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TERI Report: दिल्ली में डिटर्जेंट और गंदे पानी ने बिगाड़ी यमुना की हालत, छठ की पवित्र डुबकी पर छाया संकट

अमर उजाला नेटवर्क, दिल्ली Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Mon, 27 Oct 2025 06:12 AM IST
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सार

टेरी की हालिया रिपोर्ट ने साफ यमुना को लेकर चिंता बढ़ाई, यमुना के अधिकांश स्थानों पर फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा के साथ अन्य प्रदूषक तत्व मानक से ऊपर...

Detergent and dirty water spoil the condition of Yamuna in Delhi
file pic/demo - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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आस्था के महापर्व छठ पूजा पर जीवनदायिनी यमुना के कई घाटों पर पानी डुबकी लगाने पर संकट खड़ा हो गया है। इसकी वजह नदी की सतह पर सफेद झाग की मोटी परत का फैलना है। सरकार के दावों के बीच ऊर्जा और संसाधन संस्थान (टेरी) की हालिया रिपोर्ट ने साफ यमुना को लेकर चिंता बढ़ा दी है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि यमुना में झाग का जिम्मेदार डिटर्जेंट और नालों से आने वाला गंदा पानी है। ओखला बैराज के पास पानी में प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि श्रद्धालुओं को सोचने को विवश होना पड़ रहा है कि आखिर छठ की पवित्र डुबकी इस पानी में कैसे लगाई जाए?



टेरी ने दिल्ली सरकार के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट और कार्ययोजना तैयार की है, जिसमें झाग बनने के कारणों की पहचान की गई है और उसे रोकने के लिए कई ठोस सुझाव दिए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, यमुना में झाग तब बनता है जब नदी में मौजूद गंदा पानी, डिटर्जेंट में पाए जाने वाले रसायन (सर्फेक्टेंट) और पानी की तेजी या अशांति आपस में मिल जाते हैं।
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यह समस्या ओखला बैराज के पास अधिक देखने को मिलती है, जहां गेट खुलने पर पानी में कीचड़ हिलता है और झाग उठने लगता है। अध्ययन में बताया गया है कि यमुना में गिरने वाले बिना साफ नाले और फॉस्फेट वाले डिटर्जेंट झाग की सबसे बड़ी वजह हैं। इसे रोकने के लिए टेरी ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) को सुझाव दिया गया है कि वह पानी की जांच में अमोनिया और फॉस्फेट स्तर को भी शामिल करें। साथ ही, धोबी घाटों और कपड़े धोने वाले केंद्रों में छोटे-छोटे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाए जाएं।

टेरी का सुझाव... पर्यावरण-अनुकूल डिटर्जेंट को बढ़ावा दिया जाए, भारतीय मानक ब्यूरो के साथ मिलकर फॉस्फेट-मुक्त डिटर्जेंट को प्रोत्साहित किया जाए

टेरी ने रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि पर्यावरण-अनुकूल डिटर्जेंट को बढ़ावा दिया जाए और भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के साथ मिलकर फॉस्फेट-मुक्त, जिओलाइट या एंजाइम-आधारित डिटर्जेंट को प्रोत्साहित किया जाए। रिपोर्ट में झाग कम करने के लिए सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग (आईएफसीडी) से सिफारिश की है कि वह ओखला बैराज के आसपास एरेटर (पानी में हवा मिलाने वाली मशीनें) लगाए, जिससे पानी में ऑक्सीजन का स्तर बढ़े और झाग घटे। साथ ही, नदी की रीयल-टाइम मॉनिटरिंग के लिए बैराज पर वेब कैमरे लगाने का प्रस्ताव है, ताकि झाग बनने और जलकुंभी फैलने की स्थिति पर नजर रखी जा सके।

एसटीपी में नई तकनीक का हो उपयोग
टेरी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) को अपने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की क्षमता और गुणवत्ता सुधारनी होगी। अभी तक 12 एसटीपी ऐसे पाए गए हैं, जो मानकों पर खरे नहीं उतर रहे। टेरी ने सुझाव दिया है कि अब एसटीपी में नई तकनीकें, जैसे जैविक पोषक तत्व निष्कासन (बीएनआर) और उन्नत ऑक्सीकरण प्रक्रिया (एओपी) अपनाई जाएं। रिपोर्ट में दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को अवैध नालों के डिस्चार्ज पर रोक लगाने और ऑनलाइन जल गुणवत्ता निगरानी शुरू करने की सलाह दी गई है। साथ ही, दिल्ली राज्य औद्योगिक व अवसंरचना विकास निगम (डीएसआईआईडीसी) को औद्योगिक इकाइयों में प्रदूषण नियंत्रण सख्ती से लागू करने की सिफारिश की गई। डीडीए को झुग्गी-झोपड़ियों और अनधिकृत कॉलोनियों में छोटे या विकेंद्रीकृत एसटीपी लगाने का सुझाव दिया।

आईटीओ बैराज के पास फीकल कोलीफॉर्म रहा 1800
दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल समिति (डीपीसीसी) की अक्तूबर की रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश स्थानों पर मल-मूत्र से होने वाले प्रदूषण (फीकल कोलीफॉर्म) की मात्रा के साथ अन्य प्रदूषक तत्व मानक से ऊपर हैं। पानी में फीकल कोलीफॉर्म का स्तर प्रति 100 मिलीलीटर 500 सर्वाधिक संभावित संख्या (एमपीएन) होना चाहिए। इसका स्तर 2500 एमपीएन पहुंचने पर यह उपयोग लायक नहीं रह जाता है। सितंबर में आईटीओ बैराज के पास यह 1800 था। अक्तूबर में यह बढ़कर आठ हजार हो गया है। फेकल कोलीफार्म के साथ ही जैव रसायन आक्सीजन मांग (बीओडी) और घुलनशील आक्सीजन (डीओ) भी बढ़ा है। स्वच्छ पानी में बीओडी तीन मिलीग्राम (एमजी) प्रति लीटर या इससे कम और डीओ पांच एमजी प्रति लीटर या इससे अधिक होना चाहिए। सिर्फ पल्ला में बीओडी तीन है। ओखला में 30 एमजी प्रति लीटर है। इसी तरह से अधिकांश स्थानों पर डीओ मानक के अनुरूप नहीं है।

यमुना का पानी नहाने लायक नहीं
डीपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि पल्ला को छोड़कर, जहां से यह शहर में प्रवेश करती है, नदी का पानी पूरी दिल्ली में नहाने लायक नहीं है। 9 अक्तूबर को लिए गए नमूनों में प्रदूषण का उच्च स्तर पाया गया, मोलरबंद और साहिबाबाद जैसे प्रमुख नालों में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर 145 मिलीग्राम/लीटर और केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) का स्तर 416 मिलीग्राम/लीटर दर्ज किया गया, जो स्वीकार्य सीमा से पांच गुना अधिक है।

यह रिपोर्ट एक साल के गहन शोध के बाद तैयार की गई है और अगर सभी विभाग मिलकर काम करें तो यमुना से झाग और प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है।
-नूपुर बहादुर, निदेशक, टेरी

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