Bagram air base: डोनाल्ड ट्रंप ने क्यों की बगराम एयरबेस वापस लेने की बात, जानें इसका भारत पर असर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फिर से बगराम एयरबेस को वापस करने की मांग की है। बगराम एयरबेस क्या है? अमेरिका के लिए यह क्यों अहम है? भारत पर इसका क्या असर होगा? आइये जानते हैं…
विस्तार
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही के अपने बयान में बगराम एयरबेस को फिर से हासिल करने की बात कही है। ट्रंप ने कहा कि हम बगराम एयरबेस को वापस पाने की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि चीन के परमाणु हथियार बनाने वाले इलाके से यह बेस सिर्फ एक घंटे की दूरी पर है। इसलिए यह हमारे लिए रणनीतिक रूप से बहुत अहम है। इस पर तालिबान की ओर से भी जवाब आया है। अफगान सरकार का कहना है कि वह जमीन का एक टुकड़ा भी अमेरिका को नहीं देगी।
ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर बगराम एयरबेस क्या है? अमेरिका ने कब इसपर कब्जा किया? अमेरिका के लिए क्यों अहम है बगराम एयरबेस? भारत पर इसका क्या असर?
क्या है बगराम एयरबेस
बगराम एयरबेस अफगानिस्तान का सबसे बड़ा सैन्य ठिकाना था। यह हवाई अड्डा काबुल से 40 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यह बेस चीन और अफगानिस्तान की सीमा के पास होने के कारण रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। अमेरिका ने इस हवाई अड्डा का 20 साल तक इस्तेमाल किया। 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद यह एयरबेस तालिबान सरकार के हाथ में है।
बगराम एयरबेस कब से कब तक अमेरिका के पास था
अमेरिका ने 2001 में आतंकवाद को खत्म करने के मुहिम में नाटो के सेना के साथ मिलकर तालिबान को बेदखल कर बगराम एयरबेस पर कब्जा किया। 2021 में अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से वापसी तक यह एयरबेस उसके कब्जे में रहा। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की रिपोर्ट की अनुसार पिछले दो दशकों में अमेरिका ने इस जंग पर करीब 980 अरब डॉलर खर्च किए। वहीं 2,400 से ज्यादा अमेरिकी सैनिक, 1,144 सहयोगी देशों के सैनिक और 388 प्राइवेट मिलिट्री कॉन्ट्रैक्टर मारे गए। इसके पुनर्निर्माण पर 143 अरब डॉलर खर्च किए।
अमेरिका के लिए क्यों अहम है बगराम एयरबेस?
ओरियन पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अमेरिका को विदेशों में सैन्य ठिकाने बनाने की नीति रही है। ताकि किसी भी आपात की स्थिति में अमेरिका जल्द अपनी प्रतिक्रिया दे सके। बगराम एयरबेस छोडने का असर अमेरिका पर यह है कि वह चीन के बढ़ते प्रभाव को भी बेहतर ढंग से चुनौती नहीं दे सकता है। हालांकि, चीन के बढ़ती परमाणु शक्ति को जवाब देने के लिए, वर्तमान में चीन के सबसे करीबी क्षेत्रों जापान, फिलीपींस और भारत-प्रशांत क्षेत्र के अन्य क्षेत्रों में अमेरिका की सेना तैनात है।
ट्रंप ने बगराम एयरबेस को लेकर अभी क्या कहा है?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 21 सितंबर को अफगानिस्तान को कड़ी चेतावनी देते हुए, ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा, 'अगर अफगानिस्तान बगराम एयरबेस अमेरिका को नहीं देता है, जिसने इसे बनाया था, तो बुरी चीजें होने वाली हैं।'
तालिबान का क्या रुख है?
ट्रंप के हालिया बयान के बाद से तालिबान सरकार ने रविवार को ट्रंप के प्रयास को खारिज कर दिया। अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय के चीफ ऑफ स्टाफ फसीहुद्दीन फितरत ने कहा कि कुछ लोग राजनीतिक समझौते के जरिये बेस वापस लेने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, 'अफगानिस्तान की एक इंच जमीन पर भी समझौता संभव नहीं है। हमें इसकी जरूरत नहीं है।' इसके बाद, अफगान सरकार ने एक आधिकारिक बयान जारी कर चेतावनी दी कि 'अफगानिस्तान की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता अत्यंत महत्वपूर्ण है।'
भारत पर इसका क्या असर है?
सेंट्रल फॉर ज्वाइंट वारफेयर स्टडीज की रिपोर्ट की अनुसार भारत के लिए, अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संभावित वापसी उम्मीद और निराशा दोनों है। एक ओर तालिबान और पाकिस्तान गठजोड़ को सीमित हो सकता है। चीन की बढ़ती पैठ पर लगाम लग सकती है। दूसरी ओर, यह भारत और ईरान के रणनीतिक सहयोग में खटास भी सकता है।
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तालिबान के साथ जुड़ाव की दुविधा: भारत ने 2021 से तालिबान के साथ एक सतर्क, गुप्त बातचीत जारी रखी है , जिसका मुख्य उद्देश्य अफगानिस्तान में अपने हितों और विकास निवेशों की रक्षा करना है। अमेरिका की नई उपस्थिति, व्यवस्था की शर्तों के आधार पर, तालिबान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने शासन को वैध बनाने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है। हालांकि, अगर भारत अमेरिका की वापसी का अत्यधिक समर्थन करता है, तो इससे तालिबान के अलग-थलग पड़ने और उसके नए जुड़ाव को नुकसान पहुंचने का खतरा है।
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ईरान के साथ संबंध: ईरान के साथ भारत के रणनीतिक सहयोग है। खासकर चाबहार बंदरगाह जो अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने का एक महत्वपूर्ण मार्ग है। इसको सावधानीपूर्वक संभालने की आवश्यकता है। तेहरान ने पड़ोसी देशों में किसी भी विदेशी सैन्य उपस्थिति का लगातार विरोध किया है, और बगराम में फिर से सैन्यीकरण ईरान की चिंताए बढ़ा सकता है। नई दिल्ली के लिए, ईरान के साथ आर्थिक और ऊर्जा संबंधों को जारी रखने के लिए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी।
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पाकिस्तान के प्रभाव को संतुलित करना: कई वर्षों से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के जटिल राजनीतिक मामलों में भूमिका निभाता रहा है। बगराम में अमेरिकी उपस्थिति पाकिस्तान की रणनीतिक गहराई को कम कर सकती है, खासकर अगर इससे तालिबान की इस्लामाबाद पर निर्भरता कम हो। भारत के लिए, यह अफगानिस्तान में अपनी पहुंच को फिर से मापने और जमीनी स्तर पर सैनिकों के बिना क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी प्रयासों का समर्थन करने का एक अवसर हो सकता है।