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Car Features: क्या ADAS सच में भारत की अनिश्चित सड़कों पर काम करता है? जानें वास्तविकता
ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अमर शर्मा
Updated Tue, 21 Oct 2025 07:46 PM IST
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सार
कार कंपनियां ड्राइविंग को सुरक्षित और आसान बनाने के लिए मॉर्डन कारों में एडीएएस पेश कर रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह टेक्नोलॉजी भारत जैसी सड़कों पर वाकई काम करती है, जहां ट्रैफिक नियमों से ज्यादा इरादे चलते हैं?

ADAS in India
- फोटो : Freepik
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विस्तार
आजकल लगभग हर नई कार में एक फीचर खूब चर्चा में रहता है ADAS यानी Advanced Driver Assistance System (एडवांस्ड ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम) (एडीएएस)। कार कंपनियां इसे ड्राइविंग को सुरक्षित और आसान बनाने के लिए पेश कर रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह टेक्नोलॉजी भारत जैसी सड़कों पर वाकई काम करती है, जहां ट्रैफिक नियमों से ज्यादा इरादे चलते हैं?
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ADAS क्या करता है और क्यों जरूरी है
एडीएएस फीचर को इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह ड्राइविंग के दौरान आपकी मदद करे और मानवीय गलती की संभावना को कम करे। इसमें कई फीचर्स शामिल हैं। जैसे एडाप्टिव क्रूज कंट्रोल, लेन कीप असिस्ट, ब्लाइंड स्पॉट मॉनिटरिंग और ऑटोनॉमस इमरजेंसी ब्रेकिंग।
कागज पर तो यह सिस्टम बेहद उपयोगी लगता है, क्योंकि यह ड्राइविंग को स्मार्ट और सुरक्षित बनाता है। लेकिन जब बात आती है भारतीय सड़कों की हकीकत की, तो मामला थोड़ा जटिल हो जाता है।
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एडीएएस फीचर को इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह ड्राइविंग के दौरान आपकी मदद करे और मानवीय गलती की संभावना को कम करे। इसमें कई फीचर्स शामिल हैं। जैसे एडाप्टिव क्रूज कंट्रोल, लेन कीप असिस्ट, ब्लाइंड स्पॉट मॉनिटरिंग और ऑटोनॉमस इमरजेंसी ब्रेकिंग।
कागज पर तो यह सिस्टम बेहद उपयोगी लगता है, क्योंकि यह ड्राइविंग को स्मार्ट और सुरक्षित बनाता है। लेकिन जब बात आती है भारतीय सड़कों की हकीकत की, तो मामला थोड़ा जटिल हो जाता है।
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ADAS in Car
- फोटो : Freepik
भारतीय सड़कें: टेक्नोलॉजी की सबसे बड़ी परीक्षा
भारत की सड़कें अप्रत्याशितता का दूसरा नाम हैं। क्योंकि कहीं लेन मार्किंग गायब, कहीं दोपहिया बीच से निकल जाते हैं, कभी पैदल यात्री हाईवे पार कर जाते हैं, और ऊपर से आवारा जानवरों की एंट्री कभी भी हो सकती है।
ऐसे में, सिस्टम जैसे लेन कीप असिस्ट या एडाप्टिव क्रूज कंट्रोल सही ढंग से काम नहीं कर पाते, क्योंकि ये क्लीन लेन और स्थिर ट्रैफिक फ्लो पर निर्भर करते हैं। कई बार ये सिस्टम किसी स्थिति को गलत तरीके से समझ लेते हैं। या तो जरूरत से ज्यादा ब्रेक लगा देते हैं या फिर समय पर रिएक्ट नहीं करते।
यह भी पढ़ें - WTO: चीन ने दर्ज कराई शिकायत, कहा- भारत की ऑटो, ईवी नीति के लिए पीएलआई योजनाएं डब्ल्यूटीओ मानदंडों का उल्लंघन
भारत की सड़कें अप्रत्याशितता का दूसरा नाम हैं। क्योंकि कहीं लेन मार्किंग गायब, कहीं दोपहिया बीच से निकल जाते हैं, कभी पैदल यात्री हाईवे पार कर जाते हैं, और ऊपर से आवारा जानवरों की एंट्री कभी भी हो सकती है।
ऐसे में, सिस्टम जैसे लेन कीप असिस्ट या एडाप्टिव क्रूज कंट्रोल सही ढंग से काम नहीं कर पाते, क्योंकि ये क्लीन लेन और स्थिर ट्रैफिक फ्लो पर निर्भर करते हैं। कई बार ये सिस्टम किसी स्थिति को गलत तरीके से समझ लेते हैं। या तो जरूरत से ज्यादा ब्रेक लगा देते हैं या फिर समय पर रिएक्ट नहीं करते।
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ADAS को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता
कुछ फीचर्स जैसे फॉरवर्ड कोलिजन वार्निंग, ब्लाइंड स्पॉट डिटेक्शन और रियर क्रॉस ट्रैफिक अलर्ट भारत की सड़कों पर काफी कारगर साबित हुए हैं। खासकर शहरों और हाइवे ड्राइविंग में ये सिस्टम एक सेफ्टी लेयर की तरह काम करते हैं। ये फीचर्स ड्राइवर की जगह नहीं लेते, बल्कि उसे अतिरिक्त मदद देते हैं।
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नेक्सन ईवी को मिला ADAS का सपोर्ट
- फोटो : Tata Motors
भारतीय हालात के हिसाब से टेक्नोलॉजी में बदलाव
कार कंपनियां अब ADAS सिस्टम को भारत की सड़कों के मुताबिक ढाल रही हैं। अब ये सिस्टम लोकल ट्रैफिक पैटर्न, सड़क के डिजाइन, और यहां तक कि आवारा जानवरों की पहचान तक करने के लिए ट्यून किए जा रहे हैं। इससे यह टेक्नोलॉजी अब पहले से ज्यादा व्यावहारिक होती जा रही है।
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ADAS: न ऑटोपायलट, बल्कि आपका असिस्टेंट ड्राइवर
कुल मिलाकर, ADAS को भारत में "ऑटोपायलट" समझना गलत होगा। यह अभी भी एक सीखने और विकसित होने वाला सिस्टम है, जो तभी सही काम करता है जब ड्राइवर खुद सतर्क रहे। जब तक सड़क ढांचा, ट्रैफिक अनुशासन और टेक्नोलॉजी का स्थानीय अनुकूलन और बेहतर नहीं होता, ADAS को एक "मददगार साथी" के रूप में ही देखा जाना चाहिए, न कि पूरी तरह भरोसेमंद ड्राइवर के रूप में।
भारत में टेक्नोलॉजी सड़कें जरूर सुरक्षित बना सकती है, लेकिन स्टेयरिंग पर पूरा कंट्रोल अभी भी इंसान के ही हाथों में होना चाहिए।
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भारत में टेक्नोलॉजी सड़कें जरूर सुरक्षित बना सकती है, लेकिन स्टेयरिंग पर पूरा कंट्रोल अभी भी इंसान के ही हाथों में होना चाहिए।
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