत के दौरान जब लीबिया से मुअम्मर गद्दाफी की सत्ता खत्म हुई तब रूस को पश्चिम एशिया में एक ऐसे साथी देश की तलाश थी, जो कि उसे क्षेत्र में पश्चिमी देशों के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में मदद करे। इस दौरान पुतिन को साथ मिला सीरिया के बशर अल-असद का। एक सुन्नी बहुल देश में विरोध झेल रहे शिया नेता असद ने रूस का हाथ थाम कर सीरिया में अपनी सत्ता कायम रखी। इतना ही नहीं सीरिया को अमेरिका और उसके मित्र देशों की पहुंच से भी बाहर रखा।
पुतिन ने भी इसी प्रभाव के मद्देनजर असद को हर तरह से मदद मुहैया कराई। सोवियत संघ के बाहर रूस ने अपना इकलौता सैन्य बेस सीरिया में ही बनाया है। अमेरिका के खिलाफ शीत युद्ध के दौरान इस सैन्य ठिकाने ने रूस को मजबूती दी थी।
सीरिया की भौगोलिक और धार्मिक स्थिति इसे महाशक्तियों के लिए भी अहम बनाती है। अमेरिका लंबे समय से पश्चिम एशिया में सऊदी अरब, यूएई और तुर्किये के साथ काम करता रहा है। तुर्किये में ही अमेरिका का अहम सैन्य ठिकाना भी मौजूद है, जो कि इस क्षेत्र में उसे ताकतवर बनाने में अहम है।
दूसरी तरफ पश्चिम एशिया में ताकत की यही जंग रूस को भी खींचती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, 2011 में ही अरब क्रांति की शुरुआत के दौरान जब लीबिया से मुअम्मर गद्दाफी की सत्ता खत्म हुई तब रूस को पश्चिम एशिया में एक ऐसे साथी देश की तलाश थी, जो कि उसे क्षेत्र में पश्चिमी देशों के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में मदद करे। इस दौरान पुतिन को साथ मिला सीरिया के बशर अल-असद का। एक सुन्नी बहुल देश में विरोध झेल रहे शिया नेता असद ने रूस का हाथ थाम कर सीरिया में अपनी सत्ता कायम रखी। इतना ही नहीं सीरिया को अमेरिका और उसके मित्र देशों की पहुंच से भी बाहर रखा।
पुतिन ने भी इसी प्रभाव के मद्देनजर असद को हर तरह से मदद मुहैया कराई। सोवियत संघ के बाहर रूस ने अपना इकलौता सैन्य बेस सीरिया में ही बनाया है। अमेरिका के खिलाफ शीत युद्ध के दौरान इस सैन्य ठिकाने ने रूस को मजबूती दी थी।