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डरे नहीं, पता करें: मुंह का कैंसर है या नहीं, मोबाइल के एक क्लिक पर चलेगा पता; एम्स और IISC ने मिलकर बनाया एप
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: विकास कुमार
Updated Tue, 13 May 2025 07:28 PM IST
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सार

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देश में सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर से ओरल कैंसर
- फोटो :
Freepik
विस्तार
मुंह की फोटो खिंचवाने के कुछ पल बाद ही पता चल जाएगा कि मुंह में कैंसर है या नहीं। यह प्रक्रिया इतनी आसान है कि आशा वर्कर भी आसानी से इसे कर सकती हैं। इस तकनीक के लिए एम्स ने भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बैंगलोर के साथ मिलकर आरोग्य आरोहण एप का वर्जन-2 विकसित किया।
ओरल कैंसर देश में सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर
विशेषज्ञों का कहना है कि देश में ओरल कैंसर (मुंह का कैंसर) के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हर साल लाखों नए मामले सामने आते हैं। यह देश में सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है। इनकी पहचान देरी से होने के कारण अधिकतर मरीज एडवांस स्टेज में अस्पताल पहुंचते हैं, जिस कारण उनका इलाज जटिल हो जाता है। कई मामलों में मरीज की मौत तक हो जाती है। ऐसे में मरीजों की जल्द पहचान करने के लिए एम्स ने इस तकनीक को विकसित किया।
विशेषज्ञों का कहना है कि देश में ओरल कैंसर (मुंह का कैंसर) के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हर साल लाखों नए मामले सामने आते हैं। यह देश में सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है। इनकी पहचान देरी से होने के कारण अधिकतर मरीज एडवांस स्टेज में अस्पताल पहुंचते हैं, जिस कारण उनका इलाज जटिल हो जाता है। कई मामलों में मरीज की मौत तक हो जाती है। ऐसे में मरीजों की जल्द पहचान करने के लिए एम्स ने इस तकनीक को विकसित किया।
फोटो लेकर बता देता है कैंसर है या नहीं
एम्स के डेंटल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर की अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. दीपिका मिश्रा ने बताया कि मुंह के कैंसर की जल्द पहचान के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) आधारित मोबाइल एप को विकसित किया गया है। यह मरीज की मुंह की फोटो लेते ही स्वास्थ्य कर्मचारी को सूचना दे देता है कैंसर है या नहीं। यदि हैं तो यह आंकलन लगा देता है कि मरीज को आगे क्या करना चाहिए। स्वास्थ्य कर्मी उस अंदाजे की मदद से मरीज को आगे जांच करवाने की सलाह दे सकता है। इससे मरीज की पहचान शुरुआती दौर में ही की जा सकेगी।
एम्स के डेंटल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर की अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. दीपिका मिश्रा ने बताया कि मुंह के कैंसर की जल्द पहचान के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) आधारित मोबाइल एप को विकसित किया गया है। यह मरीज की मुंह की फोटो लेते ही स्वास्थ्य कर्मचारी को सूचना दे देता है कैंसर है या नहीं। यदि हैं तो यह आंकलन लगा देता है कि मरीज को आगे क्या करना चाहिए। स्वास्थ्य कर्मी उस अंदाजे की मदद से मरीज को आगे जांच करवाने की सलाह दे सकता है। इससे मरीज की पहचान शुरुआती दौर में ही की जा सकेगी।
तीन राज्यों में 19 हजार पर किया गया परीक्षण
इस तकनीक का परीक्षण राजस्थान के भिवाड़ी, उत्तर प्रदेश के मथुरा और हरियाणा के झज्जर जिले के करीब 20 गांव में रहने वाले 19 हजार लोगों पर किया गया। परीक्षण के दौरान एक मरीज के करीब 10 फोटो लिए गए। परीक्षण के दौरान 90 फीसदी परिणाम सटीक पाए गए। इसकी मदद से मरीज को मौके पर ही स्थिति का पता चल जाता है।
इस तकनीक का परीक्षण राजस्थान के भिवाड़ी, उत्तर प्रदेश के मथुरा और हरियाणा के झज्जर जिले के करीब 20 गांव में रहने वाले 19 हजार लोगों पर किया गया। परीक्षण के दौरान एक मरीज के करीब 10 फोटो लिए गए। परीक्षण के दौरान 90 फीसदी परिणाम सटीक पाए गए। इसकी मदद से मरीज को मौके पर ही स्थिति का पता चल जाता है।
महाकुंभ में 1200 की हुई थी जांच
परीक्षण के दौरान इस एप की मदद से करीब 1200 श्रद्धालुओं की जांच की गई। जांच के दौरान करीब 112 मरीजों में प्री कैंसर के लक्षण पाए गए। जबकि चार मरीज में कैंसर पाया गया। जांच के बाद सभी को आगे की जांच के लिए भेज दिया गया है।
परीक्षण के दौरान इस एप की मदद से करीब 1200 श्रद्धालुओं की जांच की गई। जांच के दौरान करीब 112 मरीजों में प्री कैंसर के लक्षण पाए गए। जबकि चार मरीज में कैंसर पाया गया। जांच के बाद सभी को आगे की जांच के लिए भेज दिया गया है।
गांव स्तर पर हो सकेगी जांच
इस एप को चलाने की जानकारी आशा वर्कर तक को दी जा रही है। आशा वर्कर इस एप की मदद से बड़े स्तर पर गांव-गांव जाकर भी ओरल कैंसर की पहचान कर सकती हैं। देश में बड़े स्तर पर तंबाकू, गुटका, खैनी सहित दूसरे तंबाकू उत्पाद का सेवन करने वाले गांव में रहते हैं। इनमें लक्षण होने के बाद भी अस्पताल में नहीं आते। स्थिति गंभीर होने पर जब यह अस्पताल पहुंचते हैं तो मरीज का इलाज जटिल हो जाता है। यहीं कारण है कि हर साल हजारों मरीज इस कैंसर के कारण दम तोड़ देते हैं।
इस एप को चलाने की जानकारी आशा वर्कर तक को दी जा रही है। आशा वर्कर इस एप की मदद से बड़े स्तर पर गांव-गांव जाकर भी ओरल कैंसर की पहचान कर सकती हैं। देश में बड़े स्तर पर तंबाकू, गुटका, खैनी सहित दूसरे तंबाकू उत्पाद का सेवन करने वाले गांव में रहते हैं। इनमें लक्षण होने के बाद भी अस्पताल में नहीं आते। स्थिति गंभीर होने पर जब यह अस्पताल पहुंचते हैं तो मरीज का इलाज जटिल हो जाता है। यहीं कारण है कि हर साल हजारों मरीज इस कैंसर के कारण दम तोड़ देते हैं।
वर्जन-1 से है एडवांस
आरोग्य आरोहण एप का वर्जन-2 वर्जन-1 के मुकाबले एडवांस है। वर्जन-1 में फोटो खींचने के बाद तस्वीर एम्स में आती थी। यहां बैठे विशेषज्ञ उसे देखकर कैंसर का पता लगाते हैं। इस प्रक्रिया में करीब एक दिन का समय लग जाता है। जबकि वर्जन-2 एआई आधारित हैं। यह स्वयं ही फोटो की जांच कर स्थिति का अंदाजा लगा देता है। अभी तक के परिणाम काफी बेहतर पाए गए हैं।
आरोग्य आरोहण एप का वर्जन-2 वर्जन-1 के मुकाबले एडवांस है। वर्जन-1 में फोटो खींचने के बाद तस्वीर एम्स में आती थी। यहां बैठे विशेषज्ञ उसे देखकर कैंसर का पता लगाते हैं। इस प्रक्रिया में करीब एक दिन का समय लग जाता है। जबकि वर्जन-2 एआई आधारित हैं। यह स्वयं ही फोटो की जांच कर स्थिति का अंदाजा लगा देता है। अभी तक के परिणाम काफी बेहतर पाए गए हैं।