सीट का इतिहास
सीट पर ज्यादा समय तक किसी एक दल या व्यक्ति का दबदबा नहीं रहा। यहां बदलाव की बयार बहती रही। 1952 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उमराव दत्त वेद विधानसभा पहुंचे। 1957 में आचार्य दीपांकर भी निर्दलीय के प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की। 1962 में कांग्रेस के प्रत्याशी मूलचंद शास्त्री और 1967 में सीपीआई के टिकट पर आचार्य दीपांकर ने जीत दर्ज की। 1979 में कांग्रेस के विक्रम सिंह विधायक बने। परिसीमन बदला तो बड़ौत सीट खत्म कर बरनावा बन गई। 2008 में एक बार फिर परिसीमन बदलने के बाद 2012 में चुनाव हुए तो बसपा के लोकेश दीक्षित जीते। 2017 में रालोद छोड़कर भाजपा में आए केपी मलिक ने रालोद के साहब सिंह को करीब 26 हजार वोटों से हराया।
| जाति | मतदाता |
| जाट | एक लाख 15 हजार |
| मुस्लिम | 60 हजार |
| जैन | 50 हजार |
| अन्य | 50 हजार |
किसानों और विकास नहीं होना।
रिम-धुरा उद्योग, आकर्षक जैन मंदिर, जाट कॉलेज।
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