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पंजाब में चले चार फैक्टर: सत्तारूढ़ पार्टी के काम से नाराजगी, किसान आंदोलन, नशा और बेरोजगारी का दिखा असर

विशाल पाठक, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: निवेदिता वर्मा Updated Wed, 05 Jun 2024 02:24 PM IST
सार

पंजाब में भाजपा खाता भी नहीं खोल सकी हालांकि भाजपा तीसरी बड़ी पार्टी रही जो जनाधार जुटाने में कामयाब रही। यानी कांग्रेस और आप के बाद भाजपा को सबसे ज्यादा वोट पड़े हैं। भाजपा ने अपने कभी गठबंधन में रहे दल शिअद को वोटिंग प्रतिशत में पीछे छोड़ दिया।

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Four Factors worked in Punjab Loksabha Election
पंजाब का लोकसभा चुनाव - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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पंजाब की अलग सियासी मझधार ने इस बार भी चुनावी नतीजे देकर सबको चौंका दिया है। करीब दो साल पहले 117 में 92 सीट जीतकर सत्ता में आई आप के कामकाज से जनता नाराज दिखाई दी। कई सियासी दिग्गजों को अपने ही गढ़ में धूल चाटनी पड़ी। 
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सीएम मान बेशक अपना गढ़ जीतने में कामयाब रहे, लेकिन एक को छोड़ उनके चार दिग्गज मंत्री अपनी साख न बचा सके। मंत्रियों की इस हार को सीधे तौर पर आप के कामकाज से जोड़कर देखा जा रहा है। कई मायनों में पंजाब में यह चुनाव अलग रहा। 
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जनाधार देखकर यह साबित होता है कि प्रदेश में 4 चुनावी फैक्टर चले। इनमें सत्तारूढ़ आप के कामकाज से असंतुष्ट जनता की नाराजगी, 13 फरवरी से शंभू बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसान, नशे की चपेट में आकर आए दिन परिवारों के बुझ रहे चिराग और बेरोजगारी के मुद्दे ने जनता का चुनाव में ध्यान भटकाया है। इन चुनावी फैक्टर के अलावा पंजाब की दो सीटों पर पंथक और गर्मख्याली सोच को भी मौका मिला है। खडूर साहिब से डिब्रूगढ़ जेल में बंद अमृतपाल सिंह और फरीदकोट सरबजीत सिंह खालसा को जनाधार मिला है। खडूर साहिब सीट से अमृतपाल सिंह ने पूरे पंजाब में अपने प्रतिद्वंदियों को सबसे अधिक मार्जिन 1,84,894 वोट से हराया।

मोती महल की नहीं बची साख 
किसान आंदोलन के कारण भाजपा का प्रदेश में खाता तक नहीं खुल सका। सभी 13 सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। यहां तक की एग्जिट पोल की भविष्यवाणी भी गलत साबित हुई, जो दो से तीन सीटें आते दिखा रही थी। पंजाब में किसानों का विरोध सबसे ज्यादा हंस राज हंस को झेलना पड़ा था। फरीदकोट सीट पर हंस राज हंस की 1,73,915 वोट से हार हुई। जीतने वाले निर्दलीय प्रत्याशी से वह 5वें पायदान पर रहे। 

पटियाला से परनीत कौर को भी किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा, यही कारण है कि मोती महल अपनी साख न बचा सका। सियासी जानकारों के अनुसार पटियाला सीट पर किसान आंदोलन का असर रहा। पटियाला में गांवों के मुकाबले शहरी इलाकों में वोटिंग प्रतिशत बढ़ा हुआ देखने को मिला। 2019 में पटियाला में शहरी इलाके में 61.09 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, 2024 में 61.83 प्रतिशत वोटिंग हुई है। यानी किसान आंदोलन का दंश झेल रहे सभी राजनैतिक दलों का इस बार पटियाला के शहरी क्षेत्र में ज्यादा था। पटियाला के गांवों में 58.98 प्रतिशत वोटिंग हुई।

नशा और बेरोजगारी का चुनावी फैक्टर चला
प्रदेशभर में खाता तक खोलने में असमर्थ रही भाजपा तीसरी बड़ी पार्टी रही जो जनाधार जुटाने में कामयाब रही। यानी कांग्रेस और आप के बाद भाजपा को सबसे ज्यादा वोट पड़े हैं। भाजपा ने अपने कभी गठबंधन में रहे दल शिअद को वोटिंग प्रतिशत में पीछे छोड़ दिया। कांग्रेस को 26.29 प्रतिशत, आप को 26.17 प्रतिशत, भाजपा को 18.41 और शिअद को 13.53 प्रतिशत वोट हासिल किया। इससे यह साबित होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदेश में ड्रग्स, आतंक, गैंगस्टरवाद और बेरोजगार का जो मुद्दा उठाया था, उस पर जनता ने वोट किया। लेकिन किसान आंदोलन उनकी राह में रोड़ा बनती नजर आई। यहां तक की सत्तारूढ़ आप के 43 हजार नौकरी देने के दावे से भी जनता नाखुश दिखाई दी। आप के नौकरियों का पिटारा बंद रहने की वजह से और महिलाओं को एक हजार रुपये की आर्थिक मदद जैसे वायदे और कामकाज ने जनाधार पर बड़ा असर डाला।
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