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दिल्ली दंगा : हाईकोर्ट ने दो आरोपियों को दी जमानत, पुलिस की जांच पर जताया संदेह

अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली Published by: शाहरुख खान Updated Mon, 03 May 2021 08:09 AM IST
सार

हाईकोर्ट ने दिल्ली दंगो के मामले में दो मामलों में पुलिस की जांच पर संदेह जताते हुए दो आरोपियों को जमानत पर रिहा करने का निर्देश जारी कर दिया। न्यायमूर्ति सुरेश कैत ने दयालपुरा थाने में दर्ज मामलों में आरोपियों को जमानत प्रदान की है। 

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Delhi riot High court grants bail to two accused
प्रतीकात्मक तस्वीर - फोटो : सोशल मीडिया
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हाईकोर्ट ने दिल्ली दंगो के मामले में दो मामलों में पुलिस की जांच पर संदेह जताते हुए दो आरोपियों को जमानत पर रिहा करने का निर्देश जारी कर दिया। न्यायमूर्ति सुरेश कैत ने दयालपुरा थाने में दर्ज मामलों में आरोपियों को जमानत प्रदान की है। पहले मामले में आरोपी गुलफाम उर्फ वीआईपी को जमानत प्रदान की है। 
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अदालत ने अभियोजन पक्ष के उस तर्क को खारिज कर दिया कि आरोपी ने अपनी लाईसेंसी पिस्टल से गोलीबारी की थी। अदालत ने कहा पुलिस ने आरोपी को खुरेजी खास थाना मामले में भी इसी पिस्टल से गोली चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया था जबकि दयालपुर थाना मामले में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि इसी पिस्टल से गोली चलाई गई। यह भी स्पष्ट नहीं है यह पिस्टल का दोनों मामलों में प्रयोग किया गया।
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अदालत ने उसे 20 हजार रुपये के निजी मुचलके व एक अन्य जमानत राशि के आधार पर रिहा करने का निर्देश दिया है। इससे पूर्व बचाव पक्ष ने तर्क रखा कि उनके मुवक्किल को फर्जी मामले में फंसाया गया है। प्राथमिकी में उनके मुवक्किल का नाम नहीं है, किसी ज्ञी सीसीटीवी फुटेव में वह न दिखाई दे रहा है न ही उनके मोबाईल फोन की लोकेशन इलाके में है। न ही कोई चश्मदीद गवाह है न ही किसी घायल के बयान।

दूसरे मामले में अदालत ने आरोपी तनवीर मलिक को जमानत प्रदान की है। अदालत ने अभियोजन पक्ष के उस तर्क को खारिज कर दिया कि आरोपी की जमानत हाईकोर्ट दो बार व दो बार ट्रायल कोर्ट खारिज कर चुकी है। अदालत ने कहा पहले जमानत खारिज कर गई थी उस समय जांच चल रही थी और अब आरोपत्र दायर हो चुका है।

अदालत ने कहा कि दयालपुर के इस मामले में दो पुलिसकर्मियों के बयानों के आधार पर मामला दर्ज किया गया है और अदालत पहले भी कई मामलों में इन पुलिसकर्मियों के बयानों पर संदेह जता चुकी है। दोनों ने घटना के चश्मदीद होने के बावजूद न तो थाने में डीडी एंट्री की न ही पीसीआर कॉल। काफी दिनों बाद मामला दर्ज करवाना संदेहजनक है जबकि वे कानून की जानकारी रखते थे।

इससे पूर्व बचाव पक्ष ने भी तर्क रखा कि पुलिसकर्मियों ने कहा कि दो फरवरी 20 को एक हजार से 12सौ की भीड़ थी लेकिन इतनी भीड़ में पुलिसकर्मियों ने उनके मुवक्किलों को कैसे पहचान लिया। घायल ने 20 मई को उनके मुवक्किलों की पहचान की जबकि उनके मुवक्किल एक अन्य मामले में 12 मार्च को ही सर्मपण कर चुके थे और उनकी फोटो पुलिस के पास थी। वहीं सरकारी पक्ष ने जमानत पर आपत्ति करते हुए कहा कि दोनों पर गंभीर आरोप है।
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