US-China trade war: 2022 में क्यों नाकाम रही एशिया में चीन को अलग-थलग करने की अमेरिकी कोशिश?
US-China trade war: अमेरिका ने चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध की शुरुआत 2018 में की थी। उसके बाद से दस पड़ोसी देशों के साथ चीन के आयात और निर्यात में 71 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। इन देशों में इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, और वियतनाम भी शामिल हैं। इसी अवधि में भारत के साथ चीन के व्यापार में 49 फीसदी की वृद्धि हुई है...
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US-China trade war: अंतरराष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में चीन को अलग-थलग करने की अमेरिकी रणनीति एशिया में इस वर्ष कामयाब नहीं हुई। अमेरिका ने अपने सहयोगी एशियाई देशों से चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता घटाने को कहा था। लेकिन असल में इस वर्ष ज्यादातर एशियाई देशों के चीन के साथ आर्थिक संबंध और मजबूत हो गए। यह बात अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल के विश्लेषण से सामने आई है।
अखबार ने अर्थशास्त्रियों के हवाले से कहा है कि छोटी अर्थव्यवस्था वाले देशों में आम प्रवृत्ति अपने पास-पड़ोस के बड़े देश से आर्थिक संबंध मजबूत करने की रहती है। यह सामान्य आर्थिक सिद्धांत इस वर्ष एशिया में व्यवहार में आता नजर आया। नतीजतन, चीन एशियाई देशों के लिए अपेक्षाकृत सस्ती दर पर मशीनरी, कार आदि जैसे उत्पादों का प्रमुख सप्लायर बना रहा। इस विश्लेषण के मुताबिक इस आम व्यवहार के अलावा चीन का एशियाई देशों से व्यापार बढ़ने का एक और कारण चीन की नई रणनीति है। इसके तहत पश्चिमी देशों से संबंध तनावपूर्ण होने के कारण अब चीन आसपास के देशों से कारोबार बढ़ाने पर खास जोर डाल रहा है।
आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक दुनिया में बनते नए हालात के कारण कई देशों ने खुद को मैन्युफैक्चरिंग केंद्र बनाने की पहल की है। लेकिन इससे चीन के कारोबार पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। इन देशों ने जिन चीजों के उत्पादन के कारखाने लगे हैं, उनके लिए भी कल-पुर्जे अक्सर चीन से मंगवाए गए हैं। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक भारत और वियतनाम स्मार्टफोन उत्पादन के बड़े केंद्र के रूप में उभरे हैं, लेकिन वहां बनने वाले स्मार्टफोन में भी चीन से आने वाले पुर्जों और बुनियादी सामग्रियों (बेसिक मैटेरियल्स) का इस्तेमाल हो रहा है।
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक जब तक अमेरिका मुक्त व्यापार समझौतों के प्रति अपनी नीति बदल कर एशियाई देशों की पहुंच अपने विशाल उत्पादन और उपभोक्ता बाजार तक नहीं बनाने देगा, चीन के प्रभाव को कम करने की उसकी रणनीति कामयाब नहीं होगी। लंदन स्थित कंसल्टिंग फर्म टीएस लोम्बार्ड में चीन विशेषज्ञ अर्थशास्त्री रॉरी ग्रीन ने कहा है- ‘एशिया के अंदर अमेरिका को वास्तविक संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है। उसे (व्यापार के) गुरुत्वाकर्षण का मुकाबला करना पड़ रहा है।’
अमेरिका ने चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध की शुरुआत 2018 में की थी। उसके बाद से दस पड़ोसी देशों के साथ चीन के आयात और निर्यात में 71 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। इन देशों में इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, और वियतनाम भी शामिल हैं। इसी अवधि में भारत के साथ चीन के व्यापार में 49 फीसदी की वृद्धि हुई है। दरअसल, इस अवधि में खुद अमेरिका के साथ चीन के आयात-निर्यात में 23 फीसदी का इजाफा हुआ है कि और यूरोप के साथ उसका व्यापार 29 फीसदी बढ़ा है।
वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक चीन का व्यापार बढ़ने का एक प्रमुख कारण वहां तैयार होने वाले उपकरणों का सस्ता होना है। उधर अमेरिका के व्यापार युद्ध शुरू करने के बाद से उसने अनेक देशों से होने वाले आयात पर कस्टम घटा दिया है। इससे उन देशों के उत्पादों की बिक्री चीन में बढ़ी है। एशिया सहित दुनिया के अन्य हिस्सों के ज्यादातर देश व्यापार में यह लाभ छोड़ने को तैयार नहीं हैं। इसलिए चीन को अलग-थलग करने की रणनीति ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई है।