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क्या है अमेरिका का ट्रांसशिपमेंट नियम: कैसे 50% टैरिफ के बाद भी प्रतिद्वंद्वियों से कम हो सकता है अपना नुकसान?

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Thu, 28 Aug 2025 06:47 AM IST
सार
अमेरिका की तरफ से भारतीय उत्पादों पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने के एलान के बीच एक नियम भारत के निर्यात सेक्टर के लिए राहत की वजह बन सकता है। यह नियम है ट्रांसशिपमेंट का नियम, जिसे लेकर ट्रंप प्रशासन लगातार सख्ती बरत रहा है। 
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US Transshipment clause for third country trade origin Tariff War India Import Duties relief on export explain
भारत के निर्यातों पर ट्रंप के टैरिफ का असर। - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से भारत पर लगाया गया 50 फीसदी टैरिफ प्रभावी हो गया है। जहां 25 फीसदी आयात शुल्क 7 अगस्त से ही प्रभाव में आ गया था, वहीं रूस से तेल खरीद के लिए अमेरिका का 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ, जिसे ट्रंप प्रशासन जुर्माना भी कह रहा है, वह भी बुधवार से प्रभावी हो गया। यानी भारत के उत्पादों पर अमेरिका अब कुल 50 फीसदी टैरिफ लगा रहा है। 


अमेरिका के इस फैसले का असर भारत के कुछ उद्योगों पर दिखने भी लगा है। मसलन- पंजाब के रेडीमेड गारमेंट्स से लेकर कानपुर के चमड़ा उद्योग और जूतों के उत्पादन पर बड़ा असर पड़ने की आशंका है। निर्यातकों का कहना है कि उनकी तरफ से फिलहाल अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले ऑर्डर रोक दिए गए हैं।

फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गेनाइजेशन के प्रधान एससी रल्हन का कहना है कि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है और इस कदम से करीब 55 प्रतिशत निर्यात, जिसकी कीमत 47–48 अरब डॉलर है, पर सीधी मार झेलेगा। उन्होंने कहा कि बढ़े हुए शुल्क से भारतीय उत्पाद अब चीन, वियतनाम, कंबोडिया, फिलीपींस और अन्य एशियाई देशों के मुकाबले महंगे हो जाएंगे।

कारोबारियों की इन चिंताओं के बीच अमेरिका का एक नियम भारत के निर्यात सेक्टर के लिए राहत की वजह बन सकता है। यह नियम है ट्रांसशिपमेंट का नियम, जिसे लेकर ट्रंप प्रशासन लगातार सख्ती बरत रहा है। आइये जानते हैं कैसे इस नियम से भारतीय निर्यातकों की समस्याएं कम हो सकती हैं...

क्या होता है ट्रांसशिपमेंट, इससे कैसे अमेरिका के टैरिफ से बच रहे थे कुछ देश
ट्रांसशिपमेंट का सीधे शब्दों में मतलब है- उत्पादों को किसी तीसरे देश के जरिए भेजा जाना। आमतौर पर कई देश इसके जरिए अपने उत्पादों का मूल छिपाने की कोशिश करते हैं, ताकि उन पर अतिरिक्त आयात शुल्क न लगे। इस मामले में चीन का उदाहरण ले सकते हैं। ट्रंप प्रशासन की तरफ से सबसे पहले चीन पर उच्च आयात शुल्क लगाए गए थे। तब खबरें आई थीं कि चीन के निर्यातक अपने उत्पादों को पहले ऐसे देशों में भेज रहे हैं, जहां अमेरिका ने कम टैरिफ लगाया हैं। इसके बाद इन तीसरे देशों के जरिए अमेरिका को उत्पादों का निर्यात किया जाता है। 

इस तरह चीन के उत्पाद न सिर्फ उच्च टैरिफ से बच रहे थे, बल्कि तीसरे देश के बराबर (0-30 फीसदी) आयात शुल्क की रेंज में ही पहुंच गए। 

ये भी पढ़ें: कपड़े, आभूषण और...: ट्रंप के टैरिफ 50% होने का क्या नतीजा, किस सेक्टर पर होगा कितना असर; कौन रहेगा बेअसर?

बताया जाता है कि चीन ने इसके जरिए अमेरिका की तरफ से लगने वाले उच्च आयात शुल्क से अपने उत्पादों को लंबे समय तक बचाया है। चीन अपने उत्पादों के ट्रांसशिपमेंट के लिए न सिर्फ थाईलैंड, बल्कि वियतनाम का भी जबरदस्त इस्तेमाल करता रहा है। इसके अलावा मलयेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों को भी चीन ट्रांसशिपमेंट मार्गों के तौर पर इस्तेमाल करता रहा है। 



इसके चलते मई में चीन और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर वार्ता होने से ठीक पहले तक भले ही चीन का अमेरिका को होने वाला सीधा निर्यात कम हो गया, लेकिन चीनी कंपनियों ने ट्रांसशिपमेंट का फायदा उठाते हुए अपने उत्पादों को अमेरिका पहुंचाना जारी रखा और कंपनियों के नुकसान को कम से कम रखा। 

ट्रांसशिपमेंट पर अमेरिका का नया नियम कैसे कम कर सकता है भारत का नुकसान?
हालांकि, तीसरे देशों के जरिए अपने उत्पादों को अमेरिका के भारी-भरकम आयात शुल्क से बचाने की चीन की इस तरकीब का कुछ समय में ही खुलासा हो गया। इसके बाद ट्रंप प्रशासन ने अपनी नई ट्रांसशिपमेंट नीति लाने का एलान कर दिया। अमेरिकी नीति निर्माताओं ने ट्रांसशिपमेंट रोकने की जो योजना बनाई, उसके मुताबिक वियतनाम और थाईलैंड जैसे देश जो किसी देश के उत्पादों की पहचान छिपाने और उन्हें अपने यहां से अमेरिका तक पहुंचाने में मदद करेंगे, उन पर कुल टैरिफ से 40 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाया जाएगा। यानी दक्षिणपूर्वी देशों पर ट्रांसशिपमेंट की वजह से टैरिफ 55 से 70 फीसदी तक पहुंचने का खतरा पैदा हो गया।

भारत के नुकसान को कैसे कम कर सकते हैं ट्रांसशिपमेंट के नए नियम?
गौरतलब है कि भारत पर अमेरिका ने कुल 50 फीसदी टैरिफ लगाया है। यानी दक्षिण-पूर्वी देशों पर 15-30 फीसदी की रेंज में टैरिफ भारत के मुकाबले काफी कम है। ऐसे में मौजूदा समय में कपड़ों से लेकर जूते और ज्वैलरी से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के निर्यात में भारत के निर्यातक इन दक्षिण-पूर्वी देशों के निर्यातकों के मुकाबले घाटे में रह सकते हैं। 

हालांकि, अगर अमेरिका ट्रांसशिपमेंट के नियमों को लागू कर देता है तो थाईलैंड से लेकर वियतनाम तक उनके कुल टैरिफ का 40 फीसदी अतिरिक्त जुर्माना लगाया जा सकता है। ऐसे में उन पर लगने वाला आयात शुल्क 55 से 70 फीसदी की रेंज में पहुंच सकता है, जो कि भारत के 50 फीसदी टैरिफ से ज्यादा होगा। इससे भारत अपने प्रतिद्वंद्वी निर्यातकों के मुकाबले अमेरिकी बाजार में ज्यादा प्रतियोगी कीमतों पर उत्पाद उपलब्ध करा सकता है और अपने नुकसान को कम कर सकता है।

इसे आसानी से ऐसे समझ सकते हैं। अगर भारत से निर्यात किए जा रहे जूतों पर अमेरिका 50 फीसदी टैरिफ लगाता है तो 1000 रुपये के जूते की कीमत वहां 1500 रुपये (1000 रुपये मूल कीमत + 500 रुपये अतिरिक्त टैरिफ) हो जाएगी। हालांकि, अगर दक्षिण-पूर्वी देशों पर ट्रांसशिपमेंट का जुर्माना लगने लगता है तो उसके द्वारा निर्यात किए जाने वाले 1000 रुपये के जूते की कीमत वहां 1550 रुपये से 1700 रुपये (1000 रुपये मूल कीमत, + 15-30 फीसदी टैरिफ + 40 फीसदी ट्रांसशिपमेंट जुर्माना) तक पहुंच जाएगी।

यानी भारत के उत्पादों की कीमत अपने प्रतिद्वंद्वी देशों के मुकाबले अमेरिकी बाजार में कम हो सकती है या प्रतियोगिता के दायरे में रह सकती है। हालांकि, इसका फायदा भारत के लिए सीमित ही रहेगा, क्योंकि ट्रांसशिपमेंट पर रोक लगाकर दक्षिण-पूर्वी देश इन टैरिफ के असर को कुछ समय में ही हटवा सकते हैं। उधर भारत और अमेरिका के बीच फिलहाल व्यापार समझौते पर बातचीत अभी काफी दूर की कौड़ी नजर आती है। साथ ही रूस-यूक्रेन संघर्ष खत्म होने और भारत पर अतिरिक्त 25 फीसदी टैरिफ के भी जल्द हटने की उम्मीद कम ही है।
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