सीट का इतिहास
बागपत जिला रालोद का गढ़ रहा है। नवाब कोकब हमीद लंबे समय बागपत विधानसभा सीट पर काबिज रहे। वह 1985 में कांग्रेस के टिकट पर जीते थे। लेकिन 1989 में जनता दल के प्रत्याशी साहब सिंह से हार गए। 1991 में महेंद्र जैन रालोद के टिकट से जीते। इसके बाद 1993 से 2007 तक रालोद प्रत्याशी के रूप में कोकब हमीद ने लगातार चार चुनाव जीते। 2012 में रालोद को हराकर बसपा की हेमलता चौधरी विधायक बनी। इसके बाद 2017 में रालोद छोड़कर भाजपा में शामिल हुए योगश धामा ने कोकब हमीद के पुत्र और बसपा प्रत्याशी अहमद हमीद को हराया।
| जाति | मतदाता |
| जाट | 80 हजार |
| मुस्लिम | 60 हजार |
| दलित | 50 हजार |
| गुर्जर | 40 हजार |
| यादव | 40 हजार |
| ब्राह्मण | 10 हजार |
| वैश्य | 10 हजार |
| अन्य | 10 हजार |
किसानों की समस्याओं का निदान न होना, मूलभूत सुविधाअों का अभाव।
बागपत महाभारतकालीन नगर है। यहां बरनावा में लाक्षागृह है, जहां दुर्योधन ने पांडवों को जिंदा जलाने का प्रयास किया था।
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