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Sajjan Kumar: एक समय दिल्ली में बोलती थी सज्जन की तूती, संजय के थे खास; पढ़ें अर्श से फर्श तक पहुंचने की कहानी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Vikas Kumar Updated Wed, 26 Feb 2025 01:02 AM IST
सार

वर्ष 1977 में कांग्रेस की हालत खराब थी और कांग्रेस ने सज्जन कुमार को बाहरी दिल्ली से प्रत्याशी बना दिया। सज्जन ने अपने प्रतिद्वंदी और दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री रहे ब्रह्म प्रकाश को हरा दिया। इसी के साथ सज्जन कुमार की राजनीति में अहमियत बढ़ गई। 

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a time when Sajjan Kumar very influential in Delhi close to Sanjay Gandhi read his story of falling from riche
सज्जन कुमार - फोटो : X/@sarbjitjhinjer
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विस्तार
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नवंबर 1984 के दंगो के एक और मामले में कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा मिल गई। दिल्ली की राजनीति में एक समय सज्जन कुमार की तूती बोलती थी और वे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के नवरत्नों में गिने जाते थे। दिल्ली दंगो में नाम आने के बाद से ही उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लग गई और कई बार लोकसभा टिकट पर उनका नाम कटा और सजा के बाद वे राजनीति के अर्श से फर्श पर आ गए। अब हालत यह है कि कभी उनसे घनिष्ठता बनाने की जुगाड़ लगाने वालों ने अब उनसे दूरी बना ली है।

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डेयरी का काम किया, पहले पार्षद बने फिर लोकसभा पहुंचे
सज्जन कुमार अपने आरंभिक दिनों में डेयरी का काम करते थे। उन पर किस्मत ऐसी मेहरबान हुई कि वे पहले पार्षद व फिर लोकसभा तक पंहुचने में कामयाब रहे। सजंय गांधी की नजदीकी के चलते उनकी गिनती कांग्रेस के दिग्गजों में होने लगी।

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पार्षद बनने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा
सज्जन कुमार शुरू से ही दबंग रहे हैं और इसी के चलते उनकी मुलाकात कांग्रेस नेता हीरा सिंह से हुई। उन्होंने ही दिल्ली के वेताज बादशाह कहे जाने वाले एचकेएल भगत के जरिए सज्जन को निगम पार्षद का टिकट दिलाया और सज्जन जीत भी गए। इसके बाद सज्जन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसी दौरान संजय गांधी की नजर उन पर पड़ी।

दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री को दी मात
वर्ष 1977 में कांग्रेस की हालत खराब थी और कांग्रेस ने सज्जन कुमार को बाहरी दिल्ली से प्रत्याशी बना दिया। सज्जन ने अपने प्रतिद्वंदी और दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री रहे ब्रह्म प्रकाश को हरा दिया। इसी के साथ सज्जन कुमार की राजनीति में अहमियत बढ़ गई। इसके बाद दिल्ली दंगों के चलते कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया। हालांकि वर्ष 1991 के चुनावों में वे टिकट पाने में कामयाब रहे और जीत भी गए। उन्होंने भाजपा नेता साहिब सिंह वर्मा को हराया।

2009 में इस वजह से कटा टिकट
इसी प्रकार कांग्रेस ने उन्हें 2004 में टिकट दिया और वे जीतने में कामयाब रहे। वर्ष 2009 के चुनावों में उन्हें टिकट दिया गया लेकिन एक सिख पत्रकार द्वारा कांग्रेस के तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम पर जूता फेंकने के बाद उनका टिकट काट दिया गया लेकिन सज्जन ने अपने भाई रमेश कुमार को टिकट दिलवा दिया और उसे जितवा भी दिया। इसके बाद रमेश कुमार 2014 के चुनावों में हार गए और सज्जन कुमार भी राजनीति से दूर चलते गए। दंगों के मामले में सजा के बाद से उनकी राजनीति धरातल पर चलती गई और अब वे दो मामलों में सजा काट रहे है।

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