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दिल्ली के प्रदूषण का छिपा खतरा: सेकेंडरी अमोनियम सल्फेट बनाता है हवा घातक, CREA के अध्ययन में खुलासा
अमर उजाला नेटवर्क, दिल्ली
Published by: दुष्यंत शर्मा
Updated Thu, 25 Dec 2025 02:21 AM IST
सार
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के अध्ययन में पाया गया है कि दिल्ली में पीएम2.5 का लगभग 42 प्रतिशत सेकेंडरी पार्टिकुलेट मैटर यानी रासायनिक रूप से बने कणों से आता है। इसमें सबसे ज्यादा योगदान अमोनियम सल्फेट का है, जो सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) से बनता है।
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Delhi Pollution
- फोटो : ANI
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विस्तार
दिल्ली और देश के अन्य बड़े शहरों में हवा की गुणवत्ता लगातार चिंता का विषय बनी हुई है। एक नए विश्लेषण के अनुसार, देश में पीएम2.5 प्रदूषण का बड़ा हिस्सा सीधे उत्सर्जित नहीं होता, बल्कि वातावरण में मौजूद प्रीकर्सर गैसों से रासायनिक रूप से बनता है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के अध्ययन में पाया गया है कि दिल्ली में पीएम2.5 का लगभग 42 प्रतिशत सेकेंडरी पार्टिकुलेट मैटर यानी रासायनिक रूप से बने कणों से आता है। इसमें सबसे ज्यादा योगदान अमोनियम सल्फेट का है, जो सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) से बनता है।
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विश्लेषण के अनुसार, देश एसओ2 उत्सर्जन में विश्व में सबसे आगे है, जिसमें कोयला आधारित बिजली संयंत्र राष्ट्रीय एसओ2 उत्सर्जन का लगभग 60 प्रतिशत योगदान देते हैं। सीआरईए के मुताबिक, दिल्ली में प्रदूषण के सबसे गंभीर एपिसोड मानसून के बाद और सर्दियों में होते हैं। इस दौरान पीएम2.5 में अमोनियम सल्फेट का योगदान क्रमशः 49 प्रतिशत और 41 प्रतिशत होता है, जबकि गर्मियों और मानसून में यह 21 प्रतिशत तक सीमित रहता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि दिल्ली के प्रदूषण के सबसे बुरे समय में स्थानीय स्रोतों के बजाय बड़े क्षेत्रीय एसओ2 उत्सर्जन और सेकेंडरी फॉर्मेशन का प्रमुख हाथ होता है।
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मौजूदा वायु गुणवत्ता रणनीतियों में बड़ी कमी
सीआरईए के विश्लेषण में बताया गया है कि मौजूदा वायु गुणवत्ता रणनीतियों में बड़ी कमी है। वर्तमान नीतियों में आमतौर पर पीएम10, सड़क की धूल और अन्य दिखाई देने वाले प्रदूषण स्रोतों पर ध्यान दिया जाता है, जबकि एसो2, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और अमोनिया जैसी प्रीकर्सर गैसों की भूमिका को नजरअंदाज किया जाता है। इसके चलते हवा की गुणवत्ता सुधारने की कोशिशें अक्सर सीमित और अल्पकालिक रहती हैं। विश्लेषण में यह भी पाया गया कि दिल्ली के अलावा देश के अन्य राज्यों में भी सेकेंडरी अमोनियम सल्फेट का योगदान महत्वपूर्ण है। छत्तीसगढ़ और ओडिशा में सबसे अधिक योगदान देखा गया है। राष्ट्रीय स्तर पर यह दिखाता है कि सेकेंडरी सल्फेट निर्माण एक व्यापक समस्या है, जो केवल कुछ हॉटस्पॉट तक सीमित नहीं है।
अनिवार्य रूप से लागू हो एफजीडी सिस्टम
सीआरईए ने सिफारिश की है कि सभी कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांटों में फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) सिस्टम को अनिवार्य रूप से लागू किया जाए। मौजूदा समय में लगभग 78 प्रतिशत प्लांटों को एफजीडी से छूट मिली हुई है, जिससे एसओ2 नियंत्रण कमजोर बना हुआ है।
विशेषज्ञों का कहना है कि एसओ2 उत्सर्जन और सेकेंडरी पार्टिकुलेट मैटर पर नियंत्रण के बिना राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के लक्ष्य पूरे करना मुश्किल होगा। सीआरईए के विश्लेषक मनोज कुमार ने कहा कि हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए यह जरूरी है कि केवल पीएम2.5 सांद्रता को ही लक्ष्य न बनाया जाए, बल्कि यह भी देखा जाए कि प्रदूषण किस स्रोत से बन रहा है। सेकेंडरी अमोनियम सल्फेट, जो दिल्ली में पीएम2.5 का लगभग एक-तिहाई हिस्सा है, मुख्य रूप से कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से आने वाले एसओ2 के कारण बनता है। प्रीकर्सर गैसों का नियंत्रण और निगरानी ही हवा की गुणवत्ता सुधारने का दीर्घकालिक और प्रभावी तरीका है।