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आपातकाल के 50 वर्ष: छह माह तक जेल में रहे मनीलाल ने खाई लाठी, खून से लथपथ शर्ट को संजोकर रखा, आज होगा सम्मान

अमर उजाला नेटवर्क, महासमुंद Published by: Digvijay Singh Updated Wed, 25 Jun 2025 01:00 PM IST
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सार

 छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के ग्राम खम्हरिया निवासी मनीलाल चंद्राकर की। 25 जून 1975 को जब देश में आपातकाल लागू किया गया, तब मनीलाल चंद्राकर 21 वर्ष के थे। 

50 years of emergency Mani Lal was beaten with sticks while in jail for six months will be honoured today in
मीसाबंदी मनीलाल अपने परिवार के साथ - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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भारत में आपातकाल के 50 वर्ष आज पूरे हुए हैं। स्वतंत्र भारत के इतिहास में इस आपातकाल को काले दिन की भी संज्ञा दी गई है। जब इमरजेंसी के दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी छीन ली गई थी। जिसके विरोध में विपक्ष और आंदोलनकारियों को नसबंदी से लेकर जेलबंदी तक कि लड़ाई लड़नी पड़ी थी। आज हम आपको इमरजेंसी के दौरान लड़ी गई उसी लड़ाई की एक सच्ची कहानी बताने जा रहे है। यह कहानी है छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के वन क्षेत्र में बसे ग्राम खम्हरिया निवासी मनीलाल चंद्राकर की। जिन्होंने आपातकाल के दौरान लाठियां भी खाई और जेल भी गए। अपने आंदोलन के दौरान खून से लथपथ शर्ट को यादों के रूप में मनीलाल आज भी 50 साल से संजोए हुए है। क्या है मनीलाल चंद्राकर की कहानी, जानिए विस्तार से।

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25 जून 1975 को भारत में आपातकाल की घोषणा हुई, जिसे स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय माना जाता है। यह तब लागू हुआ जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के द्वारा उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को अमान्य घोषित किया गया था। भारत में आपातकाल लगाए हुए आज 50 वर्ष पूरे हो गए है। 25 जून 1975 को देश के तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देश पर तात्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में इमरजेंसी लागू कर दी थी। 21 माह तक चला यह आपातकाल 21 मार्च 1970 को यह समाप्त हुआ। इस 21 महीने की अवधि में मौलिक अधिकारों को निलंबित किया गया, प्रेस पर सेंसरशिप लगाई गई और विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया। यही कारण है कि देशभर में बीजेपी आपातकाल के 50 वर्ष पूरा होने पर आज से संविधान हत्या दिवस मनाने जा रही है। सरकार व संगठन के पदाधिकारी जनता को आपातकाल की जानकारी देंगे। लेकिन उससे पहले हम आपको आपातकाल के समय घटित एक घटना की सच्ची कहानी दिखाने और बताने जा रहे हैं। 
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यह कहानी है छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के ग्राम खम्हरिया निवासी मनीलाल चंद्राकर की। 25 जून 1975 को जब देश में आपातकाल लागू किया गया, तब मनीलाल चंद्राकर 21 वर्ष के थे। ग्रामीण किसान स्वर्गीय दाऊलाल चंद्राकर का बेटा मनीलाल महासमुंद के महाविद्यालय में बीए फाइनल ईयर का छात्र था। वह अपने बाल्यकाल में ही महज 14 वर्ष की उम्र में कक्षा 8वीं से ही राष्ट्र भावना से प्रेरित होकर RSS संगठन से जुड़ गया था। इमरजेंसी के दौरान जब वह कॉलेज में पढ़ाई कर रहा था, तब देशभर में विपक्ष और आपातकाल के विरोध में लोग प्रदर्शन कर रहे थे। 

आपातकाल के विरोध के दौरान 10 दिसंबर 1975 को अविभाजित छत्तीसगढ़ के जिले रायपुर में उन्हें एकत्र होकर चरणबद्ध तरीके से आपातकाल का विरोध जताने की सूचना प्राप्त हुई। इसके बाद मनीलाल अपने 03 साथियों के साथ रायपुर पहुंचे, जहां पर उनके संगठन से जुड़े अन्य जिले से भी युवा पहुंचे हुए थे। सभी 24 लोगों ने एक योजना बनाई और रायपुर के 8 टॉकीजों में रात्रि 9 से 12 के अंतिम शो के बाद फिल्म खत्म होने के दौरान आपातकाल के विरोध में पर्चे फेंके और लोगों के हाथों में आपातकाल का विरोध करने का पर्चा थमाया। फिल्म देखने के बहाने पहुंचे इन युवाओं का यह अनोखा प्रदर्शन रायपुर जिले में गूंज उठा। पूरी रात पुलिस की टीम इन्हें पकड़ने खाक छांती रही। दूसरे दिन सुबह 11 दिसंबर 1975 को मनीलाल और उसके 2 साथी एक बार फिर रायपुर के दत्ता ड्राई क्लीनर्स से लेकर गुढ़ियारी तक पैदल मार्च करते हुए पर्चे बांटने निकल पड़े। 

इस दौरान पूरे रास्ते में "इंदिरा तेरी तानाशाही नहीं चलेगी", "सच कहना अगर बगावत है तो हां समझो हम भी बागी है" के नारे लगाते निकल पड़े। पुलिस ने मनीलाल और उनके 2 साथियों को प्रदर्शन करते गुढ़ियारी के पास गिरफ्तार कर लिया। पुलिस उन्हें रायपुर के गंज थाने में लेकर गई। 03 दिनों तक मनीलाल और उसके साथियों को हिरासत में रखकर पुलिस ने इनके साथ सख्ती से पूछताछ की। धमकी दी, मारपीट की और पर्चा कहां से मिला इसकी पताशाजी लगाने में जुटे रहे। 03 दिनों तक भूखे पेट इन्हें रखा गया। तीन दिन बाद 13 दिसंबर 1975 को मनीलाल और उनके बाकीं साथियों को कोर्ट में पेश किया गया। जहां से इन्हें 6 माह के लिए जेल भेज दिया गया। 

श्यामा चरण शुक्ल के सीएम बनते ही जेल में पिटाई
जेल भेजने के बाद कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। अब समय था तारीख 01 जनवरी 1976 की। जब  श्यामाचरण शुक्ल कांग्रेस के मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश शासन काल में बनाए गए। मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने सबसे पहले आपातकाल में आंदोलन कर रहे आंदोलनकारी को मीसाबंदी का नाम दिया। उन्हें सबक सिखाने के लिए सभी को जेल में लाठी चार्ज के बहाने पिटवाने के लिए निर्देशित कर दिया। उस दिन शाम को करीब 6:00 बजे हुए थे, रायपुर जेल में प्रदर्शनकारियों को पीटने जेल में खाना बनाने के लिए लाये गए लड़कियों का इस्तेमाल किया गया। जेल में बंद करीब 300 से 400 मीसाबंदियों को पीटने जेल पुलिस की टीम कम पड़ रही थी, जिसपर जेलर ने पहले से सजा काट रहे कैदियों को 15 दिनों की सजा माफ करने का लालच देकर इन्हें पीटने के लिए शामिल कर लिया। इसके लिए जेल में पहले एक अलार्म बजाया गया। अलार्म बजने के बाद सभी अपने बैरक पर एकत्र हो गए। जैसे ही दूसरा अलार्म बजा सभी मनीलाल सहित अन्य प्रदर्शकारियों को पीटने के लिए टूट पड़े। करीब एक घंटा तक उनकी पिटाई की गई। लाठीचार्ज के बहाने इस ताबड़तोड़ पिटाई में कई लोग घायल हुए। जिसमें मनीलाल चंद्राकर भी शामिल थे।

50 साल बाद भी शर्ट संभाल कर रखे हैं मनीलाल
लाठीचार्ज के दौरान पिटाई में मनीलाल को सिर में और हाथ में चोट आई। उनका शर्ट खून से लटपट था। उसी हालत में वह 6 घंटे तक जेल में ही रहा। 6 घंटे बाद रात करीब 1:00 बजे उन्हें रायपुर के ही डीकेएस अस्पताल में उपचार के लिए भर्ती कराया गया। सिर में चोट आने के कारण उनके माथे पर 07 टांके लगाए गए। जिसके निशान आज भी मौजूद है। अपने प्रदर्शन की निशानी के तौर पर खून से लथपथ शर्ट को आज भी मनीलाल 50 साल से संभालकर रखा हुआ है। यह कोई और शर्ट नहीं बल्कि जब अपनी शादी में दूल्हा बनकर मनीलाल ने जो शर्ट पहना था यह वही शर्ट है, जो जेल में रहने के दौरान खून से रंगा रहा। उपचार के एक दिन बाद उन्हें 12 जनवरी को डिस्चार्ज कर लिया गया और 13 जनवरी 1976 को फिर से कोर्ट में पेशी के लिए ले जाया गया। जहां से उन्हें वापस जेल दाखिल कर दिया गया। करीब 6 माह तक उन्हें जेल में रखा गया। इस 6 माह के दौरान जो यातनाएं मनीलाल और उसके साथियों ने सही वह आपातकाल का वही काला अध्याय है। जहां पर ना तो उन्हें ठीक से खाने मिलता था, ना सोने मिलता था, सप्ताह में नहाना नसीब हो जाए तो वह भी बड़ी बात थी। युवाओं को जबरदस्ती पकड़कर नसबंदी कराया जा रहा था। विरोध करने वालों को जेलबंदी बनाया जा रहा था। इमरजेंसी के दौरान मीडिया पर भी प्रतिबंध था। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली गई थी। लिहाजा उनकी व्यथा सुनने और सुनने वाला कोई नहीं था। आज भी मनीलाल उस 6 महीने की दास्तान जब सुनाते हैं तो सुनने वाले सहर जाते हैं। जेल से निकलने के बाद भी मनीलाल और उसके साथ ही आपातकाल के समाप्त होने तक आंदोलन से जुड़े रहे।

घर वाले थे जेल में होने की घटना से अंजान
आपातकाल के दौरान 6 महीने तक जब मनीलाल जेल में बंद थे, तब उनका पूरा परिवार भी इस लड़ाई में पीस रहा था। 10 दिसंबर को जब वह प्रदर्शन में शामिल होने रायपुर गया, तब से लेकर उनके गिरफ्तार होने और जेल जाने तक परिवार को भनक तक नहीं थी। जेल से मनीलाल ने अपने परिवार को चिट्ठी लिखी और उन्हें अपने गिरफ्तारी के बारे में जानकारी दी। मनीलाल की पत्नी रेखा बताती है कि, उस समय उनकी उम्र बहुत कम थी। उनकी शादी को महज 6 महीने ही हुए थे। इस दौरान वह अपने मायके गई हुई थी। जब उन्हें जेल की बात पता चली तो उनके पास रोने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं था। वह बताती है कि, इस दौरान परिवार के लोग को ने काफी यातनाएं सही। पुलिस के लोग बार-बार घर में आकर धमक जाते थे। घर की तलाशी ली जाती थी। जेल से निकलने के बाद भी मनीलाल आपातकाल के विरोध में लड़ाई लड़ते रहे।

आज होगा मनीलाल चंद्राकर और मीसाबंदियों का सम्मान
आज आपातकाल को 50 वर्ष पूरा हुआ है। इसे लेकर बीजेपी देशभर में अभियान चलाने जा रही है। सरकार व संगठन के पदाधिकारी जनता को आपातकाल की जानकारी देंगे। आज मनीलाल चंद्राकर और उनके साथियों का भी सम्मान समारोह सरकार की ओर से प्रशासन करने जा रही है। बीजेपी कार्यालय में भी भाजपा के नेता इनका सम्मान करेंगे और 26 जून को मुख्यमंत्री निवास में भी इनका सम्मान समारोह का आयोजन किया गया है। जहां पर आपातकाल में यातना झेलने वाले इन क्रांतिकारियों को सरकार सम्मान देगी।

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