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जांच में लापरवाही पर हाईकोर्ट सख्त: गर्भवती को घायल करने के मामले में कहा- पुलिस और डॉक्टर दोनों जिम्मेदार
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़
Published by: चंडीगढ़ ब्यूरो
Updated Tue, 12 Aug 2025 10:25 PM IST
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सार
मामला फाजिल्का का है, जहां 16 जून को गर्भवती महिला को घायल करने के आरोपी ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका याचिका दाखिल की थी। अदालत ने पाया कि जांच अधिकारी ने मेडिकल राय लेने के लिए 27 जुलाई को आवेदन किया, लेकिन 41 दिन बाद भी रिपोर्ट नहीं मिली।

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने आपराधिक मामलों की जांच में निचले स्तर के पुलिस अधिकारियों की घोर लापरवाही पर कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि यह केवल पुलिस की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि मेडिकल रिपोर्ट तैयार करने में देरी करने वाले डॉक्टर भी उतने ही जिम्मेदार हैं।
मामला फाजिल्का का है, जहां 16 जून को गर्भवती महिला को घायल करने के आरोपी ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका याचिका दाखिल की थी। अदालत ने पाया कि जांच अधिकारी ने मेडिकल राय लेने के लिए 27 जुलाई को आवेदन किया, लेकिन 41 दिन बाद भी रिपोर्ट नहीं मिली।
जस्टिस एनएस शेखावत ने कहा कि डीजीपी ने रिपोर्ट संग्रह को लेकर स्पष्ट आदेश दिए थे, फिर भी पालन नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि कई मामलों में एक्स-रे, सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड जैसी रिपोर्ट समय पर जांच अधिकारियों को नहीं दी जातीं, जिससे जांच में अनावश्यक देरी होती है और पीड़ित के अधिकार प्रभावित होते हैं।
मेडिकल रिपोर्ट सीधे तौर पर जांच और बाद में ट्रायल को प्रभावित करती है। कोर्ट ने कहा कि तेजी से जांच का अधिकार न केवल पीड़ित के लिए है बल्कि आरोपी के लिए भी। कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह मेडिकल रिपोर्ट जल्द से जल्द प्राप्त करने का प्रयास करे जो कम से कम वर्तमान मामले में नहीं किया गया।
अदालत ने जिला पुलिस में पर्यवेक्षण की कमी को गंभीर मुद्दा बताते हुए कहा कि एसएसपी की कानूनी जिम्मेदारी है कि वे जांच अधिकारी को तुरंत रिपोर्ट लेने के लिए प्रेरित करें। राज्य सरकार ने अदालत को भरोसा दिलाया कि स्वास्थ्य विभाग, एसएसपी फाजिल्का और अस्पताल निदेशक इस तरह की लापरवाही रोकने के लिए कदम उठाएंगे।

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मामला फाजिल्का का है, जहां 16 जून को गर्भवती महिला को घायल करने के आरोपी ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका याचिका दाखिल की थी। अदालत ने पाया कि जांच अधिकारी ने मेडिकल राय लेने के लिए 27 जुलाई को आवेदन किया, लेकिन 41 दिन बाद भी रिपोर्ट नहीं मिली।
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जस्टिस एनएस शेखावत ने कहा कि डीजीपी ने रिपोर्ट संग्रह को लेकर स्पष्ट आदेश दिए थे, फिर भी पालन नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि कई मामलों में एक्स-रे, सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड जैसी रिपोर्ट समय पर जांच अधिकारियों को नहीं दी जातीं, जिससे जांच में अनावश्यक देरी होती है और पीड़ित के अधिकार प्रभावित होते हैं।
मेडिकल रिपोर्ट सीधे तौर पर जांच और बाद में ट्रायल को प्रभावित करती है। कोर्ट ने कहा कि तेजी से जांच का अधिकार न केवल पीड़ित के लिए है बल्कि आरोपी के लिए भी। कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह मेडिकल रिपोर्ट जल्द से जल्द प्राप्त करने का प्रयास करे जो कम से कम वर्तमान मामले में नहीं किया गया।
अदालत ने जिला पुलिस में पर्यवेक्षण की कमी को गंभीर मुद्दा बताते हुए कहा कि एसएसपी की कानूनी जिम्मेदारी है कि वे जांच अधिकारी को तुरंत रिपोर्ट लेने के लिए प्रेरित करें। राज्य सरकार ने अदालत को भरोसा दिलाया कि स्वास्थ्य विभाग, एसएसपी फाजिल्का और अस्पताल निदेशक इस तरह की लापरवाही रोकने के लिए कदम उठाएंगे।