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US: शरणार्थियों से युद्ध के मैदानों तक, ट्रंप की शपथ के बाद दुनिया में किन बदलाव के आसार, भारत पर क्या असर?

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, वॉशिंगटन Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Mon, 20 Jan 2025 08:56 PM IST
सार

ट्रंप के शपथग्रहण के बाद कौन-कौन सी योजनाएं उनके एजेंडे में हैं? उनकी योजनाओं का दुनिया पर क्या असर पड़ने वाला है? अमेरिका के घरेलू माहौल में क्या बदलाव होंगे? इसके अलावा भारत को लेकर उनका रुख क्या रहने वाला है? आइये जानते हैं...

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US President Donald Trump Oath Ceremony big decisions ahead World Order to be affected know influence on India
अमेरिकी राष्ट्रपति का शपथग्रहण समारोह। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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डोनाल्ड ट्रंप थोड़ी देर में अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ले लेंगे। उनके आने के बाद अमेरिका ही नहीं, पूरी दुनिया में कई बड़े बदलावों की उम्मीद की जा रही है। अभी यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि ट्रंप का अलग-अलग देशों के प्रति क्या रुख रहेगा, हालांकि उनके राष्ट्रपति चुने जाने से शपथग्रहण के बीच 75 दिन में कई ऐसे घटनाक्रम हुए, जहां से ट्रंप के चार साल के पूरे कार्यकाल को  लेकर अंदाजा लगाया जा सकता है। 
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इस बीच यह जानना अहम है कि आखिर ट्रंप के शपथग्रहण के बाद कौन-कौन सी योजनाएं उनके एजेंडे में हैं? उनकी योजनाओं का दुनिया पर क्या असर पड़ने वाला है? अमेरिका के घरेलू माहौल में क्या बदलाव होंगे? इसके अलावा भारत को लेकर उनका रुख क्या रहने वाला है? आइये जानते हैं...
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शपथग्रहण के बाद किन एजेंडों पर कर सकते हैं काम?
रिपोर्ट्स की मानें तो ट्रंप शपथग्रहण के बाद 200 से ज्यादा कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। इनमें 50 कार्यकारी आदेश तो कानूनी तौर पर बाध्यकारी होंगे। यानी इन्हें आसानी से संसद की तरफ से नहीं बदला जा सकता। इनमें सीमा सुरक्षा से लेकर घरेलू ऊर्जा उत्पादन और संघीय कर्मियों की भर्ती के लिए मेरिट से जुड़े प्रावधान शामिल होंगे।  

1. आव्रजन और नागरिकता से जुड़े नियम


i). शरणार्थी समस्या और सीमा सुरक्षा
राष्ट्रपति ट्रंप अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे शरणार्थियों और अन्य लोगों को देश से निकालने यानी डिपोर्ट करने के लिए एक विस्तृत योजना शुरू कर सकते हैं। न्यूयॉर्क पोस्ट ने लीक दस्तावेजों के हवाले से दावा किया है कि इसकी शुरुआत शिकागो से होगी।  इसके बाद देशभर में अवैध आव्रजन के खिलाफ अभियान चलाया जाएगा। इसके लिए एजेंसियां तैयारी कर चुकी हैं। रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया था कि अमेरिकी आव्रजन और सीमा शुल्क प्रवर्तन विभाग ने अभियान को अंजाम देने के लिए 100-200 अधिकारियों को लगाया है। हफ्ते भर चलने वाले इस अभियान के बाद अवैध आव्रजन के आरोपियों को उनके देश वापस भेज दिया जाएगा। 

हालांकि, हाल ही में ट्रंप के सीमा मामलों के मंत्री टॉम होमन ने बताया कि वे शरणार्थियों को पकड़ने के लिए छापेमारी की योजना पर पुनर्विचार कर रहे हैं।
 

ii). अमेरिका में जन्म से नागरिकता के अधिकार पर चल सकती है कैंची
ट्रंप एक ऐसा कार्यकारी आदेश भी जारी कर सकते हैं, जिसके जरिए उन बच्चों की नागरिकता खुद-ब-खुद खत्म करने की योजना है, जिनके माता-पिता दोनों में से कोई भी पहले से अमेरिका का नागरिक नहीं है। दरअसल, अमेरिका में अभी यह संवैधानिक कानून है कि अमेरिका में जन्मे हर व्यक्ति को वहां की नागरिकता अपने आप मिल जाती है। फिर चाहे वह अमेरिकी नागरिकों की संतान हो या किसी शरणार्थी की। ट्रंप इस कानून को पहले ही हास्यास्पद बता चुके हैं।

हालांकि, ट्रंप के लिए यह वादा उनके लिए ही गले की फांस भी बन सकता है। दरअसल, अमेरिकी संविधान को बदलने के नियम काफी सख्त हैं। ऐसे में संसद और राज्यों के जरिए इन नियमों को बदलवाना अमेरिकी राष्ट्रपतियों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। इसके रास्ते में राज्य की विधायिकाओं से लेकर संसद के दोनों सदनों की चुनौतियां आ सकती हैं। 

iii). इस्लामिक देशों पर प्रतिबंध की तैयारी
गौरतलब है कि ट्रंप ने 2016 में चुनाव जीतने के बाद अपने शुरुआती चुनिंदा आदेशों में से एक में कुछ मुस्लिम बहुल देश के लोगों पर यात्रा प्रतिबंध लगाने का एलान किया था। इन देशों में सीरिया, लीबिया, यमन और सूडान जैसे देशों के नाम शामिल थे। ट्रंप की तरफ से लगाए गए इस प्रतिबंध को तब अदालत में चुनौती दी गई थी। आखिरकार राष्ट्रपति जो बाइडन ने प्रतिबंध के नियमों को कमजोर कर दिया। 

हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप ने अपने नए कार्यकाल में इस प्रतिबंध को फिर से लागू करने की बात कही है। इतना ही नहीं, उन्होंने इन देशों से शरणार्थियों के आने पर रोक लगाने का भी वादा किया है। अभी यह साफ नहीं है कि ट्रंप के आदेश में वे आगे किन मुस्लिम देशों पर इस तरह के यात्रा प्रतिबंध लागू करेंगे, हालांकि पश्चिम एशिया के कई देश इसकी जद में आ सकते हैं।

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क्रिस राइट - फोटो : एक्स

2. ऊर्जा क्षेत्र


i). पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने की तैयारी
डोनाल्ड ट्रंप अपने नए कार्यकाल में पहले की तरह ही अमेरिका को वैश्विक पर्यावरणीय नियमों से अलग कर सकते हैं। इसके लिए वह पेरिस जलवायु समझौते से पहले ही अलग होने के संकेत दे चुके हैं। माना जा रहा है कि ट्रंप ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने के लिए एक बार फिर कार्बन उत्सर्जन के प्रभावों की परवाह किए बिना जीवाश्व ईंधन के प्रयोग को बढ़ाने पर जोर दे सकते हैं।

ऊर्जा उत्पादन के मुद्दे पर ट्रंप का लक्ष्य कितना तय है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने नवंबर में चुनाव जीतने के ठीक बाद एलान किया था कि उनकी सरकार में क्रिस राइट को ऊर्जा मंत्री बनाया जाएगा, जो कि जलवायु परिवर्तन को ही कल्पना मानते हैं। बताया जाता है कि ट्रंप ने उन्हें सरकारी कामों में लालफीताशाही कम करने और जीवाश्म ईंधन में निवेश बढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी है।  

ii). नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को रोकने की कोशिश 
डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी सरकार की अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए लीज बंद करने की ओर भी इशारा कर चुके हैं। इसके अलावा वे इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने वाले आदेशों को बंद कर सकते हैं। हालांकि, उनके सहयोगी उद्योगपति एलन मस्क नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग के कट्टर समर्थक रहे हैं। खुद उनकी कंपनी टेस्ला भी ई-वाहन बनाने के लिए जानी जाती है। ऐसे में ट्रंप के इस फैसले को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है।

इतना ही नहीं चुनावों में जीत के बाद उन्होंने पहले दिन ही अक्षय या नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को बंद करने की प्रतिज्ञा ली थी। इससे उद्योग जगत में हड़कंप मच गया और अक्षय ऊर्जा कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गई। ट्रम्प ने पवन ऊर्जा कंपनियों के बारे में कहा, "हम यह सुनिश्चित करने जा रहे हैं कि यह पहले दिन ही समाप्त हो जाए।" ऐसे में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र ट्रंप के निशाने पर रह सकता है। 

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इस्राइल के बेंजामिन नेतन्याहू, अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप और कनाडा के जस्टिन ट्रूडो। - फोटो : अमर उजाला

3. आर्थिक-व्यापार नीतियां

राष्ट्रपति चुनाव जीतने और शपथग्रहण के बीच के 75 दिनों में ट्रंप ने अपने आगामी प्रशासन की आर्थिक और व्यापार नीतियों को लेकर भी रुख साफ कर दिया है। इसी कड़ी में उन्होंने कई देशों को आयात शुल्क लागू करने की चेतावनी तक दी है। दूसरी तरफ उनका मेक अमेरिका ग्रेट अगेन अभियान दुनिया में फैले अमेरिकी व्यापारों को अमेरिकी हितों के प्रति काम करने के लिए मजबूर भी कर सकता है। इससे आने वाले समय में अमेरिकी कंपनियों के दूसरे देशों में होने वाले उत्पादन को अमेरिका या उसके सहयोगी देशों पर केंद्रित किया जा सकता है। 

i). आयात शुल्क लगाने की तैयारी
 ट्रंप के बयान कैसे पूरी दुनिया में हलचल मचा सकते हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां उनकी टैरिफ लगाने की धमकियों ने कनाडा की राजनीति में भूचाल ला दिया है, वहीं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग तक को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के जरिए व्यापार हितों को सुरक्षित रखने की बात कहनी पड़ी है। इस बीच अब ट्रंप ने भारत पर टैरिफ लगाने को लेकर भी बयान दिया है। 

माना जा रहा है कि घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए, विशेष रूप से चीन पर केंद्रित आक्रामक शुल्क लगाए जाएंगे। ट्रंप ने खुद कहा है कि वह  चीन पर टैरिफ को बढ़ा सकते हैं और इसे 60 फीसदी तक पहुंचा सकते हैं। इतना ही नहीं एक नशीले पदार्थ फेंटानिल का आयात न रोकने पर ट्रंप ने चीन को इसके ऊपर 10 फीसदी टैरिफ लगाने की धमकी दी है। ट्रंप ने चीन के कई उत्पादों पर 25 फीसदी तक टैरिफ लगा दिया था। चौंकाने वाली बात यह है कि चीन के साथ बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा के चलते बाइडन सरकार ने भी ट्रंप के बढ़े हुए टैरिफ के फैसले को नहीं बदला।

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जस्टिन ट्रूडो और डोनाल्ड ट्रंप - फोटो : एएनआई
इसके अलावा ट्रंप ने कनाडा और मैक्सिको पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने का एलान किया। डोनाल्ड ट्रंप की इन धमकियों का सबसे ज्यादा असर कनाडा की जस्टिन ट्रूडो सरकार पर हुआ है, जहां पहले सियासी उथल-पुथल के बीच उप-प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड और फिर खुद प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इस्तीफा दे दिया। दूसरी तरफ मैक्सिको से आयात होने वाली कारों पर ट्रंप ने 1000 फीसदी तक टैरिफ लगाने की धमकी दी है। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति का आरोप है कि कनाडा और मैक्सिको से आने वाले शरणार्थियों और नशीले पदार्थों को न रोके जाने की स्थिति में इन देशों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। 

माना जा रहा है कि राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के बाद ट्रंप की निगाह भारत में आयात शुल्क लगाने पर होगी। चीन, कनाडा और मैक्सिको की तरह नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने अब तक यह खुलासा नहीं किया है कि वह भारत से होने वाले आयात पर किस दर से टैरिफ लगा सकते हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि उनका यह कदम जल्द ही आ सकता है। 
 

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अमेरिका का टैरिफ युद्ध। - फोटो : अमर उजाला।
ii). नियमों में कटौती
अमेरिका के आर्थिक विकास और व्यापार में विकास को बढ़ावा देने के लिए संघीय नियमों को कम किया जाएगा। इसके तहत अमेरिकी व्यापारों को बाहरी देशों में उत्पादन कम करने के अलावा अमेरिका में ही उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

4. सैन्य नीतियां-सामाजिक नीतियां
ट्रंप ने घरेलू स्तर पर एक कार्यकारी आदेश के जरिए ट्रांसजेंडरों को सैन्य सेवा से हटाने की बात कही है। उन्होंने इसे लेकर दिसंबर में ही रुख साफ कर दिया था। एक कार्यक्रम में ट्रंप ने कहा कि मैं सबसे पहला आदेश बाल यौन विकृति को समाप्त करने, अमेरिकी सेना, प्राथमिक विद्यालयों, माध्यमिक और हाईस्कूलों से सभी ट्रांसजेंडर्स को हटाने का जारी करूंगा। इसके अलावा उन्होंने कहा कि महिलाओं के खेलों से पुरुषों को भी दूर किया जाएगा। यूएसए सरकार की नीति के तहत यहां केवल दो ही लिंग होंगे।

डोनाल्ड ट्रंप लंबे समय से ट्रांसजेंडर समुदाय के सेना में शामिल किए जाने का विरोध करते रहे हैं। अपने पहले कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने कहा था कि वह इस बारे में बच्चों के सामने नस्लीय सिद्धांत या किसी तरह के लैंगिक-राजनीतिक सामग्री को आगे बढ़ाने वाले स्कूलों की आर्थिक मदद रोक देंगे। इतना ही नहीं ट्रंप खेलों से भी ट्रांसजेंडर्स एथलीट्स को बाहर रखने पर मुखर रहे हैं। 

रिपोर्ट के मुताबिक, 78 वर्षीय ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान भी ऐसा ही आदेश जारी किया था। तब उनके आदेश के तहत सेना में ट्रांसजेंडर्स की भर्ती को रोक दिया गया था। हालांकि, पहले से ही सेवा दे रहे ट्रांसजेंडर्स को अपना काम जारी रखने की इजाजत थी। हालांकि, इस बार वह सेना में मौजूदा समय में सेवा दे रहे ट्रांसजेंडर्स को भी हटाने की तैयारी कर रहे हैं। 

5. युद्ध-संघर्ष के मुद्दों पर

डोनाल्ड ट्रंप के नए कार्यकाल में अमेरिका अब रूस-यूक्रेन संघर्ष से लेकर पश्चिम एशिया तक में जंग के मैदानों में अहम भूमिका निभा सकता है। ब

(i). रूस-यूक्रेन संघर्ष
खबरें हैं कि राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के तुरंत बाद डोनाल्ड ट्रंप अपने रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन से फोन पर बातचीत कर सकते हैं। उनका मकसद 24 घंटे के अंदर अंदर रूस-यूक्रेन युद्ध में संघर्षविराम स्थापित कराना रहेगा। इसके लिए ट्रंप प्रशासन की तरफ से एक योजना भी लीक हुई थी, जिसके तहत रूस और यूक्रेन के कब्जे में जो भी इलाका है, वह उनके पास ही छोड़ दिया जाएगा और दोनों देशों की सेनाओं के बीच एक 30 किलोमीटर का बफर जोन स्थापित होगा। हालांकि, इससे यूक्रेन को एक बड़ा क्षेत्र गंवाना पड़ सकता है। इसके बावजूद ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल को शांति स्थापित करने वाला दर्शाने के लिए इस समझौते पर जोर दे सकते हैं।

वहीं, इसके एवज में ट्रंप प्रशासन यूक्रेन को सशर्त 30 बिलियन डॉलर के सहायता पैकेज का एलान कर सकता है। यह पैकेज युद्धविराम की शर्तों पर आधारित होगा। इज़राइल-हमास संघर्ष: ट्रंप ने अपने चुनावी भाषणों में गाज़ा में चल रहे युद्ध का जिक्र किए बिना कहा था, "मैं युद्ध रोक दूंगा।" यह संकेत देता है कि उनका प्रशासन मध्य पूर्व में शांति स्थापित करने के लिए सक्रिय भूमिका निभा सकता है।

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व्लादिमीर पुतिन (बाएं), डोनाल्ड ट्रंप, इमैनुएल मैक्रों और वोलोदिमीर जेलेंस्की (दाएं)। - फोटो : ANI/X/@ZelenskyyUa
(ii). पश्चिम एशिया के संघर्ष
ट्रंप ने जिस वक्त राष्ट्रपति चुनाव जीता था, तब तक इस्राइल ने लेबनान में हिज्बुल्ला के साथ-साथ गाजा में हमास को भी नेस्तनाबूत कर दिया था। हालांकि, उसे बंधकों को छुड़ाने में सफलता नहीं मिल पाई थी। इसके बाद डोनाल्ड ट्रंप ने हमास को चेतावनी दी थी कि अगर वह इस्राइली बंधकों को जल्द नहीं छोड़ता है तो उसे अंजाम भुगतने होंगे। इसके बाद खबरें आईं कि इस्राइल और हमास के बीच संघर्षविराम पर गंभीरता से विचार चल रहा है। डोनाल्ड ट्रंप के शपथग्रहण से ठीक पहले इस्राइल और हमास के बीच 19 जनवरी को युद्धबंदी पर सहमति बन भी गई।
  • इस बड़े संघर्ष के पहले चरण के पूरे होने के बाद ट्रंप प्रशासन अगले चरणों को शांतिपूर्ण तरीके से पूरा कराने की कोशिश करेगा। 
  • इसके अलावा सीरिया में हाल ही में बशर-अल असद सरकार के गिरने और विद्रोही सरकार के सत्ता में आने के बाद ट्रंप इस क्षेत्र में भी अमेरिका का वर्चस्व बढ़ाने की कोशिश करेंगे। 
  • ट्रंप प्रशासन ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर कड़े प्रतिबंध लगाने और उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की योजना बना सकता है।
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