Uttarakhand: एआई नीति से गांव-गांव तक होगा डिजिटल बदलाव, शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर जलवायु तक सात प्रमुख लक्ष्य
उत्तराखंड की पहली एआई पॉलिसी का ड्राफ्ट जारी हुआ है। सात सिद्धांतों पर नीति को बनाया गया है। जलवायु, आपदा प्रबंधन में भी बदलाव होगा।
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उत्तराखंड की पहली एआई नीति से गांव-गांव तक डिजिटल बदलाव होगा। इसके सात प्रमुख लक्ष्य हैं, जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर जलवायु व आपदा प्रबंधन भी शामिल है। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने इस नीति का ड्राफ्ट जारी करते हुए सुझाव मांगे हैं। सरकार ने इस मिशन को लागू करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर, डाटा व कंप्यूट, एआई एप्लिकेशन विकास और साफ ऊर्जा खास फोकस किया है।
इन सात सिद्धांत पर काम करेगा एआई मिशन
-टेलीमेडिसिन, ई-लर्निंग जैसी मौजूदा योजनाओं में एआई जोड़कर आगे इसे सरकारी सेवाओं की रीढ़ बनाया जाएगा।
-दूरस्थ पहाड़ी, बुजुर्ग और कमजोर समुदायों को एआई की मदद से बेहतर सेवाएं मिलेंगी।
-पर्यटन, स्वास्थ्य, शासन, कृषि, शिक्षा, जलवायु और शहरी विकास जैसी जरूरत वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता मिलेगी।
-इंडिया एआई, हिमालयी राज्यों, निजी कंपनियों और शोध संस्थानों के साथ मिलकर समाधान बनाए जाएंगे।
-युवाओं के लिए एआई स्किलिंग, रोजगार और स्टार्टअप अवसर बढ़ाए जाएंगे ताकि वे राज्य में ही कॅरिअर बना सकें।
-एआई सिस्टम पारदर्शी, सुरक्षित और जवाबदेह होगा ताकि लोगों का भरोसा मजबूत रहे।
-एक लीन एआई मिशन और सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाया जाएगा, जहां हर विभाग अपने एआई पायलट प्रोजेक्ट चला सकेगा।
2030 का पहला, 2047 का दूसरा लक्ष्य
प्रदेश में 2030 तक इंटरनेट उपलब्धता 78 से बढ़ाकर 100 फीसदी, 2047 तक 130 फीसदी होगा। स्मार्टफोन का उपयोग 65 से बढ़ाकर 90 प्रतिशत, डिजिटल साक्षरता 40 से बढ़ाकर 80 प्रतिशत किया जाएगा। सभी ग्राम पंचायतों तक भारतनेट की पहुंच, पहाड़ों में पीपीपी मॉडल से नेटवर्क विस्तार, गरीब परिवारों को सस्ते स्मार्टफोन व डाटा के साथ ही साक्षरता अभियान चलेगा। 2030 तक कंप्यूट क्षमता 775 टीएफएलओपीएस से बढ़ाकर 2047 तक 7500 और डाटा सेंटर क्षमता 5 से बढ़ाकर 45 एमडल्ब्यू होगी, जिसके लिए परम गंगा सुपरकंप्यूटर का अधिक उपयोग, राज्य डाटा सेंटर का विस्तार, विवि व विभागों में कम लागत वाला एआई हार्डवेयर, गढ़वाली, कुमाऊंनी व हिमालयी पारिस्थितिकी डाटा का स्थानीय डाटासेट तैयार होगा। प्रदेश में 2030 तक तीन और 2047 तक सात एआई इनोवेशन सेंटर बनेंगे। इसी प्रकार, 2030 तक 15 व 2047 तक 30 एआई इंक्यूबेशन सेंटर बनेंगे। इसके लिए दून व रुड़की में एआई इनोवेशन लैब, आईआईटी रुड़की में स्टार्टअप इंक्यूबेशन बनेगा। गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा पहचान व स्पीच मॉडल विकसित होगा।
जलवायु व आपदा प्रबंधन में एआई लाएगा क्रांति
एआई की मदद से भूस्खलन, फ्लैश फ्लड, ग्लेशियल लेक फटने जैसी घटनाओं का पहले से पता लगेगा, जिससे समय पर लोगों को सुरक्षित निकाला जा सकेगा। सैटेलाइट और ड्रोन से मिली तस्वीरों को एआई तुरंत विश्लेषित कर राहत कार्यों को तेज करेगा। एआई आधारित सिमुलेशन से भूकंप और बाढ़ जैसी स्थितियों का वर्चुअल अभ्यास कर अधिकारियों को बेहतर तैयारी का मौका मिलेगा।
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पुल, सड़कें, बांध आदि की एआई सेंसर से लगातार निगरानी कर समय से पहले खराबी का पता चलेगा। आपदा के समय एआई चैटबॉट कई भाषाओं में अपडेट और जानकारी देगा। ग्लेशियर पिघलने और मौसम बदलाव का एआई से विश्लेषण कर भविष्य की योजना बनेगी। एआई कार्बन कैप्चर और जंगलों के संरक्षण में मदद करेगा। एआई से जानवरों की गतिविधियों की निगरानी होगी और मानव-वन्यजीव संघर्ष कम करने में मदद मिलेगी।