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India vs Pak War: युद्ध के तरीकों को पूरी तरह बदल दिया है ड्रोन ने, ऐसे होती है सटीक और घातक हमले की तैयारी

Jay singh Rawat जयसिंह रावत
Updated Fri, 09 May 2025 01:07 PM IST
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सार

ऑपरेशन सिंदूर ने दिखाया कि ड्रोन न केवल आतंकी ठिकानों को नष्ट कर सकते हैं, बल्कि दुश्मन की रक्षा प्रणालियों को भी निष्क्रिय कर सकते हैं।

India vs Pak War Drones have changed the battlefield forever
ऑपरेशन सिंदूर ने दिखाया कि ड्रोन न केवल आतंकी ठिकानों को नष्ट कर सकते हैं, बल्कि दुश्मन की रक्षा प्रणालियों को भी निष्क्रिय कर सकते हैं। - फोटो : Amar Ujala
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भारत-पाकिस्तान सीमा पर हालिया टकराव, विशेष रूप से ऑपरेशन सिंदूर में भारत द्वारा लाहौर और कराची में ड्रोन के सटीक और विध्वंसकारी उपयोग ने युद्ध की नई परिभाषा गढ़ दी है। ड्रोन, जो कभी केवल टोही उपकरण थे, अब कामिकाजे और लॉइटरिंग म्यूनिशन के रूप में सैन्य रणनीति का अभिन्न अंग बन चुके हैं, जो जोखिम-मुक्त सटीक हमले और निगरानी की क्षमता प्रदान करते हैं।

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इनका इतिहास प्रथम विश्व युद्ध के बाद शुरू हुआ, जब साधारण मानवरहित यान विकसित किए गए। द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर 21वीं सदी तक, इजराइल और अमेरिका ने ड्रोन को स्वायत्त और हथियारबंद बनाकर क्रांति ला दी। भारत और पाकिस्तान की ड्रोन तकनीक में बढ़ती होड़ क्षेत्रीय स्थिरता पर सवाल उठाती है।
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भारत-पाक टकराव में नजर आ रही है ड्रोन की भूमिका

ऑपरेशन सिंदूर ने दिखाया कि ड्रोन न केवल आतंकी ठिकानों को नष्ट कर सकते हैं, बल्कि दुश्मन की रक्षा प्रणालियों को भी निष्क्रिय कर सकते हैं। हालांकि, पाकिस्तान के ड्रोन हमलों के दावों में अतिशयोक्ति हो सकती है, क्योंकि भारत ने केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया था। विशेषज्ञों का मानना है कि ड्रोन की बढ़ती मौजूदगी दक्षिण एशिया में तनाव और टकराव का कारण बन सकती है, खासकर परमाणु हथियारों की उपस्थिति में।

भारत और पाकिस्तान दोनों ही अपनी ड्रोन क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं और ताजा टकराव में यह साफ परिलक्षित हो रहा है।  माना जाता है कि भारत के पास 2000-2500 ड्रोन हैं, जिनमें स्वदेशी एलएमएस ड्रोन और एआइ संचालित स्वार्म ड्रोन शामिल हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान तुर्की के बाय्राकटार और चीन के विंग लूंग ड्रोन पर निर्भर है, लेकिन उसकी संख्या और तकनीकी क्षमता भारत से कम है। भारत ने रूस से इग्ला-एस मिसाइलें और स्वदेशी रुद्रम-1 मिसाइलें तैनात की हैं, जो ड्रोन और निचले स्तर के विमानों को नष्ट करने में सक्षम हैं।

भारत-पाक टकराव में ड्रोन का युद्धक उपयोग

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का इतिहास लंबा रहा है और ड्रोन ने हाल के वर्षों में इस टकराव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मई 2025 में ’’ऑपरेशन सिंदूर’’ के तहत भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद के नौ आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के लिए एलएममस (लोइटरिंग म्यूनिशन सिस्टम) ड्रोन आइएपी हार्पी और हारोप ड्रोन का उपयोग किया। इन आत्मघाती ड्रोन ने न केवल आतंकी शिविरों को ध्वस्त किया, बल्कि लाहौर और रावलपिंडी में पाकिस्तान के वायु रक्षा तंत्र को भी निष्क्रिय कर दिया।

भारतीय वायुसेना के राफेल जेट और स्कैल्प मिसाइलों के साथ ड्रोन की यह संयुक्त कार्रवाई सटीक और प्रभावी थी, जिसने दर्जनों आतंकवादियों को मार गिराया। पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई में जम्मू-कश्मीर, पंजाब, और राजस्थान के 15 भारतीय शहरों पर ड्रोन और मिसाइल हमले करने की कोशिश की। हालांकि, भारत के  एस-400 वायु रक्षा तंत्र और एकीकृत काउंटर यूएएस ग्रिड ने इन हमलों को नाकाम कर दिया।

पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने लाहौर, कराची, और रावलपिंडी जैसे शहरों में भारतीय ड्रोन हमलों का सामना किया, जिसमें चार सैनिक घायल हुए और नागरिक हताहत हुए। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ये दावे पाकिस्तान के प्रचार का हिस्सा ही थे।, क्योंकि भारत ने केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया था।

सामरिक दृष्टि से बढ़ रहा है ड्रोन का महत्व

देखा जाए तो ड्रोन ने आधुनिक युद्ध की प्रकृति को बदल दिया है। उच्च-रिजॉल्यूशन कैमरे, थर्मल इमेजिंग, और रडार से लैस ड्रोन दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखते हैं। भारत ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में  निगरानी और टोह के लिये ड्रोन का उपयोग कर आतंकी ठिकानों की पहचान की है। हथियारों से लैस आत्मघाती ड्रोन सटीक हमले करने में सक्षम हैं, जिससे नागरिक हताहत कम होते हैं। भारत के हारोप ड्रोन ने पाकिस्तानी रडार सिस्टम को नष्ट करने में यह क्षमता दिखाई।

ड्रोन खतरनाक मिशनों में मानव सैनिकों की आवश्यकता को कम करते हैं, जिससे सैन्य अभियानों की सुरक्षा बढ़ती है। कई ड्रोन एक साथ मिलकर हमला करते हैं, जिससे दुश्मन की रक्षा प्रणालियों को भेदना आसान हो जाता है। भारत ने क्रत्रिम बुद्धिमता संचालित स्वार्म ड्रोन में निवेश किया है। आर्थिक दृष्टि से देखा जाय तो पारंपरिक लड़ाकू विमानों की तुलना में ड्रोन सस्ते और कम रखरखाव वाले हैं, जिससे वे विकासशील देशों के लिए आकर्षक हैं। 

ड्रोन ने युद्ध के मैदान को हमेशा के लिए बदल दिया है। भारत-पाक टकराव और रूस-यूक्रेन युद्ध में उनकी भूमिका ने साबित किया कि वे न केवल सैन्य रणनीतियों का हिस्सा हैं, बल्कि भविष्य के युद्धों का आधार भी बन सकते हैं। भारत ने स्वदेशी ड्रोन निर्माण और उन्नत तकनीकों में निवेश कर अपनी स्थिति को मजबूत किया है, जबकि पाकिस्तान विदेशी ड्रोन पर निर्भर है।

हालांकि, ड्रोन की बढ़ती क्षमता और उनकी सुलभता ने क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए नए जोखिम भी पैदा किए हैं। भविष्य में, ड्रोन तकनीक और एंटी-ड्रोन सिस्टम के बीच संतुलन युद्ध के परिणामों को निर्धारित करेगा।

रूस-यूक्रेन युद्ध में ड्रोन की भूमिका

रूस-यूक्रेन युद्ध, जो फरवरी 2022 में शुरू हुआ, ड्रोन युद्ध का एक वैश्विक उदाहरण बन चुका है। यूक्रेन ने रूसी ठिकानों पर सटीक हमले के लिए बायकर बाय्राकटार TB2 ड्रोन और स्वदेशी स्विचब्लेड जैसे आत्मघाती ड्रोन का उपयोग किया। मई 2025 में खारकीव पर रूसी हमले के जवाब में यूक्रेन ने रूस के नोवोरोसियस्क और रोस्तोव शहरों पर 170 से अधिक ड्रोन दागे, जिससे रूस को आपातकाल घोषित करना पड़ा।

रूस ने भी कीव, ओडेसा, और खारकीव जैसे यूक्रेनी शहरों पर क्रूज मिसाइलों और ड्रोन से हमले किए, जिनमें से अधिकांश को यूक्रेन की वायु रक्षा ने नाकाम किया। रूस-यूक्रेन युद्ध में ड्रोन की सफलता ने भारत और पाकिस्तान जैसे देशों को अपनी ड्रोन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। ड्रोन ने न केवल टोही और निगरानी की भूमिका निभाई, बल्कि सस्ते और प्रभावी हथियार के रूप में दुश्मन के बुनियादी ढांचे को नष्ट करने में भी योगदान दिया।

ड्रोन के प्रकार और उनकी विशेषताएं

ड्रोन विभिन्न प्रकार और कार्यक्षमताओं में उपलब्ध हैं, जो उनकी उपयोगिता को और बढ़ाते हैं। जैसे मल्टी-रोटर ड्रोन, छोटे, स्थिर और आसानी से नियंत्रित ड्रोन हैं, जो फोटोग्राफी, निगरानी, और डिलीवरी के लिए उपयोगी हैं। इनकी सीमित रेंज उन्हें स्थानीय अभियानों के लिए उपयुक्त बनाती है। इसी तरह फिक्स्ड-विंग ड्रोन, हवाई जहाज जैसे डिजाइन के साथ, ये ड्रोन लंबी दूरी और अधिक उड़ान समय प्रदान करते हैं। भारत का रुस्तम-2 इसका उदाहरण है, जो 24 घंटे तक निगरानी कर सकता है।

सिंगल-रोटर ड्रोन, हेलीकॉप्टर जैसे डिजाइन के साथ, ये भारी पेलोड उठाने में सक्षम हैं और विशेष सैन्य मिशनों में उपयोगी हैं। आत्मघाती ड्रोन (लॉइटरिंग मुनिशन) ड्रोन लक्ष्य पर टकराकर विस्फोट करते हैं। भारत के एलएमएस ड्रोन और इजराइल के हारोप ने ऑपरेशन सिंदूर में अपनी प्रभावशीलता साबित की है। जबकि कृषि ड्रोन, फसल निगरानी, कीटनाशक छिड़काव, और मिट्टी विश्लेषण के लिए डिजाइन किए गए हैं।

भारत में इनका उपयोग सटीक कृषि को बढ़ावा दे रहा है। इसी तरह डिलीवरी ड्रोन, दवाइयां और छोटे पैकेज पहुंचाने के लिए उपयोगी, ये आपातकालीन सेवाओं में महत्वपूर्ण हैं और अंडरवाटर ड्रोन, समुद्री निगरानी और अनुसंधान के लिए, जैसे कुंभ मेला 2025 में नदियों की निगरानी करता है। जासूसी और व्यक्तिगत उपयोग के लिए माइक्रो या मिनीपोर्टेबल  ड्रोन उपयुक्त हैं।

कई क्षेत्रों में बढ़ रहा ड्रोन का उपयोग

ड्रोन का उपयोग सैन्य क्षेत्र से परे भी व्यापक हो चुका है। भारत में रुस्तम-2, सर्चर एमके ı/ıı और हारोप जैसे ड्रोन सीमा निगरानी और आतंकवाद विरोधी अभियानों में उपयोगी  साबित हो रहे हैं। पाकिस्तान ने तुर्की और चीन निर्मित ड्रोन का उपयोग किया है, लेकिन भारत की स्वदेशी तकनीक और रूस से खरीदी गई इग्ला- मिसाइलें उसे बढ़त देती हैं। ड्रोन फसल निगरानी और कीटनाशक छिड़काव में सहायक हैं, जिससे भारत में सटीक कृषि को बढ़ावा मिल रहा है।

आपदा के समय ड्रोन खोज और बचाव कार्यों में उपयोगी हैं। उदाहरण के लिए, 2004 की सुनामी में अंडमान-निकोबार में ड्रोन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यही नहीं कॉमर्स और आपातकालीन सेवाओं में ड्रोन का उपयोग बढ़ रहा है। वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में मौसम निगरानी, पर्यावरण अध्ययन, और समुद्री अन्वेषण में ड्रोन का उपयोग हो रहा है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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