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'कैसे हो नक्सलियों का खात्मा?': माओवादियों के शांतिवार्ता प्रस्ताव पर इंटलेक्चुअल फोरम ने दिया ये शानदार जवाब
अमर उजाला ब्यूरो, रायपुर
Published by: ललित कुमार सिंह
Updated Fri, 30 May 2025 02:01 PM IST
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सार
Intellectual Forum on naxalites: बस्तर पिछले चार दशकों से माओवादी हिंसा की चपेट में है। इससे हजारों निर्दोष आदिवासी नागरिक, सुरक्षाकर्मी, शिक्षक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और ग्राम प्रतिनिधि मारे जा चुके हैं।

बस्तर क्षेत्र में माओवादी हिंसा के उन्मूलन पर रायपुर में प्रेसवार्ता आयोजित की गई
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
Intellectual Forum on naxalites: बस्तर पिछले चार दशकों से माओवादी हिंसा की चपेट में है। इससे हजारों निर्दोष आदिवासी नागरिक, सुरक्षाकर्मी, शिक्षक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और ग्राम प्रतिनिधि मारे जा चुके हैं। सरकार नक्सल आतंकवाद के खिलाफ अपनी कार्रवाई जारी रखे और सुरक्षा बलों के प्रयासों को और भी मजबूत बनाएं। कार्रवाइयां और अधिक सशक्त और सतत रहें। माओवादी और उनके समर्थक संगठनों को शांतिवार्ता के लिए तभी शामिल किया जाए, जब वे हिंसा और हथियारों को छोड़ने के लिए तैयार हों। नक्सलवाद और उनके फ्रंट संगठनों का समर्थन करने वाले व्यक्तियों और संगठनों पर उचित कार्रवाई की जाए। बस्तर की शांति और विकास के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं,ताकि इस क्षेत्र को नक्सल आतंकवाद से मुक्त किया जा सके। ये बातें बस्तर क्षेत्र में माओवादी हिंसा के उन्मूलन पर रायपुर में आयोजित प्रेसवार्ता के दौरान बुद्धिजीवियों ने कहीं।
माओवादियों की तरफ से लिखे जा रहे शांतिवार्ता पत्र पर 15 से अधिक संगठन ने रायपुर में प्रेसवार्ता कर अपनी बातें रखीं। इसमें रविशंकर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर एसके पांडे, पूर्व आईएएस अनुराग पांडे, पूर्व उप-सॉलिसिटर जनरल बी.गोपा कुमार आदि शामिल हुए।
प्रोफेसर एसके पांडे ने इस दौरान माओवाद के समूल नाश और बस्तर के समग्र विकास के लिए देश के बुद्धिजीवियों का आह्वान किया गया। साउथ एशिया टूरिज्म पोर्टल के आंकड़ों के अनुसलार केवल छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा से एक जार से अधिक आम नागरिकों की जान जा चुकी है, जिनमें बहुसंख्यक बस्तर के आदिवासी हैं।
अनुराग पांडेय ने कहा कि ‘शांतिवार्ता’ की बात तभी स्वीकार्य हो सकती है, जब माओवादी हिंसा और हथियारों का त्याग करें। इसके साथ ही जो संगठन और व्यक्ति माओवादियों के फ्रंटल समूहों के रूप में कार्य कर रहे हैं। उनकी पहचान कर उन पर भी वैधानिक कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि सलवा जुडूम को बार-बार निशाने पर लेना माओवादी आतंक को नैतिक छूट देने का प्रयास है, जबकि बस्तर की जनता स्वयं इस हिंसा का सबसे बड़ा शिकार रही है।
बी. गोपा कुमार ने कहा कि जो लोग ‘शांति’ की बात कर रहे हैं, उन्हें पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि माओवादी हिंसा पूरी तरह बंद हो। अन्यथा यह सब केवल रणनीतिक प्रचार का हिस्सा मात्र है। उन्होंने कहा कि 2004 की वार्ताओं के बाद जिस प्रकार 2010 में ताड़मेटला में नरसंहार हुआ, वह एक ऐतिहासिक चेतावनी है, जिसे नहीं भूलना चाहिए। वार्ता के अंत में शैलेन्द्र शुक्ला ने यह स्पष्ट किया गया है कि शांति, विकास और न्याय, ये तीनों केवल तभी संभव हैं जब माओवाद को निर्णायक रूप से समाप्त किया जाए। सरकार से यह अपेक्षा की गई है कि वह माओवादी आतंकवाद के विरुद्ध अपनी कार्रवाई को सतत और सशक्त बनाए रखे। माओवादी समर्थक संगठनों को वैधानिक रूप से चिन्हित कर उन पर कड़ी कार्रवाई की जाए।

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माओवादियों की तरफ से लिखे जा रहे शांतिवार्ता पत्र पर 15 से अधिक संगठन ने रायपुर में प्रेसवार्ता कर अपनी बातें रखीं। इसमें रविशंकर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर एसके पांडे, पूर्व आईएएस अनुराग पांडे, पूर्व उप-सॉलिसिटर जनरल बी.गोपा कुमार आदि शामिल हुए।
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प्रोफेसर एसके पांडे ने इस दौरान माओवाद के समूल नाश और बस्तर के समग्र विकास के लिए देश के बुद्धिजीवियों का आह्वान किया गया। साउथ एशिया टूरिज्म पोर्टल के आंकड़ों के अनुसलार केवल छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा से एक जार से अधिक आम नागरिकों की जान जा चुकी है, जिनमें बहुसंख्यक बस्तर के आदिवासी हैं।
अनुराग पांडेय ने कहा कि ‘शांतिवार्ता’ की बात तभी स्वीकार्य हो सकती है, जब माओवादी हिंसा और हथियारों का त्याग करें। इसके साथ ही जो संगठन और व्यक्ति माओवादियों के फ्रंटल समूहों के रूप में कार्य कर रहे हैं। उनकी पहचान कर उन पर भी वैधानिक कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि सलवा जुडूम को बार-बार निशाने पर लेना माओवादी आतंक को नैतिक छूट देने का प्रयास है, जबकि बस्तर की जनता स्वयं इस हिंसा का सबसे बड़ा शिकार रही है।
बी. गोपा कुमार ने कहा कि जो लोग ‘शांति’ की बात कर रहे हैं, उन्हें पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि माओवादी हिंसा पूरी तरह बंद हो। अन्यथा यह सब केवल रणनीतिक प्रचार का हिस्सा मात्र है। उन्होंने कहा कि 2004 की वार्ताओं के बाद जिस प्रकार 2010 में ताड़मेटला में नरसंहार हुआ, वह एक ऐतिहासिक चेतावनी है, जिसे नहीं भूलना चाहिए। वार्ता के अंत में शैलेन्द्र शुक्ला ने यह स्पष्ट किया गया है कि शांति, विकास और न्याय, ये तीनों केवल तभी संभव हैं जब माओवाद को निर्णायक रूप से समाप्त किया जाए। सरकार से यह अपेक्षा की गई है कि वह माओवादी आतंकवाद के विरुद्ध अपनी कार्रवाई को सतत और सशक्त बनाए रखे। माओवादी समर्थक संगठनों को वैधानिक रूप से चिन्हित कर उन पर कड़ी कार्रवाई की जाए।