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ग्रीन इनोवेशन मैन ऑफ इंडिया: डॉ. शुभ गौतम और इस्पात की सांस लेने वाली तकनीक

नई दिल्ली Published by: Anil Vaishya Updated Tue, 28 Oct 2025 01:10 PM IST
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Green Innovation Man of India: Dr. Shubh Gautam and Jagat's breath-taking technology
डॉ Shubh Gautam - फोटो : Anil Vaishya
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भारत के औद्योगिक मानचित्र पर एक नया अध्याय जुड़ गया है- जहां फैक्ट्रियां अब केवल उत्पादन की ही प्रतीक नहीं, बल्कि पर्यावरणीय पुनर्जीवन की प्रयोगशालाएं भी बन रही हैं। यह परिवर्तन किसी नीति के दबाव से नहीं, बल्कि एक भारतीय नवाचार की प्रेरणा से संभव हुआ है। इस परिवर्तन के मूल में है श्रीसोल-अमेरिकन प्रीकोट का पेटेंट संख्या 441784, और इसके पीछे हैं भारत के 'ग्रीन इनोवेशन मैन' कहे जाने वाले डॉ. शुभ गौतम।



वर्षों तक उद्योगों को प्रदूषण का स्रोत माना गया। पर डॉ. शुभ गौतम, श्रीसोल-अमेरिकन प्रीकोट, ने इसी धारणा को पलट दिया- उन्होंने कारखानों की छतों और शहरों की धातु संरचनाओं को पृथ्वी के ‘फेफड़ों’ में बदल दिया है। उनका आविष्कार नैनो-कॉम्पोजिट पॉलिएस्टर आधारित कोटिंग सिर्फ एक तकनीक नहीं, बल्कि यह बताने का तरीका है कि हर औद्योगिक ढाँचा पर्यावरणीय जिम्मेदारी निभा सकता है।
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यह तकनीक साधारण धातु को 'कार्बन-सोखने वाली सतह' में बदल देती है। जब ये सतहें वातावरण की CO₂ को अवशोषित करती हैं और बारिश के संपर्क में आने पर स्वयं पुनः सक्रिय हो जाती हैं और इस प्रकार हर फैक्ट्री, हर वेयरहाउस, हर स्कूल की छत धीरे-धीरे एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र बन जाती है। अब उद्योग 'नेट जीरो' लक्ष्य तक पहुँचने की दौड़ में पिछलग्गू नहीं, बल्कि अगुआ बन रहे हैं। इस खोज का प्रभाव केवल पर्यावरणीय नहीं, आर्थिक भी है।

कल्पना कीजिए- यदि देशभर की 10,000 फैक्ट्रियों की छतें इस तकनीक से कोट की जाएँ, तो हर साल लाखों टन कार्बन हवा से गायब हो सकता है। इससे न केवल भारत की हरित साख बढ़ेगी, बल्कि निर्यात उद्योग को भी नई दिशा मिलेगी- जहां 'ग्रीन मैन्युफैक्चरिंग' भारत की पहचान बनेगी।

डॉ. शुभ गौतम, श्रीसोल-अमेरिकन प्रीकोट, कहते हैं, 'हमने स्थिरता को केवल लक्ष्य नहीं, बल्कि उद्योग की भाषा बना दिया है। जब हर फैक्ट्री, हर बिल्डिंग अपने हिस्से का योगदान देगी, तभी नेट ज़ीरो कोई नारा नहीं, वास्तविकता बनेगा।'

उनकी सोच केवल विज्ञान तक सीमित नहीं। वे मानते हैं कि स्थिरता तभी संभव है जब यह लोकतांत्रिक हो- जहां हर निर्माणकर्ता, हर बिल्डर, हर नगर निगम अपने हिस्से की हरियाली स्वयं पैदा कर सके। यह तकनीक महंगे उपकरणों पर नहीं, बल्कि स्थानीय रूप से तैयार इस्पात शीट्स पर लागू की जा सकती है, जिससे यह बड़े उद्योगों के साथ-साथ छोटे उद्यमों के लिए भी सुलभ बनती है।

यह नवाचार 'मेक इन इंडिया' की भावना को नया अर्थ देता है-अब भारत केवल उत्पाद नहीं बनाता, बल्कि पृथ्वी के स्वास्थ्य का समाधान भी निर्यात करता है। यह कहानी केवल पेटेंट की नहीं, बल्कि उस सोच की है जिसने यह साबित किया कि सतत विकास कोई विशिष्ट वर्ग की विलासिता नहीं, बल्कि हर छत, हर दीवार की जिम्मेदारी है। भारत अब केवल आर्थिक महाशक्ति नहीं, बल्कि पर्यावरणीय नैतिकता का नेतृत्वकर्ता बन रहा है। और इस सफर की शुरुआत वहीं से हुई है- जहां इस्पात ने सांस लेना सीख लिया।

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