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Breast Cancer: अब एआई से स्तन कैंसर की पहचान होगी आसान, आईआईटी दिल्ली के साथ मिलकर एम्स तैयार कर रहा उपकरण

अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली Published by: विजय पुंडीर Updated Tue, 06 Feb 2024 12:13 AM IST
सार

देश की महिलाओं में स्तन कैंसर की समस्या सबसे ज्यादा है। करीब 60 से 70 फीसदी मरीजों की पहचान काफी देरी से होती है। अंतिम चरण में अस्पताल पहुंचने के कारण इन मरीजों बचा पाना मुश्किल हो जाता है।

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Now detection of breast cancer will be easier with AI
प्रतीकात्मक तस्वीर - फोटो : istock
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विस्तार
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महिलाओं में होने वाले स्तन कैंसर की पहचान आसान बनाने के लिए एम्स आईआईटी, दिल्ली के साथ मिलकर उपकरण तैयार कर रहा है। इसकी मदद से स्तन कैंसर की जांच के लिए किए जाने वाले मैमोग्राफी का अध्ययन किया जाएगा। अभी अध्ययन में काफी समय लगता है। अब एआई आधारित उपकरण मैमोग्राफी का अध्ययन करेगा और इसकी गति कई गुना अधिक होगी।

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देश की महिलाओं में स्तन कैंसर की समस्या सबसे ज्यादा है। करीब 60 से 70 फीसदी मरीजों की पहचान काफी देरी से होती है। अंतिम चरण में अस्पताल पहुंचने के कारण इन मरीजों बचा पाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में यदि जांच की गति बढ़ती है तो महिलाओं को इस बीमारी की जटिलताओं से बचाया जा सकेगा।
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एम्स के डॉ. बीआर अंबेडकर संस्थान रोटरी कैंसर अस्पताल की प्रमुख डॉ. सुषमा भटनागर ने बताया कि जागरूकता के अभाव और सुविधाओं की कमी के कारण कैंसर की स्क्रीनिंग समय पर नहीं हो पाती। ऐसे में सुविधाओं के विस्तार में एआई काफी मददगार साबित हो सकता है। इसे देखते हुए आईआईटी दिल्ली के साथ मिलकर उपकरण विकसित करने के लिए शोध किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हर साल हजारों महिलाएं इसका शिकार बनती है। जबकि इसकी स्क्रीनिंग बहुत आसान है। महिलाएं अपने स्तर पर भी जांच कर सकती हैं। यदि स्तर में कोई गांठ दिखे तो सतर्क हो सकती है। इसके इलावा मैमोग्राफी करने के बाद स्थिति स्पष्ट हो जाती है।

घर-घर पहुंचेंगी स्वास्थ्य टीम
देश में कैंसर के मरीजों की पहचान के लिए स्वास्थ्य टीम घर-घर पहुंचेगी। यह प्रोग्राम पूरे देश में व्यापक स्तर पर चलेगा। इस अभियान के दौरान स्तन, सर्वाइकल और ओरल कैंसर की जांच चल रही है। इस बारे में प्रिवेंटिव मेडिसिन के सहायक प्रोफेसर डॉ. पल्लवी शुक्ला का कहना है कि देश भर में चल रहे स्क्रीनिंग कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आशा वर्कर को प्रशिक्षण दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग की टीम को भी प्रशिक्षण दिया गया है। वहीं मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डा. अजय गोगिया ने कहा कि पश्चिमी देशों के मुकाबले देश में कैंसर के मामले अधिक हैं। वहीं सुविधाओं के अभाव के कारण जल्द पकड़ नहीं हो पाती। 60 फीसदी मरीज अंतिम स्टेज पर सामने आते हैं जिनमें समस्याएं गंभीर हो जाती है।
बॉक्स

हर मरीज के लिए आईसीयू जरूरी नहीं
डॉ. भटनागर ने कहा कि हर मरीज को आईसीयू में भर्ती करने की जरूरत नहीं होती। डॉक्टर जरूरत के आधार पर आईसीयू में रखते हैं। एम्स में अंतिम स्टेज के कैंसर मरीजों को पैलिएटिव केयर के जरिये मरीज की देखभाल की जाती है ताकि अनावश्यक रूप से आईसीयू में भर्ती करने की जरूरत न पड़े। पिछले माह एम्स के राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (एनसीआई) में भर्ती हुए अंतिम स्टेज के 25 कैंसर मरीजों में से 20 मरीजों के लक्षणों को ठीक करके उनके घर भेजा गया। इन्हें एक संगठन की मदद से घर पर ही सुविधा दी। इस सुविधा के लिए 35 टीम बनाई गई है। जिसमें डॉक्टर सहित अन्य स्वास्थ्य कर्मी शामिल हैं।

चल रहा है लिक्विड बायोप्सी पर शोध
भविष्य में कैंसर की पहचान करने के लिए लिक्विड बायोप्सी पर शोध चल रहा है। इस जांच में खून का परीक्षण किया जाता है। जांच में खून में घूम रहे कैंसर कोशिकाओं या डीएनए का पता लगाता है। स्वस्थ कोशिकाओं की तरह कैंसर कोशिकाएं भी मर जाती हैं। यह प्रतिस्थापित हो जाती हैं। जब ये मृत कोशिकाएं टूट जाती हैं, तो वे ट्यूमर से रक्त प्रवाह में निकल जाती हैं। इनकी जांच से भविष्य में होने वाले कैंसर की पहले ही पहचान की जा सकेगी।

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