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Delhi: पानी की वन टाइम सेटलमेंट स्कीम पर प्रधान सचिव ने लगाई रोक, पैदा हुआ संवैधानिक संकट
अमर उजाला नेटवर्क, दिल्ली
Published by: श्याम जी.
Updated Thu, 15 Feb 2024 10:05 PM IST
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सार
दिल्ली सरकार के मुताबिक, शहरी विकास विभाग के प्रधान सचिव ने पानी की वन टाइम सेटलमेंट स्कीम को कैबिनेट में लाने से इंकार कर दिया है। मंत्रियों का आदेश न मानने से दिल्ली में संवैधानिक संकट पैदा हुआ।

सौरभ भारद्वाज
- फोटो : सोशल मीडिया
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विस्तार
दिल्ली सरकार द्वारा दिल्ली जल बोर्ड के पानी उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए लाई जा रही वन टाइम सेटलमेंट स्कीम को शहरी विकास विभाग के प्रधान सचिव ने रोक दी है। शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज ने बताया कि डीजेबी के दस लाख लोगों को पानी बिल में राहत देने के लिए वन टाइम सेटलमेंट स्कीम लाई जा रही है। शहरी विकास विभाग के प्रधान सचिव को इसका प्रस्ताव कैबिनेट में रखने का निर्देश दिया गया है, लेकिन उन्होंने प्रस्ताव रखने से साफ इन्कार कर दिया है।

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उनको यह भी बताया कि वित्त मंत्री के कमेंट्स आ गए हैं, लेकिन उन्होंने वित्त मंत्री के कमेंट्स भी मानने से इन्कार कर दिया और कहा कि वित्त मंत्रालय का मतलब वित्त विभाग के प्रमुख सचिव हैं। वहीं, वित्त मंत्री आतिशी ने कहा कि सभी नियम-कानून में किसी पॉलिसी पर निर्णय लेने का अधिकार कैबिनेट के पास है। अगर कैबिनेट में प्रस्ताव नहीं आएगा तो पॉलिसी कैसे बनेगी। एलजी साहब को इस संवैधानिक संकट से अवगत कराया गया है और उन्होंने कहा है कि कैबिनेट में प्रस्ताव आना चाहिए। उनके सुझाव पर हमने चीफ सेक्रेटरी को कैबिनेट नोट की फाइल भेज दी है।
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10.5 लाख से से ज्यादा उपभोक्ताओं का बाकी है पानी का बिल
दिल्ली के शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कि दिल्ली जल बोर्ड के 27 लाख उपभोक्ताओं में से करीब 10.5 लाख से ज्यादा उपभोक्ताओं का पानी का बिल बकाया है। इसका बड़ा कारण यह है कि ज्यादातर उपभोक्ताओं का मानना है कि उनका बिल पानी के खपत से ज्यादा आया है। जिस रीडिंग के आधार पर उपभोक्ताओं के पानी का बिल आया है, उन रीडिंग्स में गड़बड़ी है। मीटर रीडर ने उन उपभोक्ताओं के मीटर की रीडिंग नहीं ली है। कोरोना काल में यह समस्या बहुत ज्यादा बढ़ी थी। क्योंकि कोरोना के समय में मीटर रीडर्स लोगों के घर नहीं जाते थे और अपने ऑफिस से ही एक औसत दर के हिसाब के लोगों के पानी के बिल बनाकर भेजते थे।
इसमें उपभोक्ताओं का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी था, जो कोरोना के समय अपने घरों में रहता भी नहीं था, उसने पानी का उपयोग नहीं किया। फिर भी उनके पानी के बिल बनाकर भेजे गए। अगर कोई पानी का इस्तेमाल नहीं किया है और उसे बिल दे दिया जाए तो फिर वो बिल नहीं जमा करना चाहता है। आमतौर पर ऐसे उपभोक्ता सोचते हैं कि पहले इस मामले को हल कराया जाए और सही बिल आने पर जमा किया जाए। दिल्ली जल बोर्ड में लाखों लोगों ने इस तरह की कई शिकायते कीं, लेकिन दिल्ली जल बोर्ड के वित्त विभाग ने उनकी समस्याओं का समाधान नहीं किया। शिकायतों का समाधान इतना कम हुआ कि यह समस्या बढ़ते-बढ़ते करीब 10.5 लाख लोगों तक पहुंच गई।
वन टाइम सेटलमेंट स्कीम
शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज ने आगे कहा कि उपभोक्ताओं की इस समस्या का हल निकालते हुए दिल्ली जल बोर्ड एक 'वन टाइम सेटलमेंट स्कीम' लेकर आया था। दिल्ली जल बोर्ड की मीटिंग में पॉलिसी को मंजूरी मिल गई थी और इसे कैबिनेट में रखने की तैयारी है। चूंकि शहरी विकास विभाग के अंतर्गत दिल्ली जल बोर्ड का प्रशासनिक विभाग आता है। शहरी विकास मंत्री होने के नाते मैंने शहरी विकास विभाग के ईसीएस को इस पॉलिसी के प्रस्ताव को कैबिनेट के सामने रखने का लिखित निर्देश दिया, लेकिन बहुत हैरानी की बात है कि शहरी विकास विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी (ईसीएस) ने यह प्रस्ताव कैबिनेट में रखने से साफ मना कर दिया है।
उपराज्यपाल से की चर्चा
शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज ने बताया कि आज विधानसभा में एलजी के अभिभाषण के बाद हमने उनसे इस विषय पर चर्चा की। इस दौरान सीएम अरविंद केजरीवाल और वित्त मंत्री आतिशी भी मौजूद रहीं। इस बातचीत में यह तय हुआ कि यह कैबिनेट नोट दिल्ली के मुख्य सचिव को भेज दिया जाए और कहा जाए कि वो जल्द से जल्द इस योजना के प्रस्ताव को कैबिनेट के सामने रखें। अगले हफ्ते की शुरुआत में इसे कैबिनेट के सामने लाया जाए। यह कैबिनेट नोट मुख्य सचिव को भेज दिया गया है।
कैबिनेट करेगी फैसला
वहीं, वित्त मंत्री आतिशी ने बताया कि चार दिन पहले शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज ने शहरी विकास विभाग को 'वन टाइम सेटलमेंट स्कीम' के प्रस्ताव को कैबिनेट के सामने रखने के निर्देश दिए थे। संविधान, जीएनसीटीडी एक्ट और ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल के अनुसार, किसी भी पॉलिसी पर फैसला लेने का अधिकार सरकार की कैबिनेट के पास है। दिल्ली मे 'वन टाइम सेटलमेंट स्कीम' का फैसला भी कैबिनेट को ही लेना है, लेकिन दिल्ली के शहरी विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव इस प्रस्ताव को कैबिनेट के सामने लाने से मना कर रहे हैं। अगर एक अधिकारी कैबिनेट के सामने प्रस्ताव लाने से मना कर दे, तो कैबिनेट निर्णय कैसे लेगी। अगर कैबिनेट के सामने प्रस्ताव नहीं आएंगे तो दिल्ली सरकार की पॉलिसी कैसे बनेगी? किसी भी अधिकारी या सचिव का कैबिनेट के सामने प्रस्ताव लाने से मना करना एक संवैधानिक संकट है, जो आज दिल्ली में हो रहा है।