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Delhi: गैस चैंबर में तब्दील हुई राजधानी, बजट होते हुए भी वायु प्रदूषण नियंत्रण पर एमसीडी खर्च कर रही नाममात्र

विनोद डबास, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Digvijay Singh Updated Tue, 16 Dec 2025 06:24 AM IST
सार

यह तब है जब एमसीडी ने इसी मद में 40 करोड़ का बजट प्रावधान किया था। इतना ही नहीं, बजट संशोधन के दौरान इस राशि में पांच करोड़ रुपये की और बढ़ोतरी की गई थी। यानी कागजों में 45 करोड़ रुपये उपलब्ध थे, लेकिन जमीनी स्तर पर खर्च सात करोड़ से भी कम रहा।
 

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The capital city has turned into a gas chamber yet the MCD is spending only a nominal amount on air pollution
दिल्ली-एनसीआर में वाय प्रदूषण चिंताजनक - फोटो : एएनआई/अमर उजाला
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विस्तार
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राजधानी में वायु प्रदूषण बीते कई वर्षों से गंभीर रूप ले चुका है। हालात यह है कि हर साल सर्दियों के महीनों में दिल्ली गैस चैंबर में तब्दील हो जाती है और कई-कई माह तक हवा अत्यधिक और गंभीर श्रेणी में बनी रहती है। इसका सीधा असर आम लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। बच्चों, बुजुर्गों और दमा व सांस की बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए सांस लेना तक दूभर हो जाता है। 

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इसके बावजूद वायु प्रदूषण नियंत्रण की जिम्मेदारी निभाने वाली एमसीडी इस दिशा में न तो गंभीर दिख रही है और न ही उपलब्ध बजट का समुचित उपयोग कर रही है। वर्ष 2023-24 में एमसीडी ने वायु प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर केवल 7.11 करोड़ रुपये खर्च किए। इसके बाद वर्ष 2024-25 में यह राशि और घटकर 6.88 करोड़ रुपये रह गई।
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यह तब है जब एमसीडी ने इसी मद में 40 करोड़ का बजट प्रावधान किया था। इतना ही नहीं, बजट संशोधन के दौरान इस राशि में पांच करोड़ रुपये की और बढ़ोतरी की गई थी। यानी कागजों में 45 करोड़ रुपये उपलब्ध थे, लेकिन जमीनी स्तर पर खर्च सात करोड़ से भी कम रहा।

दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण नियंत्रण के मुद्दे पर कई बार नाराजगी जता चुकी है। मुख्यमंत्री और संबंधित मंत्री एमसीडी को वायु प्रदूषण की रोकथाम में नाकामी के लिए फटकार लगा चुके हैं। इसके बावजूद एमसीडी की कार्यशैली में कोई बदलाव नजर नहीं आता। प्रदूषण नियंत्रण के लिए मशीनों की खरीद, सड़कों पर धूल नियंत्रण, निर्माण स्थलों की निगरानी, कूड़ा जलाने पर सख्ती और हरित उपायों जैसे कदमों पर अपेक्षित खर्च नहीं किया गया।

चिंता की बात है कि वर्तमान वर्ष और आगामी वर्ष के लिए एमसीडी ने वायु प्रदूषण नियंत्रण मद में पांच-पांच करोड़ की बढ़ोतरी की है। इस तरह उसने राशि बढ़ाते हुए 50-50 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। यानी कागजों में राशि और बढ़ा दी गई है, लेकिन पिछले दो वर्षों के खर्च का ट्रेंड देखें तो पता चलता है कि आने वाले समय में भी इस राशि के उपयोग की संभावना कम ही है।

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