सीट का इतिहास : मशहूर शायर और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलाना हसरत मोहानी के मोहान (पूर्व में हसनगंज) के मतदाताओं ने अबतक तवज्जो नहीं दी। आजादी के बाद से अब तक हुए 17 विधानसभा चुनावों में सपा का खाता नहीं खुला है। यहां के मतदाताओं ने कांग्रेस, भाजपा, बसपा, कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा जनता पार्टी के प्रत्याशियों को मौका दिया। सबसे पहले सन 1951 में इंडियन नेशनल कांग्रेस ने जीत दर्ज की। इसके बाद 1957 व 1962 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के प्रत्याशी जीते। 1967 में जनता ने एक बार फिर कांग्रेस पर भरोसा जताया और 1969 व 1974 में फिर से दो बार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को जीत मिली। 1977 में जनता ने चंद्रपाल के चेहरे पर जनता पार्टी को मौका दिया। फिर 1980 में भिक्खालाल को फिर से कम्युनिस्ट पार्टी से जीत मिली और 1985 में बद्री प्रसाद ने इंडियन नेशनल कांग्रेस से जीत हासिल की। इन पार्टियों का रुतबा कम हुआ और भारतीय जनता पार्टी के मस्तराम ने लगातार दो बार 1989 और 1991 में यहां का प्रतिनिधित्व किया। 1993 में जनता ने पहली बार बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी रामखेलावन को जीत दिलाई। लेकिन 1996 के चुनाव में भाजपा ने फिर से पलटी मारी और लगातार दो बार 1996 और 2002 में भाजपा से मस्तराम विधायक बने। 2007 में जनता का रुख एक बार फिर से बदला और बसपा के राधेलाल रावत ने जीत दर्ज की जो कि लगातार दूसरी बार 2012 में भी विधायक बने। जबकि 2017 के चुनाव में भाजपा ने फिर यहां से भगवा फहराया और ब्रजेश रावत विधायक निर्वाचित हुए।
कुल मतदाता : 332714
पुरुष : 181433
महिला : 151258
| जाति | मतदाता |
| मौर्या | 25 हजार |
| लोधी | 21 हजार |
| ब्राह्मण | 18 हजार |
| निषाद | 17 हजार |
| क्षत्रिय | 14 हजार |
| पाल | 14 हजार |
| वैश्य | 11 हजार |
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलाना हसरत मोहानी की जन्मस्थली के नाम से यह क्षेत्र जाना जाता है। यहां पर आम की फल मंडी जिले व आसपास के इलाकों में मशहूर है।
यहां की जर्जर सड़कों से लोग परेशान हैँ। इसके साथ बिजली आपूर्ति में आए दिन बाधा इस विधानसभा क्षेत्र की प्रमुख समस्या है।
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