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आरोपी की मंशा की जांच हो: उमर खालिद और शरजील इमाम की जमानत याचिका का विरोध, जानें पुलिस ने क्या रखीं दलीलें

अमर उजाला नेटवर्क, दिल्ली Published by: अनुज कुमार Updated Wed, 12 Feb 2025 08:26 PM IST
सार

दिल्ली हाईकोर्ट में पुलिस ने  उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य की जमानत याचिकाओं का जमकर विरोध किया है। अभियोजन पक्ष ने आरोपियों के खिलाफ यूएपीए मामले में निचली अदालत की कार्यवाही में देरी करने का प्रयास किया।

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delhi riot 2020 Police opposes bail plea of Umar Khalid and others
उमर खालिद (फाइल फोटो) - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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दिल्ली पुलिस ने बुधवार को उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य की जमानत याचिकाओं का उच्च न्यायालय में विरोध किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे पता चले कि अभियोजन पक्ष ने आरोपियों के खिलाफ यूएपीए मामले में निचली अदालत की कार्यवाही में देरी करने का प्रयास किया। न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिन्दर कौर की पीठ के समक्ष पेश हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता चेतन शर्मा और विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने कहा कि देरी के लिए आरोपियों को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

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शर्मा ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड से यह पता नहीं चलता कि अभियोजन पक्ष ने मामले में देरी करने का कोई प्रयास किया, बल्कि यह स्पष्ट रूप से दूसरे पैर पर ही लगा है। प्रसाद ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के न्यायिक आदेश यह दर्शाते हैं कि किस तरह से आरोपी के कहने पर मामले में देरी की गई। उन्होंने आरोप लगाया कि आरोपों पर बहस चल रही है। दूसरे आरोपी ने अपनी दलीलें पूरी कर ली हैं। वे दो सप्ताह की मोहलत चाहते थे। दिन-प्रतिदिन की सुनवाई के बावजूद, आरोपी बहस के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। शर्मा ने कहा कि देरी के मुद्दे को प्रत्येक मामले की जटिलता के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।

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साथ ही, आतंकवाद और राज्य की अखंडता से जुड़े मामलों में निर्णय का स्तर अलग-अलग होता है। शर्मा ने कहा कि हालांकि राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के मामलों में त्वरित सुनवाई आवश्यक है, लेकिन विचाराधीन कैदियों का लंबे समय तक जेल में रहना उन्हें जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं है, जबकि तथ्यों से उनकी संलिप्तता का पता चलता है। उन्होंने कहा कि त्वरित सुनवाई का अधिकार मुफ्त पास नहीं है। समाज के अधिकार को व्यक्ति के अधिकार पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए। शर्मा ने कहा कि अदालत को अपना निर्णय लेने से पहले आरोपी की मंशा और जान के नुकसान की जांच करनी चाहिए।

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