सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   Business ›   Business Diary ›   Why are rare earths becoming a strategic weapon for the world? Where does India stand amid the China-US tensio

Rare Earth: रेयर अर्थ दुनिया के लिए रणनीतिक हथियार क्यों बन रहे, चीन-अमेरिका की तनातनी के बीच भारत कहां? जानें

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: रिया दुबे Updated Wed, 22 Oct 2025 03:57 PM IST
विज्ञापन
सार

रेयर अर्थ एलिमेंट्स अब सिर्फ खनिज नहीं, बल्कि आधुनिक तकनीक और राष्ट्रीय सुरक्षा की रीढ़ बन चुके हैं। चीन वैश्विक उत्पादन और रिफाइनिंग का प्रमुख कंट्रोलर है, जबकि भारत और अमेरिका नई रणनीतियों के जरिए आपूर्ति में हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं। इलेक्ट्रिक वाहन, पवन टरबाइन और रक्षा उपकरणों में इनकी मांग लगातार बढ़ रही है। अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया समझौता और भारत का राष्ट्रीय खनिज मिशन इसे वैश्विक रणनीतिक मुद्दा बना रहे हैं। आइए विस्तार से जानते हैं। 

Why are rare earths becoming a strategic weapon for the world? Where does India stand amid the China-US tensio
वैश्विक सप्लाई चेन और रेयर अर्थ मैटेरियल्स - फोटो : Adobestock
विज्ञापन

विस्तार
Follow Us

रेयर अर्थ एलिमेंट्स (आरईई) इन दिनों चर्चा का विषय बने हुए हैं। दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं चीन और अमेरिका के बीच यह विवाद का सबसे बड़ा मुद्दा है। जैसे-जैसे देश साफ ऊर्जा और उन्नत तकनीकों की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं, कुछ ऐसी धातुएं, जिन्हें दुर्लभपृथ्वी तत्व (रेयर अर्थ एलिमेंट्स ) कहा जाता है, रणनीतिक रूप ले चुकी हैं और आधुनिक नवाचार की रीढ़ बनकर उभरी हैं। ये तत्व न केवल इलेक्ट्रिक वाहनों और पवन टरबाइन तक सीमित हैं, बल्कि उपग्रहों, रक्षा प्रणालियों और अत्याधुनिक तकनीकों को संचालित करने में भी अहम भूमिका निभा रही हैं।

Trending Videos


ये भी पढ़ें: Japan: अमेरिकी टैरिफ के बावजूद जापान का निर्यात बढ़ा, महीने के अंत तक ट्रंप-ताकाइची की मुलाकात होने की उम्मीद

विज्ञापन
विज्ञापन

रेयर अर्थ एलिमेंट क्या है?

कोटक म्यूचुअल फंड की रिपोर्ट में बताया गया है कि रेयर अर्थ एलिमेंट 17 धातुओं का समूह हैं, जिनमें खास चुंबकीय और इलेक्ट्रॉनिक गुण होते हैं। ये हाई-टेक चीजों को बनाने में बहुत जरूरी हैं। इनका नाम भले ही दुर्लभ है, लेकिन ये पृथ्वी पर सच में कम नहीं हैं। असली चुनौती इनको निकालने और साफ करने में है, क्योंकि यह प्रक्रिया महंगी और पर्यावरण के लिए संवेदनशील है।


उदाहरण के तौर पर, एक पवन टरबाइन में 600 किलो तक आरईई मैग्नेट इस्तेमाल होते हैं, जो इसे नवीकरणीय ऊर्जा में बेहद अहम बनाते हैं। पेरिस समझौत के जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए रेयर अर्थ एलिमेंट अहम कारक है। नियोडिमियम और प्रेजोडायमियम जैसी धातुएं इलेक्ट्रिक वाहन मोटरों और पावन टर्बाइनों के लिए जरूरी है। वहीं सैमेरियम और डिस्प्रोसियम का उपयोग रक्षा उपकरणों और उच्च प्रदर्शन वाले मैग्नेट बनाने में किया जाता है।

2040 तक मांग में 50 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद 

वर्ष 2040 तक इनकी मांग में 50 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की उम्मीद है और इन्हें अब रणनीतिक वस्तु माना जाता है, जो आर्थिक सुरक्षा, तकनीकि प्रगति और राष्ट्रीय रक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। 

रेयर अर्थ एलिमेंट पर चीन का कब्जा 


 

हालांकि दुनिया भर में इनकी खदानें मौजूद हैं लेकिन उत्पादन और रिफाइनिंग  कुछ ही देशों के हाथ में है। इसमें चीन प्रमुख है, जो वैश्विक खनन का 69 प्रतिशत और रिफाइनिंग की 90 प्रतिशत क्षमता पर नियंत्रण रखता है। भारत के पास वर्तमान में वैश्विक खनन और परिशोधन का एक प्रतिशत से कम हिस्सा है, लेकिन यह दुनिया के कुल भंडार का लगभग 6.3 प्रतिशत नियंत्रित करता है।



चीन का प्रभुत्व दशकों से चले आ रहे सरकारी निवेश और कम उत्पादन लागत से उपजा है। इसने आरईई को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में एक रणनीतिक ताकत बना दिया है। पूर्व चीनी नेता देंग शियाओपिंग ने एक बार कहा था कि पश्चिम एशिया में तेल हैं तो चीन के पास रेयर अर्थ एलिमेंट्स हैं। 

Why are rare earths becoming a strategic weapon for the world? Where does India stand amid the China-US tensio
चीन और अमेरिका का व्यापार युद्ध - फोटो : Adobestock

चीन और अमेरिका का व्यापार युद्ध 

वाशिंगटन और बीजिंग के बीच जारी व्यापार युद्ध में ड्रैगन रेयर अर्थ मैटेरियल्स पर अपनी बढ़त का फायदा उठा रहा है। इन धातुओं पर चीन ने हालिया प्रतिबंध ऐसे समय में लगाए हैं जब शी और ट्रंप इस महीने के अंत में दक्षिण कोरिया में होने वाले एपीईसी शिखर सम्मेलन में मिलने वाले हैं। अपने सबसे हालिया कदम में, चीन ने पांच दुर्लभ रेयर अर्थ मैटेरियल्स- होल्मियम, एर्बियम, थुलियम, यूरोपियम, यटरबियम, और संबंधित चुम्बक व पदार्थ- को अपनी मौजूदा नियंत्रण सूची में शामिल कर लिया है। अब इनके निर्यात के लिए लाइसेंस की जरूरत होगी। चीन के इस कदम से प्रतिबंधित रेयर अर्थ एलिमेंट्स की कुल संख्या 12 हो गई है। चीन से देश के बाहर दुर्लभ मृदा निर्माण तकनीकों के निर्यात के लिए भी अब लाइसेंस जरूरी होगा।

रेयर अर्थ पर चीन के नियंत्रण और अमेरिका से तनातनी की कहानी

वर्ष 2005 के आसपास, चीन सरकार ने दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के निर्यात पर टैक्स बढ़ा दिए, जिससे पश्चिमी मैग्नेट निर्माताओं के लिए उत्पाद बनाना महंगा हो गया।चीन के बाहर लगभग कोई भी रेयर अर्थ खदान न होने के कारण, मोटर-पार्ट्स निर्माता और अन्य कंपनियां सस्ते कच्चे माल तक पहुंचने के लिए अपने फैक्ट्रियों को पश्चिम से चीन स्थानांतरित करने लगीं।

पश्चिम में उत्पादन इतना सीमित हो गया कि अमेरिकी कंपनी Molycorp ने माउंटेन पास खदान को पुनर्जीवित कर अपनी मैग्नेट बनाने की योजना बनाई। इसे Project Phoenix नाम दिया गया, लेकिन यह योजना असफल रही।

2012 में, ओबामा प्रशासन ने यूरोपीय संघ और जापान के साथ मिलकर विश्व व्यापार संगठन (WTO) में चीन के खिलाफ मुकदमा दायर किया, आरोप लगाया कि चीन ने निर्यात कोटा का गलत तरीके से उपयोग कर दुर्लभ पृथ्वी आपूर्ति को नियंत्रित किया। चीन ने कहा कि यह प्रतिबंध खनन को टिकाऊ बनाने और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए थे। 2014 में, WTO ने चीन के खिलाफ फैसला सुनाया और कहा कि उसका निर्यात कोटा अनुचित था। इसके बाद चीन ने कोटा समाप्त कर दिए और अमेरिका को निर्यात में तेजी आई।

अमेरिका चीन का मुकबाला करने के लिए रास्ते तलाश रहा

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने दुर्लभ पृथ्वी तत्वों और अन्य रणनीतिक खनिजों की आपूर्ति बढ़ाने के उद्देश्य से हाल ही में एक समझौता किया है। यह कदम अमेरिका की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत चीन के बाजार पर वर्चस्व का मुकाबला करने के रास्ते तलाशे जा रहे हैं।

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच समझौता 


 

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी एल्बेनेस ने कहा कि यह समझौता 8.5 अरब डॉलर के तैयार हुए परियोजनाओं के पाइपलाइन को सहारा देगा, जिससे देश की खनन और परिशोधन क्षमता बढ़ेगी। 

भारत का राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन 


 

भारत अब खुद को आरईई मूल्य शृंखला में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर रहा है। राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (2025) के तहत, देश KABIL (खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड) जैसी पहलों और अमेरिका के नेतृत्व वाली खनिज सुरक्षा साझेदारी में अपनी भागीदारी के माध्यम से घरेलू एक्सप्लोरेशन, प्रोसेसिंग और रिसाइक्लिंग को बढ़ावा दे रहा है। हाल ही में आईआईएल (इंडिया) लिमिटेड को अमेरिकी निर्यात नियंत्रण सूची से हटााय जाना और विशाखापत्तनम में इसेक नए समैरियम-कोबाल्ट मैग्नेट प्लांट का चालू होना बड़ी उपलब्धि है। 

15 से 20 वर्षों में 700 प्रतिशत तक बढ़ सकती है रेयर अर्थ की मांग

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) का अनुमान है कि 2040 तक वैश्विक आरईई की मांग 300-700 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। नए उत्पादों के बाजार में प्रवेश करने के साथ चीन की हिस्सेदारी घटने की उम्मीद है। लेकिन विविधीकरण महंगा और समय लेने वाला है। 

विज्ञापन
विज्ञापन
सबसे विश्वसनीय Hindi News वेबसाइट अमर उजाला पर पढ़ें कारोबार समाचार और Union Budget से जुड़ी ब्रेकिंग अपडेट। कारोबार जगत की अन्य खबरें जैसे पर्सनल फाइनेंस, लाइव प्रॉपर्टी न्यूज़, लेटेस्ट बैंकिंग बीमा इन हिंदी, ऑनलाइन मार्केट न्यूज़, लेटेस्ट कॉरपोरेट समाचार और बाज़ार आदि से संबंधित ब्रेकिंग न्यूज़
 
रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें अमर उजाला हिंदी न्यूज़ APP अपने मोबाइल पर।
Amar Ujala Android Hindi News APP Amar Ujala iOS Hindi News APP
विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

Election
एप में पढ़ें

Followed