सीट का इतिहासः यह विधानसभा पहले तीर्थ नगरी सोरों के नाम से पहचानी जाती थी। यहां पर सबसे पहला चुनाव 1967 में हुआ। पहला चुनाव जनसंघ प्रत्याशी ने जीता। यहां से बीकेडी, जनता पार्टी, कांग्रेस, भाजपा, आरकेपी, बसपा प्रत्याशी चुनाव जीते। 2012 में परिसीमन के बाद सोरों कासगंज का हिस्सा बन गया। शेष क्षेत्र को अमांपुर विधानसभा के नाम से पहचान मिली। इस सीट पर सपा ने एक भी चुनाव नहीं जीता। 2017 के चुनाव में भाजपा ने यह सीट जीती थी, लेकिन पिछले दिनों विधायक का निधान होने से सीट रिक्त है। यह विधानसभा लोधी एवं ठाकुर बाहुल्य है। इसके अलावा इस विधानसभा में ब्राह्मण, शाक्य, मौर्य,वैश्य, दलित, यादव, सहित अन्य जाति के मतदाता निवास करते हैँ। इस सीट से एक बार वैश्य, दो बार जाटव, दो बार ब्राह्मण, दो बार शाक्य तथा सबसे अधिक आठ बार लोधी प्रत्याशी ने चुनाव जीता है।
| जाति | मतदाता |
| लोधी | 60,000 हजार |
| अनुसूचित जाति | 40,000 हजार |
| ठाकुर | 40,000 हजार |
| मुस्लिम | 38,000 हजार |
| शाक्य | 30,000 हजार |
| अन्य | 27,000 हजार |
| ब्राह्मण | 25,000 हजार |
| बघेल | 20,000 हजार |
| वैश्य | 15,000 हजार |
| यादव | 7,000 हजार |
इसकी तीर्थ नगरी सोरों के नाम से पहचान है।
अमांपुर विधानसभा क्षेत्र सहावर तहसील से जुड़ा है। इस इलाके में बुनियादी सुविधाएं अभी तक नहीं हैं न ही परिवहन के साधन हैं और न ही शिक्षा और स्वास्थ्य के। बेरोजगारों को क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध नहीं है। रोजगार के लिए लोग पलायन करते हैं।
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