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Nitish Bharadwaj: फिर से श्रीकृष्ण का किरदार निभाना चाहते हैं नितीश भारद्वाज, बताया- जन्माष्टमी का असली अर्थ

Kiran Jain किरण जैन
Updated Sat, 16 Aug 2025 12:07 PM IST
सार

Janmashtami 2025: 1988 में आए बीआर चोपड़ा के ‘महाभारत’ का एक-एक किरदार काफी लोकप्रिय है। लेकिन अगर कोई किरदार लोगों के जेहन में अभी तक बसा है, तो वो है श्रीकृष्ण का किरदार। इस किरदार को निभाया है नितीश भारद्वाज ने। अब अभिनेता ने जन्माष्टमी के मौके पर बताया अपना अनुभव।

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Janmashtami 2025 Nitish Bharadwaj Wants To Play Again Lord Krishna After BR Chopra Mahabharat Share Experience
नितीश भारद्वाज - फोटो : इंस्टाग्राम-@nitishbharadwaj.krishna
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विस्तार
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टीवी धारावाहिक 'महाभारत' में जब नितीश भारद्वाज ने श्रीकृष्ण का किरदार निभाया, तब उन्होंने केवल एक भूमिका नहीं निभाई, बल्कि करोड़ों लोगों के दिलों में कृष्ण को जगा दिया। आज भी जब लोग उन्हें देखते हैं तो सहज ही उन्हें कृष्ण कहकर पुकारते हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर अमर उजाला डिजिटल से हुई खास बातचीत में अभिनेता ने अपने जीवन और कृष्ण से जुड़े अनुभव साझा किए।

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हमें अपने अंदर ही मिलते हैं असली कृष्ण
नितीश भारद्वाज कहते हैं कि मेरे लिए जन्माष्टमी कोई बाहरी त्योहार भर नहीं है। मेरे लिए यह दिन अपने अंदर झांकने का होता है। मैं ध्यान करता हूं, गुरु से मिले मंत्र का जाप करता हूं और आत्मचिंतन करता हूं। पूजा-पाठ और परंपराएं जरूरी हैं, लेकिन असली कृष्ण हमें अपने अंदर ही मिलते हैं।

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नितीश तिवारी - फोटो : सोशल मीडिया

पहले दही हांडी समाज को जोड़ने वाला त्योहार होता था
बचपन की यादों को ताजा करते हुए अभिनेता बताते हैं कि तब दही हांडी केवल खेल नहीं था, बल्कि समाज को जोड़ने वाला त्योहार था। कृष्ण की माखन चोरी की लीला यही सिखाती है कि समाज के सभी लोग मिल-जुलकर रहें। लेकिन आज यह आयोजन ज्यादातर दिखावा और पैसों से जुड़ गया है।

अब पहले से ज्यादा श्रद्धा से कृष्ण की पूजा करते हैं लोग
मौजूदा वक्त के बारे में बात करते हुए नितीश कहते हैं कि एक अच्छी बात यह है कि घरों में लोग पहले से ज्यादा श्रद्धा से कृष्ण की पूजा कर रहे हैं। माता-पिता छोटे बच्चों को मेरे नाटक ‘चक्रव्यूह’ में लेकर आते हैं। पांच-दस साल के बच्चे जब कृष्ण और धर्म को समझने की कोशिश करते हैं, तो लगता है कि आस्था और विश्वास अभी भी लोगों के दिलों में जिंदा है।

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नितीश भारद्वाज - फोटो : इंस्टाग्राम-@nitishbharadwaj.krishna

कृष्ण का किरदार निभाना मेरे लिए आत्मा को छूने वाला अनुभव था
महाभारत में कृष्ण की भूमिका निभाने के अनुभव को अभिनेता जीवन का मोड़ मानते हैं। वो कहते हैं कि कृष्ण का किरदार निभाना सिर्फ एक्टिंग करना नहीं था, यह मेरे लिए आत्मा को छूने वाला अनुभव था। जब लोग आपको कृष्ण के रूप में मानने लगते हैं, तो वह किरदार आपके भीतर भी उतर जाता है। मैंने समझा कि गीता और कृष्ण केवल किताब या कथा नहीं हैं, बल्कि जीवन जीने का तरीका हैं।

भारत की पुरानी पहचान को फिर से जीवित करने की जरूरत
आज की दुनिया के लिए गीता का कौन सा मैसेज सबसे जरुरी है? इस पर एक्टर साफ कहते हैं कि हमें अपनी योग्यता बढ़ानी चाहिए, ईमानदारी से काम करना चाहिए और समाज व देश के लिए सोचना चाहिए। अपने छोटे-छोटे स्वार्थ से ऊपर उठना होगा। जातिवाद को घर की चारदीवारी तक ही सीमित रखो, समाज में मत लाओ। अब समय है कि हम भारत की पुरानी पहचान और ताकत को फिर से जीवित करें।

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नितीश भारद्वाज - फोटो : इंस्टाग्राम-@nitishbharadwaj.krishna

बच्चों को गीता का रास्ता दिखाइए
युवा पीढ़ी को संदेश देते हुए नितीश भारद्वाज ने कहा कि बच्चों को गीता का रास्ता दिखाइए। गीता कोई सिर्फ धार्मिक किताब नहीं है, यह जीवन का विज्ञान है। यह हमें हिम्मत, धैर्य और सही फैसले लेने की ताकत देती है।

अगर मौका मिला तो मैं कृष्ण को पहले से भी बेहतर निभाऊंगा
क्या फिर से कृष्ण का किरदार निभाना चाहेंगे? इस पर नितीश भारद्वाज मुस्कुराकर कहते हैं, 'क्यों नहीं? अब मेरी समझ और गहरी हो गई है। अगर मौका मिला तो मैं कृष्ण को पहले से भी बेहतर तरीके से निभा सकता हूं।'

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नितीश भारद्वाज - फोटो : इंस्टाग्राम-@nitishbharadwaj.krishna

मेरी मां ने ध्यान में मुझे कृष्ण के रूप में देखा
उनकी सबसे प्यारी याद उनकी मां से जुड़ी है। अभिनेता बताते हैं कि मेरी मां ने ध्यान में मुझे कृष्ण के रूप में देखा। यह मेरी शक्ति नहीं थी, यह असली कृष्ण की लीला थी। उन्होंने मां को दिखाया कि सच्चे भगवान की खोज मूर्तियों में नहीं, बल्कि निराकार रूप में करनी चाहिए। यह अनुभव मेरे जीवन का सबसे पवित्र पल है।

असली जन्माष्टमी तब होती है जब हम अपने अंदर कृष्ण को पा लें
जन्माष्टमी को लेकर नितीश भारद्वाज कहते हैं कि कृष्ण केवल पूजा करने के लिए नहीं हैं। वे हमारी सोच, हमारी प्रेरणा और सही रास्ता दिखाने वाली रोशनी हैं। असली जन्माष्टमी तब होती है, जब हम अपने अंदर कृष्ण को पा लेते हैं।

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