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Car Theft: दिल्ली में बढ़ता कार क्लोनिंग रैकेट- चोरी, नकली कागजात और डिजिटल धोखाधड़ी का नया खेल
ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अमर शर्मा
Updated Wed, 29 Oct 2025 07:08 PM IST
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सार
दिल्ली में कार चोरी का एक नया तरीका सामने आया है, जिसमें पुराने जमाने की चोरी के साथ आधुनिक टेक्नोलॉजी का तड़का लगा है।
Car Theft
- फोटो : Freepik
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विस्तार
दिल्ली में कार चोरी का एक नया तरीका सामने आया है, जिसमें पुराने जमाने की चोरी के साथ आधुनिक टेक्नोलॉजी का तड़का लगा है। पुलिस ने एक ऐसे गिरोह का भंडाफोड़ किया है जो गाड़ियां चुराकर उनके नकली कागजात बनाता था, असली वाहनों की पहचान क्लोन करता था और फिर इन कारों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या डीलरों के जरिए बेच देता था।
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कैसे खुला रैकेट का राज
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जांच तब शुरू की जब एक प्रीओन्ड (सेकंड हैंड) कार कंपनी ने अपनी टेक-ड्रिवन सेलिंग प्लेटफॉर्म पर पांच संदिग्ध ट्रांजैक्शन की रिपोर्ट की। कंपनी की जांच में पता चला कि तीन कारें उनके रिठाला सेंटर में मिलीं और दो अन्य पार्टनर डीलरों के पास बेची गईं, जो किसभी नकली कागजात के साथ थीं।
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दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जांच तब शुरू की जब एक प्रीओन्ड (सेकंड हैंड) कार कंपनी ने अपनी टेक-ड्रिवन सेलिंग प्लेटफॉर्म पर पांच संदिग्ध ट्रांजैक्शन की रिपोर्ट की। कंपनी की जांच में पता चला कि तीन कारें उनके रिठाला सेंटर में मिलीं और दो अन्य पार्टनर डीलरों के पास बेची गईं, जो किसभी नकली कागजात के साथ थीं।
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गिरोह का काम करने का तरीका
कंपनी की ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि यह गिरोह अलग-अलग राज्यों में फैला हुआ है। उनका तरीका बेहद संगठित था। पहले वे किसी कार को चुराते, फिर उसी मॉडल, रंग और वेरिएंट की दूसरी असली कार की डिटेल्स निकालते। इसके बाद चोरी की कार में असली जैसी चेसिस प्लेट लगाई जाती, गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नंबर बदला जाता और नकली कागजात तैयार किए जाते थे। जिनमें आरसी, आधार कार्ड, पैन कार्ड और फाइनेंस कंपनियों के फर्जी एनओसी तक शामिल होते।
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कंपनी की ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि यह गिरोह अलग-अलग राज्यों में फैला हुआ है। उनका तरीका बेहद संगठित था। पहले वे किसी कार को चुराते, फिर उसी मॉडल, रंग और वेरिएंट की दूसरी असली कार की डिटेल्स निकालते। इसके बाद चोरी की कार में असली जैसी चेसिस प्लेट लगाई जाती, गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नंबर बदला जाता और नकली कागजात तैयार किए जाते थे। जिनमें आरसी, आधार कार्ड, पैन कार्ड और फाइनेंस कंपनियों के फर्जी एनओसी तक शामिल होते।
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Car Theft
- फोटो : Freepik
ऐसी नकल कि असली लगे
कंपनी के अधिकारियों के मुताबिक, "इनके बनाए नकली दस्तावेज इतने सटीक थे कि जब उन्हें सरकारी पोर्टल या डेटाबेस पर चेक किया गया, तो पूरी तरह असली दिखे।" यानी सामान्य वेरिफिकेशन में धोखाधड़ी पकड़ना लगभग नामुमकिन था।
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कंपनी के अधिकारियों के मुताबिक, "इनके बनाए नकली दस्तावेज इतने सटीक थे कि जब उन्हें सरकारी पोर्टल या डेटाबेस पर चेक किया गया, तो पूरी तरह असली दिखे।" यानी सामान्य वेरिफिकेशन में धोखाधड़ी पकड़ना लगभग नामुमकिन था।
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बैंक अकाउंट भी फर्जी पहचान से खोले गए
जांच में यह भी सामने आया कि इन गाड़ियों की खरीद-बिक्री के लिए जो बैंक अकाउंट इस्तेमाल किए गए, वे भी फर्जी दस्तावेजों से खोले गए थे। और इसमें कुछ बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत की भी आशंका है। जैसे ही सारे कागज तैयार हो जाते, चोरी की गाड़ियां कंपनी के प्लेटफॉर्म या दूसरे डीलरों के जरिए बेची जातीं।
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एक जगह रिजेक्ट तो दूसरी जगह बेचते
अगर किसी लोकेशन पर गाड़ी की बिक्री कैंसिल हो जाती, तो गिरोह उसे दूसरे शहर या डीलर के जरिए बेचने की कोशिश करता। कई बार वे लोन वाली कारों के लिए नकली एनओसी बनाते ताकि दिखा सकें कि लोन चुका दिया गया है।
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अगर किसी लोकेशन पर गाड़ी की बिक्री कैंसिल हो जाती, तो गिरोह उसे दूसरे शहर या डीलर के जरिए बेचने की कोशिश करता। कई बार वे लोन वाली कारों के लिए नकली एनओसी बनाते ताकि दिखा सकें कि लोन चुका दिया गया है।
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फर्जी मुहरें और साइन तक असली जैसे
इनके नकली दस्तावेजों में सरकारी विभागों की फर्जी मुहरें और सिग्नेचर तक होते थे, जिससे यह साफ है कि पूरा गिरोह बेहद संगठित और पेशेवर तरीके से काम कर रहा था। पकड़ से बचने के लिए आरोपी हर डील या निरीक्षण के बाद मोबाइल नंबर बदल देते थे या सिम बंद कर देते थे।
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अब कार्रवाई शुरू
पुलिस ने इस पूरे मामले में चोरी, धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश के तहत केस दर्ज किया है। साथ ही, एक विशेष टीम गठित की गई है जो इस कार क्लोनिंग गैंग के नेटवर्क की जड़ तक पहुंचने में जुटी है।
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