सीट का इतिहास: इस सीट से कांग्रेस, जनसंघ जनता पार्टी, जनतादल, भाजपा, सपा, बसपा के प्रत्याशी जीत हांसिल कर चुके हैँ। वर्तमान में यह सीट भाजपा के कब्जे में है। प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्यान सिंह भी यहां से 1993 में चुनाव जीत चुके हैं। इस सीट से तीन बार वैश्य प्रत्याशी चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन 1967 में परिसीमन में विधानसभा के जातिगत समीकरण बदल गए। लोधी बहुल्य सीट होने से सभी दल लोधी प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारते हैं, इस जाति के प्रत्याशी की जीत होती है। एक बार बसपा के सहारे मुस्लिम प्रत्याशी ने यहां से जीत हांसिल की है। क्षेत्र में यादव, ब्राह्मण, वैश्य, ठाकुर, कुशवाह, मौर्य, कायस्थ, मुस्लिम, जाटव सहित अन्य जातियां भी निवास करती हैं।
| जाति | मतदाता |
| लोधी | 70,000 हजार |
| अन्य | 51,000 हजार |
| अनुसूचित जाति | 47,000 हजार |
| यादव | 40,000 हजार |
| मुस्लिम | 35,000 हजार |
| वैश्य | 30,000 हजार |
| बघेल | 22,000 हजार |
| ठाकुर | 20,000 हजार |
| शाक्य | 20,000 हजार |
| ब्राह्मण | 17,000 हजार |
तीर्थ नगरी सोरों यहां का प्रमुख तीर्थ स्थान हैं। बड़ी संख्या में राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात आदि राज्यों सहित अन्य क्षेत्रों से तीर्थ यात्री प्रतिदिन ही यहां आते हैं। विशेष स्नान पवों पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैँ।
कासगंज विधानसभा क्षेत्र का मुद्दा उद्योगों की कमी का है। इलाके में कोई भी उद्योग बड़ा नहीं है, इस कारण अच्छे रोजगार के अवसर लोगों को प्राप्त नहीं हो सकें। तीर्थस्थल सोरों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना धरातल पर नहीं उतर पाई हैं। बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं भी नहीं हैं। किसी भी आपातस्थिति में लोगों को इलाज नहीं मिल पाता।
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