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समृद्धि के लिए डाटा सुरक्षा जरूरी, जानिए क्या हैं इसके मायने

शंकर अय्यर Published by: शंकर अय्यर Updated Fri, 27 Nov 2020 07:40 AM IST
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मई 2010 में आधार की शुरुआत के वक्त 'डाटा सुरक्षा, सुरक्षा और गोपनीयता मानदंडों के लिए कानूनी ढांचे' की सिफारिश करने के लिए सचिवों की एक समिति की स्थापना की गई थी। संक्षिप्त नोट में कहा गया था: 'विभिन्न सरकारी और निजी एजेंसियों द्वारा एकत्रित किए जा रहे व्यक्तिगत डाटा की सुरक्षा और संरक्षण कानून में खामी के कारण सवालों के घेरे में है, क्योंकि भारत में कोई डाटा सुरक्षा कानून नहीं है। भारत को इन मुद्दों पर व्यापक और व्यवस्थित तरीके से सोचना शुरू करना होगा।' वर्ष 2020 में एक दशक से ज्यादा समय बीतने के बाद- जब एक अरब आधार नामांकन हो चुके हैं, कई समितियों और आयोगों के बाद निजता पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है और एक श्वेत पत्र जारी हो चुका है- भारत डेटा की सुरक्षा और व्यक्तिगत जानकारी की गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए एक फ्रेमवर्क का इंतजार कर रहा है। हां, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की एक धारा 43 ए है, जो सुनिश्चित करती है कि निजी संस्थाएं क्षतिपूर्ति और मुआवजे के भुगतान के लिए उत्तरदायी हैं। हालांकि, डेटा की परिभाषाएं संकीर्ण हैं और प्रावधान व्यापक नहीं हैं। निवारण प्रणाली की अपर्याप्तता और डिजिटल दुनिया में डेटा प्रवाह की जटिलताओं ने हालात को बदतर बना दिया है।


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