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टैरिफ के पीछे की वजहें ये तो नहीं: क्या ट्रंप की नाराजगी का असली कारण पीएम मोदी का 'इनकार'? रूसी तेल बहाना है
शेखर अय्यर, वरिष्ठ पत्रकार
Published by: दीपक कुमार शर्मा
Updated Sat, 06 Sep 2025 06:06 AM IST
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डोनाल्ड ट्रंप, अमेरिकी राष्ट्रपति
- फोटो :
ANI
विस्तार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन से इतर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और फिर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ द्विपक्षीय वार्ता की। उनकी यह वार्ता अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा भारतीय उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाने और रूस से तेल खरीदने के कारण भारत की आलोचना की पृष्ठभूमि में हुई। मोदी की शी के साथ वार्ता जहां भारत और चीन के बीच लंबे समय से जारी मुद्दों के समाधान की उम्मीद जगाती है, वहीं पुतिन के साथ बातचीत दर्शाती है कि भारत और रूस बेहतर साझेदार बने रहेंगे।
एससीओ शिखर सम्मेलन में सभी सदस्य देशों द्वारा पहलगाम आतंकी हमले की निंदा से भारत को महत्वपूर्ण कूटनीतिक कामयाबी मिली। मोदी, पुतिन और जिनपिंग के एकसाथ आने से ट्रंप की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। उन्हें लग रहा होगा कि ये तीनों देश मिलकर उनकी रणनीति के खिलाफ जमीन तैयार कर रहे हैं। एक तरह से ट्रंप ने ही इन तीनों देशों को अपने संबंधों को फिर से सुधारने का मौका दिया है।
तियानजिन घोषणापत्र मोदी के दृढ़ संदेश ‘आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दोहरे मापदंड स्वीकार्य नहीं हैं’ की भी अनुगूंज है। पहलगाम आतंकी हमले के पीड़ित परिवारों के प्रति गहरी संवेदना जताते हुए सदस्य देशों ने जोर देकर कहा कि इस तरह के कृत्य करने वाले अपराधियों, संगठनों और प्रायोजकों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। ट्रंप द्वारा उत्पन्न उथल-पुथल की वजह से भारत ने अपने संबंधों को पुनः दिशा देने के लिए अहम कूटनीतिक प्रयास शुरू किए हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि चीन से पहले मोदी जापान के साथ अपने रिश्तों को और मजबूत करने के लिए टोक्यो गए थे।
मोदी-जिनपिंग वार्ता भारत-चीन संबंधों में महत्वपूर्ण क्षण था। 2020 में गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष के बाद चीनी धरती पर मोदी और जिनपिंग के बीच यह पहली आमने-सामने की बैठक थी। इस घटना के कारण दोनों देशों के रिश्ते ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर पहुंच गए थे। इस पृष्ठभूमि में मोदी के दौरे को दोनों देशों के बीच नए कूटनीतिक अध्याय की शुरुआत के रूप में देखा गया है। क्या मोदी और शी संबंधों को सामान्य बना सकते हैं? विशेषज्ञ मानते हैं कि सीमा विवाद की छाया रातों-रात दूर नहीं होगी। हालांकि, वर्षों की चुप्पी के बाद हुई आमने-सामने की वार्ता विश्वास बढ़ाने का एक अवसर प्रदान करती है। विश्लेषक प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा की सफलताओं को तात्कालिक रूप से कम, लेकिन संवाद के रास्ते खोलने के रूप में ज्यादा देखते हैं।
यदि यूक्रेन-रूस युद्ध समाप्त हो जाता है, तो हालात बदल जाएंगे। इससे रूस और चीन भी ट्रंप के साथ फिर संपर्क में आ जाएंगे। इसी तरह, भारत ने भी अमेरिका के लिए अपने दरवाजे बंद नहीं किए हैं। अमेरिका भी व्यापार संबंधी मुद्दों के धीरे-धीरे सुलझ जाने के बाद मोदी के साथ संबंधों को फिर से बहाल करने की कोशिश करेगा।
दुनिया भर में चर्चा हो रही है कि ट्रंप ने भारत पर भारी टैरिफ क्यों थोपा। टैरिफ लागू होने के बाद खुद अमेरिकी लोग चिंतित हैं कि भारतीय सामान ज्यादा महंगे हो जाएंगे। ट्रंप के सलाहकारों ने आग में घी डालने का काम किया है। उनके व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने तो रूस-यूक्रेन युद्ध को ‘मोदी का युद्ध’ तक कह दिया। उनके दूसरे करीबी सलाहकार अमेरिकी राष्ट्रीय आर्थिक परिषद के निदेशक केविन हेसेट ने भारत पर अमेरिकी उत्पादों के लिए अपने बाजार खोलने में ‘अड़ियल’ रवैया अपनाने का आरोप लगाया। निस्संदेह ट्रंप के पास भारत पर अतिरिक्त टैरिफ थोपने का कोई वाजिब कारण नहीं है। रूसी तेल की खरीद तो एक बहाना है। ट्रंप खुद स्वीकार चुके हैं कि अमेरिका यूक्रेन को हथियार बेचकर मुनाफा कमा रहा है।
कुछ विशेषज्ञ मोदी और ट्रंप के बीच हुए मनमुटाव के चार मुख्य कारण गिनाते हैं। पहला कारण, जुलाई 2019 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान की अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रंप ने उनसे कहा था कि मोदी ने उनसे कश्मीर मसले पर मध्यस्थता करने के लिए बोला है। ट्रंप की इस टिप्पणी पर मोदी ने नाराजगी जताई और व्हाइट हाउस को साफ कर दिया कि कश्मीर मसले पर भारत किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करेगा। दूसरा कारण, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मोदी ने दोनों उम्मीदवारों, डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस से मिलने का समय मांगा था। ट्रंप ने उन्हें समय दिया और अपनी एक रैली में उन्होंने घोषणा कर दी कि मोदी मुझसे मिलने के लिए आ रहे हैं, लेकिन ऐन मौके पर कमला हैरिस पीछे हट गईं। मोदी ने सोचा कि एक ही पार्टी के प्रत्याशी से मिलना ठीक नहीं रहेगा। उन्होंने ट्रंप के साथ अपनी मुलाकात रद्द कर दी, जो ट्रंप को बुरा लगा। तीसरा कारण, ट्रंप चालीस से ज्यादा बार दावा कर चुके हैं कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान संघर्ष रुकवाया। लेकिन भारत ने बार-बार स्पष्ट किया कि संघर्ष विराम पाकिस्तान के अनुरोध पर हुआ, पर ट्रंप यह सुनने को तैयार नहीं थे। चौथा कारण, कनाडा में जी-7 शिखर सम्मेलन से इतर मोदी और ट्रंप मिलने वाले थे, लेकिन ट्रंप शिखर सम्मेलन को बीच में ही छोड़कर अमेरिका चले गए। उन्होंने मोदी को फोन कर आमंत्रित किया। ठीक उसी समय पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर व्हाइट हाउस में ट्रंप से रात्रिभोज पर मिलने वाले थे। स्वाभाविक है, मोदी ने ट्रंप का आमंत्रण स्वीकार नहीं किया। इससे ट्रंप मोदी से नाराज हो गए।
साफ है कि भारत के साथ ट्रंप की समस्या केवल रूसी तेल खरीदने की वजह से ही नहीं है। अमेरिका और यूरोपीय देश अब भी यूक्रेन को भारी समर्थन दे रहे हैं। अन्य देशों की तुलना में भारत बहुत कम मात्रा में रूसी तेल खरीदता है। ट्रंप की समस्या ने आसिम मुनीर को उनका मित्र बना दिया और उन्होंने टैरिफ विवाद में युद्ध विराम के मुद्दे को शामिल करके मोदी को संकट में डाल दिया। संभवतः इसी वजह से उन्होंने भारत पर सबसे अधिक टैरिफ लगाया और पुरानी दोस्ती का भी ख्याल नहीं रखा। दूसरी तरफ ट्रंप ने चीन को राहत प्रदान की, जिसे वह अमेरिका का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी मानते थे। भारत ने ट्रंप की धमकियों के आगे ‘समर्पण’ करने से इन्कार कर दिया। अधिकारियों का कहना है कि ट्रंप ने मोदी को हल्के में ले लिया। ट्रंप के काम करने की अपनी शैली है। वह हर दिन मीडिया से बात कर किसी भी राष्ट्र प्रमुख पर अपने विचार व्यक्त करते हैं और सोशल मीडिया पोस्टों के जरिये बड़ी घोषणाएं करते हैं। अन्य किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने ऐसा कभी नहीं किया। अब तो अमेरिकी भी कहने लगे हैं कि ट्रंप सिर्फ एक व्यापारी हैं। इसीलिए भारत को ट्रंप से निपटने के नए तरीके और पद्धतियां तलाशनी होंगी।