सीट का इतिहास
अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट है। यहां हर बार बसपा, सपा और भाजपा में त्रिकोणात्मक मुकाबला होता है। 1989 के बाद आठ विधानसभा चुनावों में तीन बार भाजपा, तीन बार बसपा और दो बार सपा ने जीत दर्ज की है। वर्ष 1952 से 1984 तक कांग्रेस के प्रत्याशी जीतते रहे। इसके बाद बसपा से राजेंद्र कुमार दो बार तथा सपा के बैजनाथ पासवान दो बार चुनाव जीते हैं। प्रायः देखा जाता है कि इस सीट से जिस भी पार्टी का विधायक चुना जाता है प्रदेश में उसी पार्टी की सरकार बनती है। यह बात 10 विधानसभा चुनाव से सही साबित हो रही है।
| जाति | मतदाता |
| दलित | 88 हजार |
| यादव | 63 हजार |
| मुस्लिम | 59 हजार |
| चौहान | 32 हजार |
| राजभर | 25 हजार |
| पासी | 16 हजार |
| राजपूत | 15 हजार |
| वैश्य | आठ हजार |
| मौर्य | छह हजार |
| ब्राह्मण | छह हजार |
| भूमिहार | चार हजार |
| विश्वकर्मा | चार हजार |
| धोबी | चार हजार |
| सोनकर | चार हजार |
| अन्य | 40 हजार |
विकास का अभाव, जातिवाद।
देवलास में देवर्षि देवल की तपोस्थली, करहां में बाबा घनश्याम दास की तपोस्थली और मंदिर, खुरहट में देवस्थान।
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