सीट का इतिहास
सीट का प्रदेश की राजनीति में विशेष स्थान रहा है। किसान नेता चौ. चरण सिंह ने इस सीट को पश्चिमी यूपी में अपनी दूसरी कर्मस्थली बनाया। 1969 गायत्री देवी, 1974, 1977 में जाट बिरादरी के दिग्गज नेता चौ.राजेंद्र सिंह जीते। 1980 में कांग्रेस के पूरन सिंह, 1985 में लोकदल के राजेंद्र सिंह, 1989 में कांग्रेस के बिजेंद्र सिंह, 1991 में चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती जीतीं। इस सीट पर 1993 में कांग्रेस, 1996 में भाजपा व 2002 में फिर कांग्रेस जीती। मगर 2007 में फिर अजित सिंह ने इस सीट पर अपने पिता, मां व बहन के रिश्तों से जुड़कर वापसी की और 2012 तक लगातार दो बार रालोद को जिताया। 2017 में रालोद को हार का सामना करना पड़ा। 2019 में हुए उपचुनाव में भी यहां भाजपा को जीत मिली।
| जाति | मतदाता |
| जाट | एक लाख |
| ब्राह्मण | 80 हजार |
| दलित | 50 हजार |
| बघेल | 30 हजार |
| मुस्लिम | 30 हजार |
| वैश्य | 20 हजार |
| ठाकुर | 10 हजार |
| अन्य | 50 हजार |
बुनियादी सुविधाओं का अभाव, आलू प्रोसेसिंग यूनिट की मांग, गोवंश द्वारा फसलों का नुकसान, ट्रांसपोर्ट नगर, राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय का निर्माण न होना।
मराठा किला, जैन मंदिर।
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