क्या दिल्ली हिंसा की जांच में हो रहा भेदभाव? सीएए विरोधी प्रदर्शनों को दबाने की कोशिश के रूप में देख रहे प्रदर्शनकारी
- दिल्ली दंगों की जांच में पुलिस ने कई ऐसे लोगों को किया नामजद, जो सीएए विरोधी प्रदर्शनों की कर रहे थे अगुवाई
- दिल्ली पुलिस ने कहा, ठोस सबूतों पर पेश की जा रही चार्जशीट, कोर्ट में सामने आएगा सच
विस्तार
दिल्ली हिंसा की जांच में पुलिस ने चार्जशीट दाखिल करना शुरू कर दिया है। इसमें आप पार्षद ताहिर हुसैन और नागरिकता कानून विरोधी प्रदर्शनों के प्रमुख आयोजक खालिद सैफी सहित अनेक लोगों को दिल्ली दंगों का मास्टर माइंड बताया गया है।
लेकिन नागरिकता कानून विरोधी प्रदर्शनों से जुड़े हुए लोग इसे प्रदर्शन को बदनाम करने की साजिश के तौर पर देख रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि सरकार प्रदर्शनों को रोकने का जो काम अपने दम पर नहीं कर पा रही थी, उसे इस तरह अंजाम दिया जा रहा है।
इस तरह सरकार भविष्य में सीएए विरोधी किसी प्रदर्शन के आयोजन की संभावना को भी खत्म करने की कोशिश कर रही है।
नागरिकता विरोधी प्रदर्शनों के प्रबल समर्थक योगेंद्र यादव का कहना है कि दिल्ली पुलिस दंगों की साजिश की जांच नहीं कर रही है, बल्कि वह जांच के नाम पर साजिश कर रही है।
सरकार ने स्पष्ट रूप से यह महसूस कर लिया था कि नागरिकता विरोधी प्रदर्शन रोकना उसके लिए संभव नहीं रह गया है। दिन-ब-दिन यह और अधिक व्यापक होता जा रहा है और समाज के अलग-अलग विचारधारा के लोग साथ आकर इसके साथ खड़े हो रहे हैं।
इसलिए इस आन्दोलन को रोकने के लिए उसे यही सबसे अच्छा विकल्प नजर आया कि समाज को धार्मिक आधार पर बांटा जाए। उन्होंने कहा कि पहले तो यही काम दंगों की साजिश के रूप में किया गया और अब जांच के नाम पर उसे कानूनी तौर पर सही ठहराने की कोशिश हो रही है।
यादव का आरोप है कि ठीक इसी तरह की कोशिश अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने देश में कर रहे हैं। काले और गोरे के बीच की खाई को बढ़ाया जा रहा है जिससे नफरत के आधार पर एक वर्ग का वोट हासिल किया जा सके। ठीक उसी तरह की कोशिश हमारे देश में भी हो रही है।
नागरिकता कानून पर अपने मुखरविरोध के लिए प्रसिद्ध प्रोफेसर अपूर्वानंद कहते हैं कि नागरिकता कानून के विरोधी प्रदर्शनकारियों के प्रमुख लोगों के नाम चार्जशीट में डालकर इस पूरे आंदोलन को बदनाम करने की साजिश हो रही है।
उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट में आरोप लगाया है कि 8 फरवरी को ही ट्रंप की यात्रा के दौरान भयंकर हिंसा करने की साजिश रची जा चुकी थी, लेकिन सच्चाई यह है कि उस वक्त तक अमेरिकी राष्ट्रपति के आने की तारीखें भी तय नहीं हो पाईं थीं।
ऐसे में कुछ लोगों की मुलाकात के बहाने उन्हें दंगों में शामिल होने का आरोप लगा देना सरासर गलत है।
अपूर्वानंद कहते हैं कि जिन्हें दंगा-हिंसा करनी होती है वे सड़कों पर धरना-प्रदर्शन करने के लिए नहीं बैठते। वे सीधे तौर पर हथियार उठाते हैं।
लेकिन इस प्रदर्शन के दौरान देश और दुनिया ने देखा कि तीन-तीन महीने लंबे प्रदर्शन के दौरान कहीं हिंसा नहीं हुई। ऐसे में अब हिंसा में शामिल होने के आधार पर इस आन्दोलन के अहिंसक होने की सबसे बड़ी ताकत को ही चोट पहुंचाई जा रही है।
शाहीन बाग के प्रदर्शन में शामिल रहीं शबाना कहती हैं कि सरकार अगर यह सोच रही है कि इन लोगों के नाम शामिल कर वह सीएए विरोधी प्रदर्शन को दबाने में कामयाब रहेगी तो यह उसकी बड़ी भूल है।
सीएए का मुद्दा हमारे अस्तित्व से जुड़ा है और जैसे ही देश-दुनिया से कोरोना का संकट खत्म होगा, हम फिर सड़कों पर उतरेंगे और सरकार से इस विवादित कानून को वापस लेने की मांग करेंगे।
मौजपुर में ज्यादा बड़ी हिंसा की साजिश थी
कुछ लोगों का आरोप है कि भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने दिल्ली दंगों को भडकाने में अहम भूमिका निभाई थी।
इस पर कपिल मिश्रा कहते हैं कि इन दंगों में उनका नाम भी घसीटने की कोशिश की जा रही है। यह कोशिश वही लोग कर रहे हैं जो आज तक उमर खालिद और ताहिर हुसैन जैसे लोगों को बचाने की कोशिश करते आये हैं।
लेकिन सच्चाई यह है कि अगर वे मौजपुर न पहुंचे होते तो उस दिन बहुत बड़ी हिंसा हो सकती थी।
ठोस जांच पर फाइल हो रही चार्जशीट
दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता एमएस रंधावा ने अमर उजाला से कहा कि दिल्ली दंगों की जांच पूरी तरह ठोस साक्ष्यों के आधार पर की जा रही है।
एक-एक मामले पर पूरी छानबीन के साथ सबूत तलाशे जा रहे हैं और उन्हें कोर्ट में पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि दंगों की जांच पर सवाल उठाना किसी भी तरह से उचित नहीं है।