दो दिन रहेगा महानवमी पर पूजन का शुभ संयोग
तिथियों में फेरबदल के चलते इस बार एक नवरात्र बढ़ गया था। अब महानवमी को लेकर अलग-अलग धारणाएं व्यक्त की जा रही हैं। पंचांगों एवं शास्त्रों के अनुसार इस बार महानवमी का पूजन और यज्ञ 21 और 22 अक्टूबर दोनों दिन किया जा सकता है।
गौरतलब है कि अमावस्या में नवरात्र आरम्भ तथा घट स्थापना निषिद्घ मानी गई है। प्रख्यात ज्योतिषाचार्य डॉ. प्रियव्रत शर्मा के अनुसार यदि शुक्ल प्रतिपदा एक मुहूर्त से अल्प हो तभी अमावस्या में नवरात्र प्रारम्भ होगा अन्यथा नहीं। सूर्योदयांतर दसघटी तक अथवा अभिजीत मुहूर्त तक घट स्थापन के लिए उचित माना गया है।
इसी कारण प्रतिपदा की पहली सोलह घड़ियां तथा चित्रा एवं वैघृति योगों के पूर्वार्द्घ भाग में नवरात्र का शुरु करना निषेद्घ बताया गया है। शास्त्रों की बाध्यता के कारण नवरात्र सोमवती अमावस्या के अगले दिन 13 अक्टूबर को मध्यान्ह काल में प्रारम्भ हुए। चूंकि प्रतिपदा तिथि उदय काल में 14 अक्टूबर को थी, अत: दोनों दिन प्रतिपदा तिथि मनाते हुए शैलपुत्री का पूजन किया गया।
दोनों दिन मनाई जा सकती है महानवमी
अब महानवमी को लेकर अलग-अलग धारणाएं व्यक्त की जा रही हैं। अलबत्ता सभी पंचांगों एवं विद्वानों का मानना है कि दुर्गा अष्टमी 21 अक्टूबर को मनाई जाएगी। महानवमी की पूजा इस दिन भी की जा सकती है। 22 अक्टूबर विजयदशी के दिन अपराजिता का पूजन होगा।
इस दिन नवमी तिथि दोपहर 11.58 बजे तक विद्यमान है और श्रवण नक्षत्र पड़ रहा है। इस समय का उपयोग नवमी का यज्ञ करने में किया जा सकता है। नवमी का पूजन विजयदशमी की सवेरे शास्त्रोक्त है।
गंगा सभा विद्वत् परिषद के सदस्य पंडित संजीव शास्त्री के अनुसार अपराजिता पूजन के साथ महानवमी मनाना उपयुक्त है। अलबत्ता अष्टमी के दिन भी नवमी पूजन किया जा सकता है।