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कौन हैं सीरिया में आईएसआईएस से जंग लड़ रहे कुर्द, जिनपर तुर्की बरसा रहा बम

वर्ल्ड डेस्क, दमिश्क Published by: Priyesh Mishra Updated Fri, 11 Oct 2019 03:22 PM IST
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Who are Kurds Why they fight against ISIS in Syria why Turkey attacks Know All
कुर्द लड़ाके - फोटो : सोशल मीडिया

नौ अक्तूबर की दोपहर सीरिया के आसामान पर तुर्की लड़ाकू विमानों की गूंज सुनकर लोगों के जहन में एक बार फिर खौफ बैठ गया। तुर्क वायुसेना ने इन हमलों के जरिये सीरिया में आईएसआईएस से मुकाबला कर रहे कुर्द लड़ाकों के ठिकानों को निशाना बनाया। सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्स ने दावा किया कि तुर्की के हवाई हमलों में दो महिलाओं की मौत हुई है।


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नौ अक्तूबर की दोपहर सीरिया के आसामान पर तुर्की लड़ाकू विमानों की गूंज सुनकर लोगों के जहन में एक बार फिर खौफ बैठ गया। तुर्क वायुसेना ने इन हमलों के जरिये सीरिया में आईएसआईएस से मुकाबला कर रहे कुर्द लड़ाकों के ठिकानों को निशाना बनाया। सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्स ने दावा किया कि तुर्की के हवाई हमलों में दो महिलाओं की मौत हुई है।

तुर्की की इस आक्रामक कार्रवाई का विरोध पूरी दुनिया एक सुर में कर रही है। भारत ने भी तुर्की के इस कदम को क्षेत्रीय स्थिरता और सीरिया की संप्रभुता का उल्लंघन माना है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि इससे क्षेत्र में गंभीर मानवीय संकट खड़ा हो सकता है।

उल्लेखनीय है कि तुर्की ने यह कदम सीरिया के युद्धग्रस्त क्षेत्रों से अमेरिकी फौज के निकलने के बाद उठाया है। इन हमलों ने कुर्द समस्या को एक बार दुनिया के सामने खड़ा कर दिया है।

कौन हैं कु्र्द और क्यों हैं मुफलिस

कुर्द लड़ाके
कुर्द लड़ाके - फोटो : सोशल मीडिया
कुर्द मध्य-पूर्व का चौथा सबसे बड़े जातीय समूह हैं। ज्यादातर कुर्द सुन्नी इस्लाम को मानते हैं। लेकिन इस समुदाय में कई और धर्मों के मानने वाले लोग भी शामिल हैं। साझा संस्कृति इन लोगों को आपस में जोड़ती है। कुर्द तुर्की के पहाड़ी इलाकों और सीमाई क्षेत्रों के साथ-साथ इराक, सीरिया, ईरान और अर्मेनिया में भी रहते हैं।

ऐसा अनुमान है कि इस क्षेत्र में इनकी आबादी लगभग साढ़े तीन करोड़ हो सकती है। इतनी जनसंख्या के बावजूद कुर्दों का कोई अलग एक देश नहीं है। कुर्द तुर्की में अपनी स्वायत्तता के लिए लड़ रहे हैं तो सीरिया और इराक में आईएसआईएस के खिलाफ जमीनी संघर्ष कर रहे हैं।

अलग देश अब भी कुर्दों के लिए एक सपना ही

20वीं सदी की शुरुआत में कुर्दों ने अलग देश कुर्दिस्तान बनाने की मुहिम शुरू की थी। ऑटोमन साम्राज्य के पतन और पहले विश्व युद्ध के बाद विजेता पश्चिमी गठबंधन ने 1920 की सेवरेस संधि में कुर्दों के अलग देश का प्रावधान रखा था। लेकिन, 1923 में तुर्की के प्रसिद्ध नेता मुस्तफा कमाल पाशा ने इस संधि को खत्म कर दिया। इसके बाद तुर्की की सेना ने 1920 और 1930 के दशक में कुर्दिश आंदोलन को रौंद दिया।

इस्लामिक स्टेट से क्यों कर रहे हैं मुकाबला

कुर्द लड़ाके
कुर्द लड़ाके - फोटो : सोशल मीडिया
इस्लामिक स्टेट ने 2013 से ही सीरिया में कुर्द लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था। इस वजह से बड़ी संख्या में जनहानि हुई। इसके बाद कुर्दों ने पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट्स का गठन कर अपनी रक्षा के लिए लड़ाके तैयार किए। आईएस से लड़ने के लिए सीरियाई कुर्दिश डेमोक्रेटिक यूनिटी पार्टी ने भी हथियारबंद संगठन बनाया।

कुर्दों की जांबाजी के किस्से कई दशकों पुराने हैं। 1920 में इराक में कुर्दिस्तान की लड़ाई के लिए इन्होंने एक हथियारबंद संगठन बनाया था, जिसका नाम पेशमर्गा था। इसका मतलब मौत का सामना करने वाले लोग होता है।

कुर्द के पेशमर्गा लड़ाकों और आईएसआईएस के बीच खूनी संघर्ष 2014 में शुरू हुआ जब आईएस के लड़ाकों ने मोसुल पर हमला बोला। इस दौरान इराकी सेना में फूट पड़ गई और मजबूरन सरकार को पेशमर्गा लड़ाकों को इन खाली इलाकों में तैनात करना पड़ा।

तुर्की ने इस्लामिक स्टेट से लड़ने में कुर्दों की मदद क्यों नहीं की

कुर्द लड़ाके
कुर्द लड़ाके - फोटो : सोशल मीडिया
आधुनिक तुर्की के संस्थापक मुस्तफा कमाल पाशा के समय से ही कुर्दों और तुर्की के बीच गहरी दुश्मनी रही है। तुर्की की कुल आबादी का 15 से 20 फीसदी कुर्द हैं, फिर भी उन्हें बराबरी का हक नहीं है। तुर्की ने कुर्दिश नाम और उनके रिवाजों को प्रतिबंधित तो किया ही साथ ही कुर्दिश भाषा के प्रयोग पर भी रोक लगा दी। यहां तक कि कुर्दिश पहचान को भी खारिज किया गया। तुर्की की सरकार ने कुर्दों को पहाड़ी तुर्क करार दिया।

1978 में कुर्द नेता अब्दुल्लाह ओकालन ने तुर्की में कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) नाम के संगठन की स्थापना की। इस संगठन ने तुर्की के अंदर स्वतंत्र राष्ट्र के लिए सशस्त्र संघर्ष को शुरू किया। एक अनुमान के अनुसार तब से अब तक इस संघर्ष में 40 हजार लोग मारे जा चुके हैं। ऐसा अंदेशा है कि हजारों लोगों को इसकी वजह से विस्थापन का दंश भी झेलना पड़ा है।

इसके बाद तुर्की की जवाबी कार्रवाई की वजह से अब्दुल्ला ओजलान भागकर सीरिया चले गए। वहां उन्हें बशर अल असद के पिता हाफिज उल असद ने पनाह दी। तुर्की अपने यहां सक्रिय रहे कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी यानी की पीकेके को चरमपंथी संगठन घोषित कर चुका है। तुर्की के साथ ही अमेरिका और यूरोपीय यूनियन भी पीकेके को चरमपंथी संगठन मानता है।

तुर्की ने साल 2018 में पश्चिमी सीरिया में कुर्दों के नियंत्रण वाले आफ़रीन प्रांत में हमला किया था जिसमें कई आम लोग मारे गए थे और दस हजार लोग विस्थापित हुए थे।

अमेरिका क्यों नहीं कर रहा कुर्दों की मदद

US President Donald Trump
US President Donald Trump - फोटो : PTI
अमेरिका ने जब उत्तर-पूर्वी सीरिया में आईएस को खत्म करने के लिए वाईपीजी की मदद ली तो इस कुर्द संगठन को लगा कि उसके स्वायत्त देश का सपना जल्द पूरा हो जाएगा। अमेरिका ने यजीदी प्रोटेक्शन ग्रुप (वाईपीजी) की पैसे और हथियारों से मदद की और इस संगठन ने आईएस को हराने में बड़ी भूमिका निभाई।

विशेषज्ञों के अनुसार, अगर अमेरिका कुर्दों की मदद कुर्दिस्तान को बनाने में करता है तो ईरान, इराक, तुर्की और सीरिया की सेनाएं एक साथ हो जाएंगी। इससे यूरोप-अमेरिका की कोई भी कोशिश नाकाम हो जाएगी। कुर्दिस्तान का निर्माण इन देशों के हिस्सों को मिलाकर किया जाना है। हालांकि, अमेरिका और यूरोपीय देश कुर्दों को अधिक अधिकार दिलवाने की कोशिश कर सकते हैं।
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