Delhi: हाईकोर्ट की टिप्पणी, पीएमएलए के तहत कुर्क की गई संपत्ति अपराध की आय नहीं
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक मामले पर अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि पीएमएलए के तहत कुर्क की गई संपत्ति अपराध की आय नहीं है।

विस्तार
उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 (पीएमएलए) के तहत कुर्क की गई संपत्ति को अपराध की आय नहीं माना जा सकता है। साथ ही, आपराधिक गतिविधि से प्राप्त संपत्ति के रूप में नहीं देखा जा सकता है, जब अनुसूचित या पूर्वानुमानित अपराध को सक्षम अदालत की ओर से रद्द कर दिया गया हो।

अनुसूचित या पूर्वानुमानित अपराध वह अपराध है, जो बड़े अपराध का एक घटक है और धन शोधन जैसा अपराध भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध से शुरू होता है। न्यायाधीश विकास महाजन ने कहा कि अनुसूचित अपराध और इसके माध्यम से अर्जित अपराध की आय ही धन शोधन के अपराध का आधार है। जब किसी व्यक्ति को अनुसूचित अपराध के संबंध में बरी कर दिया जाता है या बरी कर दिया जाता है, तो उसका आधार ही खत्म हो जाता है।
अदालत ने कहा कि इसके साथ ही, पीएमएलए के तहत कुर्क की गई संपत्तियों को कानूनी तौर पर अपराध की आय नहीं माना जा सकता है। साथ ही, आपराधिक गतिविधि से प्राप्त संपत्ति के रूप में नहीं देखा जा सकता है।अदालत ने फैसला सुनाया कि किसी अपराध में बरी होने के खिलाफ अपील दायर करने मात्र का अर्थ यह नहीं है कि आरोपी को पीएमएलए के तहत आपराधिक कार्यवाही या कुर्की की कठोर सजा भुगतनी पड़ेगी।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ईडी के वकील के इस तर्क में भी कोई दम नहीं है कि बरी करने के आदेश के खिलाफ दायर अपील ट्रायल कोर्ट के समक्ष कार्यवाही की निरंतरता है, क्योंकि यह सामान्य कानून है कि आपराधिक कार्यवाही के संदर्भ में मुकदमा तभी समाप्त होता है। जब उसका परिणाम बरी हो जाता है, हालांकि दोषसिद्धि के मामले में सजा के साथ दोषी अभियुक्त के खिलाफ मुकदमा समाप्त हो जाता है।
न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से दायर एक मामले में कुछ आरोपियों को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए ये टिप्पणी की।