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USA: क्या है पनामा नहर की अहमियत, जिस पर चीन के कब्जे से घबराया अमेरिका, ट्रंप ने दे डाली खुली धमकी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, वॉशिंगटन
Published by: नितिन गौतम
Updated Sun, 22 Dec 2024 11:46 AM IST
सार
ट्रंप ने कहा कि पनामा नहर का प्रबंधन स्वीकार्य तरीके से नहीं होता है तो अमेरिका इस पर कब्जा कर सकता है। ट्रंप ने चेतावनी दी कि पनामा नहर को 'गलत हाथों' में नहीं जाने देंगे।
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पनामा नहर को लेकर अमेरिका की बढ़ी चिंता
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
चीन लगातार दुनिया में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है और अब चीन का प्रभाव इस कदर बढ़ चुका है कि अमेरिका को उससे गंभीर खतरा महसूस होने लगा है। ताइवान के बाद अब पनामा नहर भी ऐसा मुद्दा बनने के कगार पर है, जहां चीन और अमेरिका भिड़ सकते हैं। हालात ये हो गए हैं कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पनामा को खुली धमकी दे दी है और कहा है कि अगर पनामा स्वीकार्य तरीके से पनामा नहर का प्रबंधन नहीं करता है तो फिर अमेरिका फिर से इस पर अपना कब्जा कर सकता है। तो आइए जानते हैं कि क्या है पनामा नहर की अहमियत, जिसके चलते अमेरिका-चीन में ठन सकती है और ट्रंप ने पनामा की सरकार को धमकी क्यों दी?
ट्रंप क्यों हुए नाराज?
अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को अपने एक बयान में पनामा की सरकार पर आरोप लगाया कि पनामा नहर के इस्तेमाल के लिए ज्यादा दरें वसूली जा रही हैं। ट्रंप ने कहा कि पनामा नहर का प्रबंधन स्वीकार्य तरीके से नहीं होता है तो अमेरिका इस पर कब्जा कर सकता है। सोशल मीडिया पर साझा एक पोस्ट में ट्रंप ने चेतावनी दी कि पनामा नहर को 'गलत हाथों' में नहीं जाने देंगे। ट्रंप का इशारा चीन की तरफ माना जा रहा है। ट्रंप ने लिखा कि पनामा नहर का प्रबंधन चीन के द्वारा नहीं किया जाना चाहिए।
पनामा नहर क्यों है अहम, जिस पर कब्जे से घबराया अमेरिका
पनामा नहर वैश्विक भू-राजनीति में अहम मानी जाती है। यह 82 किलोमीटर लंबी नहर अटलांटिक महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ती है। पूरी दुनिया का छह फीसदी समुद्री व्यापार पनामा नहर से ही होता है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था के लिए भी पनामा नहर बेहद अहम है क्योंकि अभी न्यूयॉर्क से सैन फ्रांसिस्को जाने वाले मालवाहक जहाजों को पनामा नहर के जरिए दूरी 8370 किलोमीटर पड़ती है, लेकिन अगर पनामा नहर की बजाय पुराने मार्ग से माल भेजा जाए तो जहाजों को पूरे दक्षिण अमेरिकी देशों का चक्कर लगाने के बाद सैन फ्रांसिस्को जाना होगा और ये दूरी 22 हजार किलोमीटर से ज्यादा होगी।
अमेरिका का 14 फीसदी व्यापार पनामा नहर के जरिए ही होता है। कह सकते हैं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए ही पनामा नहर लाइफलाइन का काम करती है। अमेरिका के साथ ही दक्षिण अमेरिकी देशों का बड़ी संख्या में आयात-निर्यात भी पनामा नहर के जरिए ही होता है। एशिया से अगर कैरेबियाई देश माल भेजना हो तो जहाज पनामा नहर से होकर ही गुजरते हैं। खुद पनामा की अर्थव्यवस्था इस नहर पर निर्भर है और पनामा की सरकार को पनामा के प्रबंधन से ही हर साल अरबों डॉलर की कमाई होती है। पनामा नहर पर कब्जा होने की स्थिति में पूरी दुनिया की आपूर्ति श्रृंख्ला बाधित होने का खतरा है।
पनामा नहर का निर्माण साल 1881 में फ्रांस ने शुरू किया था, लेकिन इसे साल 1914 में अमेरिका द्वारा इस नहर के निर्माण को पूरा किया गया। इसके बाद पनामा नहर पर अमेरिका का ही नियंत्रण रहा, लेकिन साल 1999 में अमेरिका ने पनामा नहर का नियंत्रण पनामा की सरकार को सौंप दिया। अब इसका प्रबंधन पनामा कैनाल अथॉरिटी द्वारा किया जाता है। पनामा नहर को इंजीनियरिंग का चमत्कार माना जाता है और इसे आधुनिक दुनिया के इंजीनियरिंग के सात अजूबों में से एक माना जाता है।
चीन की पनामा नहर पर नजर
पनामा नहर को लेकर पर्दे के पीछे चीन और अमेरिका के बीच तनातनी चल रही है। इसे लेकर दोनों देशों में तनाव बढ़ रहा है। चीन अपनी बढ़ती आर्थिक ताकत के जरिए पूरी दुनिया के जलमार्गों पर अपना प्रभाव बढ़ाने में जुटा है। बीते दिनों अमेरिकी नौसेना के एक शीर्ष अधिकारी ने चिंता जाहिर की थी कि चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के जरिए लगातार पनामा नहर पर अपना राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव बढ़ा रहा है। पनामा में अमेरिका की राजदूत मार्ल कारमन अपोंटे ने भी चीन के पनामा नहर पर बढ़ते प्रभाव पर नाराजगी जाहिर की थी और कहा था कि अमेरिका नहीं चाहता कि ऐसी स्थिति पैदा हो, जिसमें पनामा को अमेरिका और चीन में से किसी एक को चुनने का विकल्प बचे।
पनामा नहर पर कैसे अपना प्रभाव बढ़ा रहा चीन
चीन अभी हांगकांग स्थित हचल्सन कंपनी के जरिए पनामा के बंदरगाह के पांच बड़े जोन को नियंत्रित करता है। इनमें से दो जोन्स पनामा नहर के मार्ग पर ही स्थित हैं। साथ ही चीनी कंपनियां एमाडोर पैसिफिक कोस्ट क्रूज टर्मिनल का काम कर रही है। चीन की ही एक कंपनी ने पनामा के अटलांटिक महासागर की तरफ सबसे बड़े बंदरगाह का नियंत्रण भी साल 2016 में खरीद लिया था। चीन की ही एक कंपनी पनामा नहर पर एक पुल का भी निर्माण कर रही है। इनके अलावा भी चीन की विभिन्न कंपनियां पनामा में बुनियादी ढांचे के विकास कार्यों में लगी हैं। यही वजह है कि पनामा में चीन के दिनों-दिन बढ़ते प्रभाव से अमेरिका परेशान है और अब ट्रंप ने खुलेआम पनामा की सरकार को धमकी दे दी है कि वे पनामा नहर का प्रबंधन 1999 से पहले की तरह फिर से अपने हाथ में ले सकते हैं।
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ट्रंप क्यों हुए नाराज?
अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को अपने एक बयान में पनामा की सरकार पर आरोप लगाया कि पनामा नहर के इस्तेमाल के लिए ज्यादा दरें वसूली जा रही हैं। ट्रंप ने कहा कि पनामा नहर का प्रबंधन स्वीकार्य तरीके से नहीं होता है तो अमेरिका इस पर कब्जा कर सकता है। सोशल मीडिया पर साझा एक पोस्ट में ट्रंप ने चेतावनी दी कि पनामा नहर को 'गलत हाथों' में नहीं जाने देंगे। ट्रंप का इशारा चीन की तरफ माना जा रहा है। ट्रंप ने लिखा कि पनामा नहर का प्रबंधन चीन के द्वारा नहीं किया जाना चाहिए।
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पनामा नहर क्यों है अहम, जिस पर कब्जे से घबराया अमेरिका
पनामा नहर वैश्विक भू-राजनीति में अहम मानी जाती है। यह 82 किलोमीटर लंबी नहर अटलांटिक महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ती है। पूरी दुनिया का छह फीसदी समुद्री व्यापार पनामा नहर से ही होता है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था के लिए भी पनामा नहर बेहद अहम है क्योंकि अभी न्यूयॉर्क से सैन फ्रांसिस्को जाने वाले मालवाहक जहाजों को पनामा नहर के जरिए दूरी 8370 किलोमीटर पड़ती है, लेकिन अगर पनामा नहर की बजाय पुराने मार्ग से माल भेजा जाए तो जहाजों को पूरे दक्षिण अमेरिकी देशों का चक्कर लगाने के बाद सैन फ्रांसिस्को जाना होगा और ये दूरी 22 हजार किलोमीटर से ज्यादा होगी।
अमेरिका का 14 फीसदी व्यापार पनामा नहर के जरिए ही होता है। कह सकते हैं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए ही पनामा नहर लाइफलाइन का काम करती है। अमेरिका के साथ ही दक्षिण अमेरिकी देशों का बड़ी संख्या में आयात-निर्यात भी पनामा नहर के जरिए ही होता है। एशिया से अगर कैरेबियाई देश माल भेजना हो तो जहाज पनामा नहर से होकर ही गुजरते हैं। खुद पनामा की अर्थव्यवस्था इस नहर पर निर्भर है और पनामा की सरकार को पनामा के प्रबंधन से ही हर साल अरबों डॉलर की कमाई होती है। पनामा नहर पर कब्जा होने की स्थिति में पूरी दुनिया की आपूर्ति श्रृंख्ला बाधित होने का खतरा है।
पनामा नहर का निर्माण साल 1881 में फ्रांस ने शुरू किया था, लेकिन इसे साल 1914 में अमेरिका द्वारा इस नहर के निर्माण को पूरा किया गया। इसके बाद पनामा नहर पर अमेरिका का ही नियंत्रण रहा, लेकिन साल 1999 में अमेरिका ने पनामा नहर का नियंत्रण पनामा की सरकार को सौंप दिया। अब इसका प्रबंधन पनामा कैनाल अथॉरिटी द्वारा किया जाता है। पनामा नहर को इंजीनियरिंग का चमत्कार माना जाता है और इसे आधुनिक दुनिया के इंजीनियरिंग के सात अजूबों में से एक माना जाता है।
चीन की पनामा नहर पर नजर
पनामा नहर को लेकर पर्दे के पीछे चीन और अमेरिका के बीच तनातनी चल रही है। इसे लेकर दोनों देशों में तनाव बढ़ रहा है। चीन अपनी बढ़ती आर्थिक ताकत के जरिए पूरी दुनिया के जलमार्गों पर अपना प्रभाव बढ़ाने में जुटा है। बीते दिनों अमेरिकी नौसेना के एक शीर्ष अधिकारी ने चिंता जाहिर की थी कि चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के जरिए लगातार पनामा नहर पर अपना राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव बढ़ा रहा है। पनामा में अमेरिका की राजदूत मार्ल कारमन अपोंटे ने भी चीन के पनामा नहर पर बढ़ते प्रभाव पर नाराजगी जाहिर की थी और कहा था कि अमेरिका नहीं चाहता कि ऐसी स्थिति पैदा हो, जिसमें पनामा को अमेरिका और चीन में से किसी एक को चुनने का विकल्प बचे।
पनामा नहर पर कैसे अपना प्रभाव बढ़ा रहा चीन
चीन अभी हांगकांग स्थित हचल्सन कंपनी के जरिए पनामा के बंदरगाह के पांच बड़े जोन को नियंत्रित करता है। इनमें से दो जोन्स पनामा नहर के मार्ग पर ही स्थित हैं। साथ ही चीनी कंपनियां एमाडोर पैसिफिक कोस्ट क्रूज टर्मिनल का काम कर रही है। चीन की ही एक कंपनी ने पनामा के अटलांटिक महासागर की तरफ सबसे बड़े बंदरगाह का नियंत्रण भी साल 2016 में खरीद लिया था। चीन की ही एक कंपनी पनामा नहर पर एक पुल का भी निर्माण कर रही है। इनके अलावा भी चीन की विभिन्न कंपनियां पनामा में बुनियादी ढांचे के विकास कार्यों में लगी हैं। यही वजह है कि पनामा में चीन के दिनों-दिन बढ़ते प्रभाव से अमेरिका परेशान है और अब ट्रंप ने खुलेआम पनामा की सरकार को धमकी दे दी है कि वे पनामा नहर का प्रबंधन 1999 से पहले की तरह फिर से अपने हाथ में ले सकते हैं।