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दुष्कर्म का आरोपी बरी: HC ने कहा- आरोप लगाने वाली महिला व्यस्क, शादी का वादा कर दुष्कर्म का दावा सही नहीं

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: चंडीगढ़ ब्यूरो Updated Tue, 26 Aug 2025 01:42 AM IST
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सार

शिकायतकर्ता महिला का दावा था कि उससे विवाह के वादे पर संबंध बनाए गए थे। मामले में 2016 में युवक को दोषी ठहराया गया था और उसे नौ साल की सजा हुई थी। अब हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी के साथ उसे बरी कर दिया है।

woman having extramarital affair cannot claim misdeed by promising marriage highcourt
पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के मामले में याचिकाकर्ता को दोषमुक्त करते हुए कहा कि जब कोई विवाहित महिला विवाहेतर संबंध बनाती है, तो वह विवाह के झूठे वादे पर दुष्कर्म का दावा नहीं कर सकती।
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जस्टिस शालिनी सिंह नागपाल ने कहा कि एक परिपक्व विवाहित महिला द्वारा विवाह के वादे पर विवाहेतर संबंध बनाने की सहमति देना अनैतिकता और विवाह संस्था की अवहेलना का कृत्य है और इस पर दुष्कर्म का मामला नहीं बनता। न्यायालय ने यह टिप्पणी एक ऐसे व्यक्ति को बरी करते हुए की जिसे 2016 में दुष्कर्म के एक मामले में दोषी ठहराया गया था और नौ साल कैद की सजा सुनाई गई थी।
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शिकायतकर्ता महिला ने दावा किया था कि उसने विवाह के वादे पर संबंध बनाए थे। कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता कोई भोली-भाली, मासूम, शर्मीली युवती नहीं थी जो अपने निर्णयों के परिणामों का आकलन नहीं कर सकती थी। वह एक वयस्क महिला, दो बच्चों की मां और आरोपी से दस साल बड़ी थी। अपनी दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील में याची ने तर्क दिया था कि पूरे मुकदमे को ही निष्प्रभावी कर दिया गया।

विवाहित महिला को अभियुक्त द्वारा शादी के बहाने संबंध बनाने के लिए प्रेरित नहीं किया जा सकता था। कोर्ट ने कहा कि अभियोक्ता का यह दावा पहली नजर में झूठा है, क्योंकि उसने स्वीकार किया है कि वह अपने ससुराल वालों के साथ रह रही थी और उसने अपने पति के खिलाफ तलाक की याचिका सहित किसी भी तरह का मुकदमा नहीं किया था। अपीलकर्ता द्वारा वर्ष 2012-13 के दौरान 55-60 बार संबंध बनाने के उसके बयान में तारीखों और अन्य भौतिक विवरणों का अभाव है। उसने स्वीकार किया कि वर्ष 2012-13 में 55-60 बार अंतरंगता उसके ससुराल में हुई थी।
स्पष्ट रूप से, अभियोक्ता दो साल से अधिक समय तक अपीलकर्ता के साथ सहमति से संबंध में थी। इस अवधि के दौरान, वह अपने पति के साथ विवाहित रही। अभियुक्त स्पष्ट रूप से उसे विवाह का आश्वासन देकर अंतरंगता के लिए प्रेरित करने की स्थिति में नहीं था, वह भी उसके अपने ससुराल में जहां उसके ससुराल वाले और बच्चे भी मौजूद थे। ऐसा प्रतीत होता है कि दो वर्षों तक, दिन-प्रतिदिन, सप्ताह-दर-सप्ताह और महीने-दर-महीने, अपीलकर्ता के साथ अभियोक्ता का अनैतिक संबंध तब तक जारी रहा जब तक कि उसे यह पता नहीं चला कि अपीलकर्ता ने किसी अन्य महिला के साथ विवाह कर लिया है, तब उसे भावनात्मक आघात नहीं पहुंचा। न्यायालय ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से सहमति से बने संबंध के बिगड़ने का मामला था और इसे अपीलकर्ता से बदला लेने के लिए आपराधिक कानून लागू करने का आधार नहीं बनाया जा सकता था।
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