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देहरादून: मां की खराब जीवनशैली से बच्चों में जन्मजात मानसिक विकार, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से नजदीकी बनी परेशानी

अंकित यादव, संवाद न्यूज एजेंसी, देहरादून Published by: रेनू सकलानी Updated Tue, 25 Nov 2025 01:19 PM IST
सार

मां की खराब जीवनशैली से बच्चों में जन्मजात मानसिक विकार का कारण है। पेट में पल रहा बच्चा स्वस्थ हो इसके लिए मां का शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहना बेहद जरूरी है। खासकर गर्भावस्था के शुरुआती तीन महीनों में भ्रूण की एक्टोडर्म, मेसोडर्म और एंडोडर्म नाम की तीन प्राथमिक जनन परतें विकसित होती हैं।

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Poor lifestyle of the mother can lead to congenital mental disorders in children Dehradun News
मां की खराब जीवनशैली से बच्चों में जन्मजात मानसिक विकार - फोटो : Freepik.com
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विस्तार
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बच्चों में जन्मजात मानसिक विकार का कारण मां की गर्भावस्था के दौरान खराब जीवनशैली है। बच्चों में इसके लक्षण ऑटिज्म, एडीएचडी और मस्तिष्क के असंतुलित सर्किट के रूप में सामने आ रहे हैं। जिला चिकित्सालय के बाल रोग विभाग की ओपीडी में हर 30 में से एक मरीज इस बीमारी की चपेट में मिल रहा है।

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विशेषज्ञों के अनुसार गर्भावस्था के दौरान मां की लाइफ स्टाइल का भ्रूण पर सीधा असर पड़ता है। पेट में पल रहा बच्चा स्वस्थ हो इसके लिए मां का शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहना बेहद जरूरी है। खासकर गर्भावस्था के शुरुआती तीन महीनों में भ्रूण की एक्टोडर्म, मेसोडर्म और एंडोडर्म नाम की तीन प्राथमिक जनन परतें विकसित होती हैं। जिला चिकित्सालय की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. नीतू ने बताया कि आज के समय में अनियोजित गर्भधारण करने वालों का प्रतिशत काफी ज्यादा है। उनको दो-तीन महीने तक गर्भावस्था की जानकारी ही नहीं हो पाती होती है।

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इस दौरान शरीर में फॉलिक एसिड की कमी होने से कई तरह की समस्याएं पैदा होने लगती हैं। इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान फोन और टीवी समेत अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का अधिक इस्तेमाल करने से उनसे उत्सर्जित ब्लू लाइट का असर भी भ्रूण पर पड़ता है। इससे न्यूरल ट्यूब प्रभावित होता है। जो कई तरह के जन्मजात मानसिक विकार का कारण बनता है। चिकित्सक के मुताबिक फोन से स्ट्रेस हार्माेन भी उत्पन्न होता है। उनकी ओपीडी में हर रोज दो से तीन मरीजों इसी तरह की जन्मजात बीमारियों से पीड़ित आ रहे हैं।

 

रेडिएशन के संपर्क में आने से गर्भवतियों की चुनौतियां बढ़ीं

जिला चिकित्सालय की वरिष्ठ महिला एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. तुलसी बिष्ट के मुताबिक गर्भवती महिलाएं अगर किसी भी तरह के रेडिएशन के संपर्क में आती हैं, तो उनमें स्वास्थ्य संबंधी कई तरह की परेशानियां पैदा होने लगती हैं। सामान्य महिलाएं के शारीरिक प्रतिक्रियाओं की तुलना में गर्भवतियों में कई बदलाव देखने को मिलते हैं। इस अवस्था में रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम हो जाती है। साथ ही मेटाबोलिज्म में भी काफी बदलाव देखने को मिलते हैं। इसके अलावा हेमोडायलेशन के कारण रक्त में प्लाज्मा का आयतन बढ़ जाता है। इससे कार्डिक लोड में भी बढ़ोतरी देखने को मिलती है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। इस अवस्था में अतिरिक्त सावधानियां बरतने की आवश्यकता इसलिए भी होती है, क्योंकि आपके साथ ही भ्रूण के शरीर को भी पोषण की आवश्यकता होती है।

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बचाव के उपाय

1- गर्भावस्था योग को जीवन का हिस्सा बनाएं।

2- पोषण युक्त खाने का सेवन करें।

3- शरीर में रक्त और फॉलिक एसिड की पर्याप्त मात्रा रखें।

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