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बस बम विस्फोट : लचर जांच...टेप रिकॉर्डेड बयान गायब, गवाह मुकरे
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गाजियाबाद। 29 वर्ष पहले चलती बस में हुए बम विस्फोट में 18 लोगों की मौत मामले में उम्रकैद काट रहे मोहम्मद इलियास को पुलिस की लचर जांच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से बरी करा दिया।
अपने निर्णय में हाईकोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि पुलिस जिस टेप रिकॉर्डेड बयान पर पूरा मामला टिकाए थी, वही अदालत में पेश नहीं किया गया। ऐसे में कथित बयान की सत्यता और वैधता पर विश्वास करना संभव नहीं। इतना ही नहीं, अभियोजन ने जिनको मुख्य गवाह बनाया था, वो हाईकोर्ट में अपने बयान से मुकर गए।
मोदीनगर में 27 अप्रैल 1996 को रोडवेज बस में हुए बम धमाके में जिन साक्ष्यों के आधार पर गाजियाबाद के तत्कालीन अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश मंगल प्रसाद ने 15 अप्रैल 2013 को मोहम्मद इलियास को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मानने से ही इंकार कर दिया। निर्णय में हाईकोर्ट ने कहा कि इतनी भयावह घटना में दोषी को सजा आवश्यक है, लेकिन कानून बिना ठोस सबूत के किसी को दोषी नहीं ठहरा सकता। वह भारी मन से आरोपी को बरी करने का आदेश दे रहा है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि वर्ष 1996 में इस घटना के समय टाडा कानून लागू नहीं था। इसलिए पुलिस या वरिष्ठ अधिकारी के समक्ष की गई कोई भी स्वीकारोक्ति अदालत में साक्ष्य नहीं मानी जा सकती।
प्रत्यक्षदर्शियों ने किसी आरोपी को नहीं पहचाना : हाईकोर्ट ने कहा कि घटना के प्रत्यक्षदर्शी व यात्री धमाके की पुष्टि तो करते हैं, लेकिन कोई भी आरोपी की पहचान नहीं कर सका। अभियोजन ने जिनको मुख्य गवाह बनाया था, वो हाईकोर्ट में अपने बयान से मुकर गए।
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अपने निर्णय में हाईकोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि पुलिस जिस टेप रिकॉर्डेड बयान पर पूरा मामला टिकाए थी, वही अदालत में पेश नहीं किया गया। ऐसे में कथित बयान की सत्यता और वैधता पर विश्वास करना संभव नहीं। इतना ही नहीं, अभियोजन ने जिनको मुख्य गवाह बनाया था, वो हाईकोर्ट में अपने बयान से मुकर गए।
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मोदीनगर में 27 अप्रैल 1996 को रोडवेज बस में हुए बम धमाके में जिन साक्ष्यों के आधार पर गाजियाबाद के तत्कालीन अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश मंगल प्रसाद ने 15 अप्रैल 2013 को मोहम्मद इलियास को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मानने से ही इंकार कर दिया। निर्णय में हाईकोर्ट ने कहा कि इतनी भयावह घटना में दोषी को सजा आवश्यक है, लेकिन कानून बिना ठोस सबूत के किसी को दोषी नहीं ठहरा सकता। वह भारी मन से आरोपी को बरी करने का आदेश दे रहा है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि वर्ष 1996 में इस घटना के समय टाडा कानून लागू नहीं था। इसलिए पुलिस या वरिष्ठ अधिकारी के समक्ष की गई कोई भी स्वीकारोक्ति अदालत में साक्ष्य नहीं मानी जा सकती।
प्रत्यक्षदर्शियों ने किसी आरोपी को नहीं पहचाना : हाईकोर्ट ने कहा कि घटना के प्रत्यक्षदर्शी व यात्री धमाके की पुष्टि तो करते हैं, लेकिन कोई भी आरोपी की पहचान नहीं कर सका। अभियोजन ने जिनको मुख्य गवाह बनाया था, वो हाईकोर्ट में अपने बयान से मुकर गए।