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दूसरा पहलू: पृथ्वी का ऊर्जा बजट बैंक खाते की तरह है; कभी पृथ्वी की सतह का तापमान संतुलित था, अब असंतुलन क्यों?
बेनोइट मेसिग्नैक
Published by: ज्योति भास्कर
Updated Mon, 15 Sep 2025 06:30 AM IST
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सार
मानव सभ्यता की शुरूआत से लेकर एक सदी पहले तक पृथ्वी की सतह का तापमान संतुलित था, अब असंतुलित क्यों हो गया है? 2000 के दशक के मध्य में, ऊर्जा असंतुलन औसतन 0.6 वाट प्रति वर्ग मीटर था। अब यह औसतन 1.3 वाट प्रति वर्ग मीटर हो गया है।वायुमंडल में 20 खरब टन से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसें जमा हो चुकी हैं, जो गर्मी को बाहर जाने से रोक रही हैं। इस तापमान का कुछ हिस्सा ग्लेशियर को पिघला रहा है।

पृथ्वी का ऊर्जा बजट बैंक खाते की तरह है; कभी पृथ्वी की सतह का तापमान संतुलित था
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
जलवायु परिवर्तन को मापने का एक तरीका है लंबी अवधि में अलग-अलग जगहों पर तापमान को रिकॉर्ड करना। यह अच्छी तरह से काम करता है, लेकिन प्राकृतिक भिन्नता की वजह से लंबी अवधि के रुझान को देखना मुश्किल हो सकता है। लेकिन पृथ्वी के वायुमंडल में कितनी गर्मी आ रही है व कितनी बाहर जा रही है, इसका पता लगाने से लंबी अवधि के रुझान को स्पष्ट समझा जा सकता है।

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यह पृथ्वी का ऊर्जा बजट है, जो अब असंतुलित हो चुका है। हाल के शोध बताते हंै कि पिछले 20 वर्षों में पृथ्वी का तापमान दोगुने से भी ज्यादा हो गया है। यह असंतुलन जलवायु मॉडलों द्वारा सुझाए गए स्तर से कहीं अधिक है। 2000 के दशक के मध्य में, ऊर्जा असंतुलन औसतन 0.6 वाट प्रति वर्ग मीटर था। हाल के वर्षों में, यह औसतन 1.3 वाट प्रति वर्ग मीटर हो गया है। यानी ग्रह की सतह के पास ऊर्जा संचय की दर दोगुनी हो गई है।
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ये नतीजे बताते हैं कि आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन और तेज हो सकता है। पृथ्वी का ऊर्जा बजट कुछ हद तक बैंक खाते की तरह काम करता है, जहां पैसा आता और जाता है। अगर आप अपने खर्च कम करते हैं, तो आपके खाते में नकदी जमा हो जाएगी। यहां, ऊर्जा ही मुद्रा है। पृथ्वी पर जीवन सूर्य से आने और जाने वाली ऊष्मा के बीच संतुलन पर निर्भर करता है। यह संतुलन एक तरफ झुक रहा है।
वायुमंडल में 20 खरब टन से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसें जमा हो चुकी हैं, जो गर्मी को बाहर जाने से रोक रही हैं। इस तापमान का कुछ हिस्सा जमीन को गर्म कर रहा है, तो कुछ ग्लेशियर को पिघला रहा है।
पृथ्वी प्राकृतिक रूप से कई तरीकों से गर्मी छोड़ती है। मानव सभ्यता की शुरुआत से लेकर एक सदी पहले तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगभग 14 डिग्री सेल्सियस था। लेकिन बढ़ते ऊर्जा असंतुलन के कारण औसत तापमान 1.3-1.5 डिग्री तक बढ़ गया है। ऊर्जा असंतुलन तेजी से बढ़ रहा है। नए शोध बताते हैं कि बादलों में बदलाव इसका एक बड़ा कारण है।
अत्यधिक परावर्तक सफेद बादलों से ढका क्षेत्र सिकुड़ गया है, जबकि अव्यवस्थित, कम परावर्तक बादलों का क्षेत्र बढ़ गया है। अगर उत्सर्जन को जल्दी कम नहीं किया गया, तो अगले कुछ दशकों में और गंभीर स्थिति होगी। हमें जीवाश्म ईंधन का उपयोग बंद करना होगा। यदि हमें अप्रत्याशित परिवर्तनों को पहचानना है, तो लंबे समय तक सटीक रिकॉर्ड रखना जरूरी है। सैटेलाइट्स हमारे अग्रिम चेतावनी सिस्टम हैं, जो हमें गर्मी भंडारण में बदलाव के बारे में लगभग एक दशक पहले सूचना देते हैं।
-साथ में स्टीवन शेरवुड व थोरस्टन मॉरिट्सन (द कन्वर्सेशन से)