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Caste Census : बिहार की जातिगत गणना का आंकड़ा हो जाएगा बर्बाद? कैसे अलग होगी केंद्र की जातीय जनगणना

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सार

Caste Census India : महात्मा गांधी की जयंती पर 2 अक्टूबर 2023 को जारी बिहार की जातिगत जनगणना का आंकड़ा अब बर्बाद जाएगा? आंकड़ों के आधार पर घोषित आरक्षण पहले ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। केंद्र जो जातीय जनगणना कराएगी, वह बिहार से कैसे अलग होगा?

Bihar Caste census data may be waste after caste census india different from bihar caste survey
पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार की फाइल फोटो। - फोटो : एएनआई
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सदन से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का चक्कर लगाने के बाद बिहार में जातीय जनगणना हुई थी। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री रहते नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना को हरी झंडी दिखाई थी और महागठबंधन सरकार के सीएम रहते यह काम पूरा करा आंकड़े जारी किए थे। बिहार की जातीय जनगणना पर एनडीए और महागठबंधन में क्रेडिट-वार जारी है। जातीय जनगणना के आधार पर जातिगत आरक्षण बढ़ाया गया था, वह मामला हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट में है। और, अब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने देशभर में जातीय जनगणना का एलान किया है। तो, क्या अब बिहार में हुई जातीय जनगणना का आंकड़ा बर्बाद जाएगा? यही नहीं, आरक्षण का मामला भी अब राष्ट्रीय जातीय जनगणना के नाम पर अटका रहेगा? यह सवाल एक झटके में उठे हैं, जिनका जवाब भी आज मोदी कैबिनेट फैसले में ही है। 

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क्या अलग होगा बिहार की जातीय जनगणना से?
केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रीय जनगणना के साथ ही जातीय जनगणना कराने का फैसला लिया है। राष्ट्रीय जनगणना 2011 के बाद से 2021 में होना था, लेकिन कोविड के दौर में इसकी बात दब गई। 2024 में जब केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार फिर बनी तो राष्ट्रीय जनगणना कराने की तैयारी शुरू हुई। जनगणना कब शुरू होगी, उस इंतजार के बीच अब यह घोषणा हुई है कि जातीय जनगणना भी साथ-साथ होगी। चूंकि इस बार केंद्र सरकार डिजिटल मोड में जनगणना कराने जा रही है तो जातिगत रिकॉर्ड भी साथ-साथ तैयार हो जाएगा। जहां तक अंतर की बात है तो सबसे पहला अंतर यही है कि जनगणना का अधिकार केंद्र सरकार के पास होता है और बिहार सरकार ने कोर्ट में बाकायदा हलफनामा दिया था कि बिहार में जातीय जनगणना नहीं कराई गई, बल्कि वह जातीय सर्वे था।
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सर्वे के कारण अटका आरक्षण, यहां नहीं अटकेगा
चाणक्य स्कूल ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं- "बिहार की उस जातिगत जनगणना का आंकड़ा 2 अक्टूबर 2023 को जारी किया गया था। तब सर्वे की बात को दरकिनार कर उस आधार पर आरक्षण की सीमा बदली गई, जिसके कारण मामला हाईकोर्ट होकर सुप्रीम कोर्ट में अटक गया।" दरअसल, सर्वे के दौरान बिहार के हर आदमी को जानकारी देने या जाति बताने की बाध्यता नहीं थी। इसलिए सरकार यह भी नहीं घोषित कर सकी कि उस जनगणना में सभी लोग कवर हुए हैं और सभी जातियों के सभी लोगों का रिकॉर्ड है। दूसरी तरफ, जब केंद्र सरकार जनगणना कराती है तो नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर के लिए हर देशवासी को जानकारी देने की बाध्यता रहती है। रिटायर्ड आईएएस अधिकारी आरबी यादव कहते हैं कि "केंद्र सरकार जातिगत जनगणना भी कराएगी तो इस तरह की बाध्यता रखने पर ही उसका जातीय आंकड़ा आरक्षण में बदलाव जैसी नीतिगत फैसलों में काम लायक होगा।"

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बिहार सरकार के आंकड़े हो जाएंगे बर्बाद
बिहार सरकार ने सर्वे किया था और केंद्र सरकार अपने अधिकारों के आधार पर जनगणना कराएगी। इस जनगणना में देश का हर शख्स शामिल होगा। बिहार में भी यह जनगणना होगी और राष्ट्रीय जातिगत जनगणना भी। ऐसे में कानूनविद् विकास मैजरवार कहते हैं कि "बिहार सरकार ने जब खुद ही इसे जनगणना नहीं माना था तो उसके आंकड़ों की वैधता पर सवाल उठना वाजिब था। केंद्र सरकार अगर हर आदमी को सूचना देने के लिए बाध्य करते हुए जातिगत जानकारी जुटाएगी तो असल आंकड़ा निकल आएगा। उस आधार पर राज्य सरकार आरक्षण में बदलाव करे तो सुप्रीम कोर्ट से भी परेशानी शायद न आए।" मतलब, केंद्र सरकार जब राष्ट्रीय जातीय जनगणना करा लेगी तो वह आंकड़ा बिहार के सर्वे से ज्यादा पक्का होगा। ऐसे में बिहार सरकार के कराए सर्वे का आंकड़ा एक तरह से बेकार ही हो जाएगा।
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