चीन का मुकाबला करने के लिए बाइडन ने सुझाई तीन सूत्रीय रणनीति, इन सेक्टर्स में बढ़ाएंगे निवेश!
बाइडन ने स्वीकार किया है कि चीन और अमेरिकी व्यवस्थाओं के बीच एक मजबूत होड़ शुरू हो गई है। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियां इस पर पीएचडी करेंगी कि इस होड़ में तानाशाही व्यवस्था की जीत हुई या लोकतंत्र की...
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राष्ट्रपति बनने के बाद अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में जो बाइडन ने चीन का मुकाबला करने की अपनी रणनीति को पहली बार साफ किया। उन्होंने ये साफ कहा कि अमेरिकी रुख में सख्ती चीन के साथ संबंध में सिर्फ एक पहलू है। इसका दूसरा पहलू इससे भी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है, और वह है अमेरिका को चीन से प्रतिस्पर्धा के लायक बनाना। बाइडन ने बताया कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से पिछले महीने फोन पर हुई दो घंटों की बातचीत में उन्होंने ये साफ कहा था कि अमेरिका टकराव बढ़ाने की फिराक में नहीं है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि दोनों देशों के बीच बेहद तीव्र प्रतिस्पर्धा होगी। बाइडन ने कहा कि अमेरिका सिर्फ यह चाहता है कि चीन अंतरराष्ट्रीय नियमों, उचित प्रतिस्पर्धा, उचित व्यवहार और उचित व्यापार का पालन करे।
बाइडन ने जो कहा कि उससे उनकी चीन का मुकाबला करने की तीन सूत्री रणनीति सामने आई। इसमें सबसे पहली बात अमेरिकी श्रमिकों और अमेरिकी विज्ञान में बड़ा निवेश है। बाइडन ने कहा- ‘भविष्य इस पर निर्भर करता है कि टेक्नोलॉजी, क्वांटम कंप्यूटिंग और मेडिकल क्षेत्र सहित बहुत से मामलों में कौन आगे रहता है।’ इसलिए उन्होंने भविष्य के उद्योगों, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग और बायो-टेक में निवेश बढ़ाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि चीन अपनी भविष्य की योजना के तहत अमेरिका की तुलना में बहुत ज्यादा निवेश कर रहा है और अब ‘हम भी वास्तविक निवेश करने जा रहे हैं।’
बाइडन की रणनीति का दूसरा सूत्र अपने सहयोगी देशों के साथ फिर से गठबंधन कायम करना है। गौरतलब है कि बाइडन ने वाशिंगटन में ‘एलायंस ऑफ डेमोक्रेसीज’ (लोकतांत्रिक देशों के गठबंधन) की बैठक आयोजित करने की योजना बनाई हुई है। इसमें बुलाए गए देश ‘नियमों के पालन के मामले में चीन को उत्तरदायी बनाने’ के उपायों और भविष्य की रणनीति के बारे में चर्चा करेंगे।
बाइडन का तीसरा सूत्र ‘अमेरिकी उसूलों’ के पक्ष में खड़ा होना है। इसके तहत चीन में मानवाधिकारों के हनन का मसला उठाया जाएगा। बाइडन ने कहा- 'अमेरिका मानव अधिकारों को महत्व देता है। हम हमेशा अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते, लेकिन यह एक आधारभूत मूल्य है। हमारा देश इसी सिद्धांत पर कायम हुआ है।' बाइडन ने कहा कि जब तक चीन मानव अधिकारों का उल्लंघन करता रहेगा, अमेरिका उसकी तरफ दुनिया का का ध्यान खींचता रहेगा।
बाइडन ने स्वीकार किया है कि चीन और अमेरिकी व्यवस्थाओं के बीच एक मजबूत होड़ शुरू हो गई है। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियां इस पर पीएचडी करेंगी कि इस होड़ में तानाशाही व्यवस्था की जीत हुई या लोकतंत्र की। हालांकि बाइडन ने कहा कि बात सिर्फ चीन की नहीं है। बल्कि यह है कि हम चौथी औद्योगिक क्रांति के बीच में हैं, जिसके बड़े परिणाम होंगे। आज सवाल यह है कि क्या मध्य वर्ग बचेगा, लोग इन महत्वपूर्ण वैज्ञानिक और तकनीकी परिवर्तनों के बीच खुद को कैसे एडजस्ट करेंगे और पर्यावरण का क्या होगा। बाइडन ने कहा- ‘यह बिल्कुल साफ है कि यह 21वीं सदी में लोकतंत्र और तानाशाही के बीच की लड़ाई है। यही बात दांव पर लगी है। हमें साबित करना है कि लोकतंत्र कारगर हो सकता है।’
विश्लषकों का कहना है कि कोरोना महामारी के कारण पश्चिमी देशों में मची तबाही के कारण चीन लगातार अपनी व्यवस्था के बेहतर होने का दावा कर रहा है। चीन में महामारी पर जल्द काबू पा लेने और उसके बाद अर्थव्यवस्था को सुधार लेने को उसने अपनी व्यवस्था की श्रेष्ठता के रूप में पेश किया है। राष्ट्रपति बाइडन की ताजा टिप्पणियों से साफ है कि उन्होंने इस दावे की गंभीरता को समझा है। उन्होंने समझा है कि अमेरिकी व्यवस्था के बेहतर होने को सिद्ध करने के लिए अब अमेरिका को गंभीर प्रयास करने होंगे।