Delhi Air Pollution: पराली के धुएं ने हवा को बनाया जहरीला, AQI जा पहुंचा 311 तक; आज हालात और बिगड़ने की आशंका
दिल्ली में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए निर्णय सहायता प्रणाली के अनुसार, हवा में पराली से होने वाला प्रदूषण का प्रतिशत 21.25 रहा। शुक्रवार को इसके 38.89 फीसदी रहने की आशंका है।
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राजधानी समेत एनसीआर में पराली जलाने की घटनाओं ने हवा में पीएम-2.5 का स्तर बढ़ा दिया है, जिसकी वजह से बयार बृहस्पतिवार को बेहद खराब श्रेणी में पहुंच गई। दिल्ली में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए निर्णय सहायता प्रणाली के अनुसार, हवा में पराली से होने वाला प्रदूषण का प्रतिशत 21.25 रहा। शुक्रवार को इसके 38.89 फीसदी रहने की आशंका है।
वाहन से होने वाला प्रदूषण 14.35 फीसदी दर्ज किया गया। राजधानी का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 311 दर्ज किया गया। यह हवा की बेहद खराब श्रेणी है। इसमें बुधवार की तुलना में 109 सूचकांक की वृद्धि दर्ज की गई। दिल्ली के बाद गाजियाबाद की हवा सबसे प्रदूषित रही। यहां एक्यूआई 266 दर्ज किया गया, यह खराब श्रेणी है। गुरुग्राम और नोएडा में 257 और ग्रेटर नोएडा में 228 और फरीदाबाद एक्यूआई 218 दर्ज किया गया।
बृहस्पतिवार सुबह की शुरुआत धुंध और हल्के कोहरे से हुई। आसमान में कुहासे के साथ स्मॉग की चादर दिखाई दी जिसकी वजह से दृश्यता सही नहीं रही। पालम में सुबह 8:00 से 9 बजे तक दृश्यता 500 और सफदरजंग एयरपोर्ट में सुबह 7:30 बजे 900 मीटर दृश्यता दर्ज की गई। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) का पूर्वानुमान रविवार तक हवा बेहद खराब श्रेणी में बरकरार रहेगी। इसके चलते सांस के मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। लोगों को आंखों में जलन जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
सीपीसीबी के अनुसार, दिल्ली में पिछले 24 घंटों में 14 किमी प्रति घंटे की गति से दक्षिण-पूर्वी हवाएं चल रही हैं। इसके चलते प्रदूषण में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। ऐसे में बुधवार को हवा उत्तर-पश्चिम दिशा से 14 किलोमीटर प्रतिघंटे के गति से चली। वहीं, अनुमानित अधिकतम मिश्रण गहराई 1500 मीटर रही। इसके अलावा वेंटिलेशन इंडेक्स 9100 मीटर प्रति वर्ग सेकंड रहा।
पीएम-10 और पीएम-2.5 का स्तर रहा इतना
शाम पांच बजे हवा में पीएम10 की मात्रा 256.3 और पीएम2.5 की मात्रा 155.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज की गई। सीपीसीबी के अनुसार, राजधानी के कई मॉनिटरिंग स्टेशनों पर हवा बेहद खराब में रिकॉर्ड की गई, जबकि कुछ इलाकों में एक्यूआई मध्यम रहा। आनंद विहार 305, अलीपुर 312, अशोक विहार में 320, बवाना में 381, जहांगीरपुरी में 307, मुंडका में 351, रोहिणी में 345, वजीरपुर में 339, नरेला में 342, विवेक विहार में 308 और चांदनी चौक में 342 और बुराड़ी में 381 समेत अन्य इलाकों में एक्यूआई 300 के ऊपर दर्ज किया गया। दीपावली के बाद से दिल्ली में कई इलाकों में एक्यूआई खराब और बेहद खराब श्रेणी में बना हुआ है, जबकि ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान-2 (ग्रेप-2) के प्रतिबंध अब भी लागू हैं।
हवा की स्थिति प्रदूषक तत्व के फैलाव के लिए ठीक नहीं
सीपीसीबी के आधिकारिक आकंड़ों के अनुसार, दिल्ली में इस साल अभी तक ''गंभीर'' हवा वाला कोई दिन रिकॉर्ड नहीं किया गया है, लेकिन इस हफ्ते ऐसा होने की आशंका है। पिछली बार ऐसी रीडिंग 23 दिसंबर, 2024 को ली गई थी, जब एक्यूआई 406 रिकॉर्ड किया गया था। हवा में प्रदूषक तत्व का फैलाव कम हो गया है। इससे कई लोगों को खासकर फेफड़ों या दिल की बीमारियों वाले लोगों, बच्चों और बुजुर्गों को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार, हवा की स्थिति प्रदूषक तत्व के फैलाव के लिए ठीक नहीं थी, जिससे धीरे-धीरे जमाव हो रहा था।
लगातार 24वें दिन खराब हवा रही
सीपीसीबी के अनुसार, दिल्लीवासियों ने बृहस्पतिवार को लगातार 24वें दिन खराब हवा में सांस ली। इस सीजन में 14 अक्तूबर को दिल्ली की वायु गुणवत्ता खराब श्रेणी में पहुंच गई थी। इसके बाद से लगातार ही प्रदूषण का स्तर खराब या बेहद खराब श्रेणी में बना हुआ है। दिल्ली में इस बार पहले तो नियमित अंतराल पर पश्चिमी विक्षोभ आते रहे। इसके चलते मई और जून में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई। इसके बाद अच्छे मानसून के चलते जुलाई, अगस्त और सितंबर में भी बारिश का आंकड़ा सामान्य से ज्यादा रहा। अच्छी बारिश के चलते जहां तापमान में गिरावट हुई वहीं, हवा भी काफी हद तक पहले से ज्यादा साफ-सुथरी रही।
दिल्ली का बीते 10 दिन का एक्यूआई
- 26 अक्तूबर: 321
- 27 अक्तूबर: 301
- 28 अक्तूबर: 294
- 29 अक्तूबर: 279
- 30 अक्तूबर: 373
- 31 अक्तूबर: 218
- 1 नवंबर: 303
- 2 नवंबर: 366
- 3 नवंबर: 309
- 4 नवंबर: 291
- 5 नवंबर: 202
- 6 नवंबर: 311
(स्त्रोत: सीपीसीबी)
इसलिए हवा हो रही है खराब
- कूड़े के पहाड़: गाजीपुर, ओखला और भलस्वा में लैंडफिल साइट हैं। इन तीनों साइट पर लाखों टन कूड़ा पड़ा है। यहां से उड़ने वाली धूल वायुमंडल में तैरती रहती है। कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने का प्रयास कई साल से चल रहा है। -निर्माण कार्य से निकलने वाली धूल: पूरे साल दिल्ली में निर्माण कार्य चलते रहे हैं। कुछ अधिकृत होते हैं लेकिन उससे ज्यादा अनाधिकृत निर्माण कार्य होते हैं। इनमें धूल प्रबंधन के नियम ध्वस्त नजर आते हैं। जब वायु प्रदूषण बढ़ जाता है तो ग्रेप के नियम लागू होते हैं जब धूल प्रबंधन की याद भी आती है।
- गाड़ियों से निकलता धुआं : एक आंकलन के मुताबिक दिल्ली में प्रतिदिन एक करोड़ दोपहिया से लेकर भारी वाहन सड़कों पर उतरते हैं। इनसे निकलने वाला धुआं वायु प्रदूषण को बढ़ावा देता है। धुएं से ज्यादा इनके टायरों से निकलने वाला मिनी पार्टिकल हवा को प्रदूषित करता है जो स्वास्थ्य के लिए ज्यादा नुकसानदेह होता है।
- सड़कों और फुटपाथ पर धूल : सड़कों पर उड़ती धूल भी वायु प्रदूषण में अहम रोल अदा कर रही है। कुछ सड़कों पर मशीन से सफाई होती भी है तो फुटपाथ पर धूल जमी रहती है। फुटपाथ पर मशीनें नहीं चल पाती हैं। अनाधिकृत कालोनियों में कई सड़कों के साथ कच्चे फुटपाथ हैं, जहां से धूल उड़ती रहती है। इन पर रोकथाम के लिए कोई व्यवस्था मजबूत नहीं हो पा रही है।
- निर्माण व विध्वंस का मलबा : निर्माण कार्य व विध्वंस (सीएंडडी) से निकलने वाला मलबा सड़कों के किनारे पड़ा रहता है। दिल्ली में सीएंडडी वेस्ट से दूसरे उत्पाद तैयार करने के लिए चार प्लांट हैं। जब ये पूरी क्षमता से काम करें तो भी पांच हजार टन मलबा प्रतिदिन खपाया जा सकता है। लेकिन प्रतिदिन छह हजार टन मलबा निकलता है।
- खुले में जलता कूड़ा : राजधानी में जगह-जगह खुले में कूड़ा जलाया जा रहा है। इस पर पूरे साल रोक होती है। लेकिन निगम इस पर पूरी तरह से नियंत्रण करने में नाकाम है। ग्रेप के दूसरे चरण के बाद भी लोग चेते नहीं हैं और जगह-जगह कूड़ा जलाया जा रहा है।
- औद्योगिक उत्सर्जन : औद्योगिक गतिविधियों से निकलने वाले प्रदूषक वायु प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं। दिल्ली और इसके आसपास कई उद्योग हैं जो वायु प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं।
हर रोज इतने अंकों का आ रहा उतार चढ़ाव
एयर क्वॉलिटी इंडेक्स वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) में रोज करीब 85 अंकों से अधिक का उतार-चढ़ाव आ रहा है। एक्सपर्ट के अनुसार, इस तरह का उतार-चढ़ाव स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है। इससे लोगों में लापरवाहियों के मामले में बढ़ते हैं। वह प्रदूषण को लेकर गंभीर नहीं रहते। विशेषज्ञ के अनुसार, प्रदूषण के स्तर में इतना अधिक अंतर रोज आना और भी जोखिम बढ़ा रहा है। इस उतार-चढ़ाव से लोग लापरवाह रहते हैं। वहीं कई इलाकों में दीपावली के बाद से ही एयर क्वॉलिटी मॉनिटरिंग स्टेशन की स्क्रीन बंद पड़ी हैं, जिससे लोगों को इलाके का प्रदूषण स्तर पर नहीं पता चल पा रहा है।