सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   Columns ›   Blog ›   oldest and authentic address of Hindi book of Acharya Ramchandra Shukla details of literature from Samvat 1050

हिंदी का सबसे पुराना पता: यह किताब सबसे प्रामाणिक.. आचार्य शुक्ल ने साहित्य के आदिकाल संवत 1050 से दिया ब्यौरा

आचार्य रामचंद्र शुक्ल Published by: ज्योति भास्कर Updated Sun, 14 Sep 2025 05:26 AM IST
विज्ञापन
सार

हिंदी साहित्य में गद्य और पद्य की लगभग सभी विधाओं में खूब साहित्य सृजन हुआ है। अनेक कालजयी कृतियां सामने आईं, लेकिन हिंदी के मूर्धन्य इतिहासकार-साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल की पुस्तक हिंदी साहित्य का इतिहास इस भाषा का सबसे पुराना और प्रामाणिक पता माना जा सकता है।

oldest and authentic address of Hindi book of Acharya Ramchandra Shukla details of literature from Samvat 1050
हिंदी साहित्य और आचार्य रामचंद्र शुक्ल - फोटो : अमर उजाला प्रिंट
विज्ञापन

विस्तार
Follow Us

प्राकृत की अंतिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिंदी साहित्य का आविर्भाव माना जा सकता है। उस समय जैसे ‘गाथा’ कहने से प्राकृत का बोध होता था, वैसे ही ‘दोहा’ या ‘दूहा’ कहने से अपभ्रंश या प्रचलित काव्यभाषा का पद्य समझा जा सकता था। अपभ्रंश या प्राकृतभास हिंदी के पद्यों का सबसे पुराना पता तांत्रिक और योगमार्गी बौद्धों की सांप्रदायिक रचनाओं के भीतर विक्रम सातवीं शताब्दी के अंतिम चरण में लगता है।

loader
Trending Videos


हिंदी साहित्य का आदिकाल संवत 1050 से
मुंज व भोज के समय (संवत 1050) के लगभग तो ऐसी अपभ्रंश या पुरानी हिंदी का पूरा प्रचार शुद्ध साहित्य या काव्य रचनाओं में भी पाया जाता है। अत: हिंदी साहित्य का आदिकाल संवत 1050 से लेकर संवत 1375 तक अर्थात महाराज भोज से लेकर हम्मीरदेव के समय के कुछ पीछे तक मान सकते हैं।
विज्ञापन
विज्ञापन


दोहों में एक अलंकार ग्रंथ
यद्यपि जनश्रुति इसे और पीछे ले जाती है और संवत 770 में भोज के पूर्वपुरुष राजा मान के सभासद पुष्य नामक किसी बंदीजन का दोहों में एक अलंकार ग्रंथ लिखना बताती है (दे. शिवसिंह सरोज), पर इसका कहीं कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

‘वीरगाथाकाल’
इस अनिर्दिष्ट लोकप्रवृत्ति के बाद जब से मुसलमानों की चढ़ाइयों का प्रारंभ होता है, तब से हम हिंदी साहित्य की प्रवृत्ति एक विशेष रूप से बंधती हुई पाते हैं। राजाश्रित कवि और चारण अपने आश्रयदाता राजाओं के पराक्रमपूर्ण चरितों या गाथाओं का वर्णन भी किया करते थे। यही प्रबंध परंपरा ‘रासो’ के नाम से पाई जाती है, जिसे ‘वीरगाथाकाल’ कहा है। दूसरी बात आदिकाल के संबंध में ध्यान देने की यह है कि इस काल की जो साहित्यिक सामग्री प्राप्त है, उसमें कुछ तो असंदिग्ध है और कुछ संदिग्ध है।

कवियों ने काव्य परंपरा के अनुसार साहित्यिक प्राकृत के पुराने शब्द लिए
असंदिग्ध सामग्री का अभिप्राय यह है कि यह उस समय की ठीक बोलचाल की भाषा नहीं है, जिस समय की इसकी रचनाएं मिलती हैं। यह उस समय के कवियों की भाषा है। कवियों ने काव्य परंपरा के अनुसार साहित्यिक प्राकृत के पुराने शब्द तो लिए ही हैं (जैसे पीछे की हिंदी में तत्सम संस्कृत शब्द लिए जाने लगे), विभक्तियां, कारकचिह्न अैर क्रियाओं के रूप आदि भी बहुत कुछ अपने समय से कई सौ वर्ष पुराने रखे हैं।

कई सौ वर्ष पहले से कवि परंपरा...
बोलचाल की भाषा घिस-घिसाकर बिल्कुल जिस रूप में आ गई थी, सारा वही रूप न लेकर कवि और चारण आदि भाषा का बहुत कुछ वह रूप व्यवहार में लाते थे, जो उनसे कई सौ वर्ष पहले से कवि परंपरा रखती चली आती थी। विक्रम की चौदहवीं शताब्दी के मध्य में एक ओर तो पुरानी परंपरा के कोई कवि संभवत: शारंगधर हम्मीर की वीरता का वर्णन ऐसी भाषा में कर रहे थे- चलिअ वीर हम्मीर पाअभर मेइणि कंपड़। दिगमग णह अंधार धूलि सुररह आच्छाइहि।

विक्रम की पंद्रहवीं शताब्दी के मध्य तक ऐसी परंपरा
खुसरो दिल्ली में ऐसी बोलचाल की भाषा में पहेलियां और मुकरियां कह रहे थे- एक नार ने अचरज किया। सांप मार पिंजरे में दिया। पंद्रहवीं सदी में विद्यापति बोलचाल की मैथिली के अतिरिक्त पुरानी काव्यभाषा भी भनते रहे- बालचंद बिज्जावइ भषा। दुहु नहिं घ्घ्घ्घ् दुज्जन हासा। सारांश यह है कि अपभ्रश की यह परंपरा विक्रम की पंद्रहवीं शताब्दी के मध्य तक चलती रही।

भेद विद्यापति ने स्पष्ट रूप से सूचित किया
एक ही कवि विद्यापति ने दो प्रकार की भाषा का व्यवहार किया है, पुरानी अपभ्रंश और बोलचाल की भाषा का। इन दोनों भाषाओं का भेद विद्यापति ने स्पष्ट रूप से सूचित किया है- देसिल बयना सब जन मिट्ठा। तें तैंसन जंपओं अवहट्ठा। अर्थात देशी भाषा (बोलचाल की भाषा) सबको मीठी लगती है, इससे वैसा ही अपभ्रंश (देशी भाषा मिला हुआ) मैं कहता हूं। विद्यापति ने अपभ्रंश से भिन्न, प्रचलित बोलचाल की भाषा को ‘देशी भाषा’ कहा है।

-हिंदी साहित्य का इतिहास पुस्तक के संपादित अंश

विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

एप में पढ़ें

Followed