कौन हैं सीरिया में आईएसआईएस से जंग लड़ रहे कुर्द, जिनपर तुर्की बरसा रहा बम
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नौ अक्तूबर की दोपहर सीरिया के आसामान पर तुर्की लड़ाकू विमानों की गूंज सुनकर लोगों के जहन में एक बार फिर खौफ बैठ गया। तुर्क वायुसेना ने इन हमलों के जरिये सीरिया में आईएसआईएस से मुकाबला कर रहे कुर्द लड़ाकों के ठिकानों को निशाना बनाया। सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्स ने दावा किया कि तुर्की के हवाई हमलों में दो महिलाओं की मौत हुई है।
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नौ अक्तूबर की दोपहर सीरिया के आसामान पर तुर्की लड़ाकू विमानों की गूंज सुनकर लोगों के जहन में एक बार फिर खौफ बैठ गया। तुर्क वायुसेना ने इन हमलों के जरिये सीरिया में आईएसआईएस से मुकाबला कर रहे कुर्द लड़ाकों के ठिकानों को निशाना बनाया। सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्स ने दावा किया कि तुर्की के हवाई हमलों में दो महिलाओं की मौत हुई है।
तुर्की की इस आक्रामक कार्रवाई का विरोध पूरी दुनिया एक सुर में कर रही है। भारत ने भी तुर्की के इस कदम को क्षेत्रीय स्थिरता और सीरिया की संप्रभुता का उल्लंघन माना है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि इससे क्षेत्र में गंभीर मानवीय संकट खड़ा हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि तुर्की ने यह कदम सीरिया के युद्धग्रस्त क्षेत्रों से अमेरिकी फौज के निकलने के बाद उठाया है। इन हमलों ने कुर्द समस्या को एक बार दुनिया के सामने खड़ा कर दिया है।
कौन हैं कु्र्द और क्यों हैं मुफलिस
ऐसा अनुमान है कि इस क्षेत्र में इनकी आबादी लगभग साढ़े तीन करोड़ हो सकती है। इतनी जनसंख्या के बावजूद कुर्दों का कोई अलग एक देश नहीं है। कुर्द तुर्की में अपनी स्वायत्तता के लिए लड़ रहे हैं तो सीरिया और इराक में आईएसआईएस के खिलाफ जमीनी संघर्ष कर रहे हैं।
अलग देश अब भी कुर्दों के लिए एक सपना ही
इस्लामिक स्टेट से क्यों कर रहे हैं मुकाबला
कुर्दों की जांबाजी के किस्से कई दशकों पुराने हैं। 1920 में इराक में कुर्दिस्तान की लड़ाई के लिए इन्होंने एक हथियारबंद संगठन बनाया था, जिसका नाम पेशमर्गा था। इसका मतलब मौत का सामना करने वाले लोग होता है।
कुर्द के पेशमर्गा लड़ाकों और आईएसआईएस के बीच खूनी संघर्ष 2014 में शुरू हुआ जब आईएस के लड़ाकों ने मोसुल पर हमला बोला। इस दौरान इराकी सेना में फूट पड़ गई और मजबूरन सरकार को पेशमर्गा लड़ाकों को इन खाली इलाकों में तैनात करना पड़ा।
तुर्की ने इस्लामिक स्टेट से लड़ने में कुर्दों की मदद क्यों नहीं की
1978 में कुर्द नेता अब्दुल्लाह ओकालन ने तुर्की में कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) नाम के संगठन की स्थापना की। इस संगठन ने तुर्की के अंदर स्वतंत्र राष्ट्र के लिए सशस्त्र संघर्ष को शुरू किया। एक अनुमान के अनुसार तब से अब तक इस संघर्ष में 40 हजार लोग मारे जा चुके हैं। ऐसा अंदेशा है कि हजारों लोगों को इसकी वजह से विस्थापन का दंश भी झेलना पड़ा है।
इसके बाद तुर्की की जवाबी कार्रवाई की वजह से अब्दुल्ला ओजलान भागकर सीरिया चले गए। वहां उन्हें बशर अल असद के पिता हाफिज उल असद ने पनाह दी। तुर्की अपने यहां सक्रिय रहे कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी यानी की पीकेके को चरमपंथी संगठन घोषित कर चुका है। तुर्की के साथ ही अमेरिका और यूरोपीय यूनियन भी पीकेके को चरमपंथी संगठन मानता है।
तुर्की ने साल 2018 में पश्चिमी सीरिया में कुर्दों के नियंत्रण वाले आफ़रीन प्रांत में हमला किया था जिसमें कई आम लोग मारे गए थे और दस हजार लोग विस्थापित हुए थे।
अमेरिका क्यों नहीं कर रहा कुर्दों की मदद
विशेषज्ञों के अनुसार, अगर अमेरिका कुर्दों की मदद कुर्दिस्तान को बनाने में करता है तो ईरान, इराक, तुर्की और सीरिया की सेनाएं एक साथ हो जाएंगी। इससे यूरोप-अमेरिका की कोई भी कोशिश नाकाम हो जाएगी। कुर्दिस्तान का निर्माण इन देशों के हिस्सों को मिलाकर किया जाना है। हालांकि, अमेरिका और यूरोपीय देश कुर्दों को अधिक अधिकार दिलवाने की कोशिश कर सकते हैं।